दिल्ली के सम्मानित नागरिकों !
हम आपके सामने बुराड़ी विद्यालय के माध्यम से उभरी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई हमारी शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई लेकर आये हैं। बुराड़ी स्कूल भवन को, जिसमें कि हमारे क्षेत्र के अधिकांश बच्चे पढ़ते हैं, अचानक इस सत्र के बीच में जबकि परीक्षाएँ होने वाली थीं, यह कहकर बंद कर दिया गया कि अब यह भवन बच्चों के पढ़ने के लिए सुरक्षित नहीं है। सुनने में आ रहा है कि अब इतने बच्चों को कहीं और भेजा जाएगा जो कि आस-पास तो कतई नहीं होगा। इस संदर्भ में हम आपसे कुछ सवाल साझा करना चाहते हैं-
प्रश्न: क्या स्कूल की इमारत अचानक खतरनाक घोषित हो गई ?
हमारा मानना है कि ऐसा नहीं है। यह इमारत अचानक खतरनाक घोषित नहीं हुई है बल्कि यह मरम्मत के अभाव में इस हालत में पहुँच गयी है। यदि इसका रखरखाव ठीक ढंग से किया जाता तो यह इस हालत में नहीं होती। इसके अलावा यह ठेकेदार द्वारा भवन बनाने में घटिया सामान लगाने की तरफ भी इशारा करता है।
प्रश्न: बुराड़ी के इस स्कूल में इतने अधिक बच्चे (लगभग सात हजार ) क्यों पढ़ते हैं ?
हमारा क्षेत्र अभी नव-विकसित होता हुआ क्षेत्र है। हमारे इस इलाके में नए बसे हुए परिवारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हमारे इस इलाके की जरूरत के अनुसार सही संख्या में स्कूल नहीं खोले गए और इसी कारण से एक ही विद्यालय में हमारे क्षेत्र के इतने बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं।
प्रश्न: क्या बच्चों को सप्ताह में केवल तीन-तीन दिन स्कूल बुलाकर पढ़ाना ठीक है ?
हमारा मानना है कि यह बच्चों के साथ सरासर धोखा है। साथ ही, यह शिक्षा अधिकार कानून का भी खुला उल्लंघन है, जिसमें 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की सरकार ने गारंटी दी है।
प्रश्न: क्या इस स्थिति को किसी भी तरह टाला नहीं जा सकता था? क्या सत्र के बीच में बच्चों की पढ़ाई में आई रुकावट को रोका नहीं जा सकता?
हमें लगता है कि अगर समय रहते, छुट्टियों में मरम्मत कराके, इलाके में प्राइवेट स्कूलों के दोपहर बाद खाली पड़े भवनों को सरकार के आदेश से बुराड़ी स्कूल की नई इमारत बनने तक स्कूल चलाने का इंतजाम कराके, क्षेत्र में सरकारी जमीनों पर समय रहते कक्ष बनाकर और निजी जमीनों को अधिग्रहित करके उन पर स्कूल बनाकर और सबसे बढ़कर पूर्व-नियोजित तरीके से समय रहते ही नए स्कूल खोलकर इस स्थिति से निबटा जा सकता था। मामला इच्छाशक्ति का भी है।
प्रश्नः क्या स्थानांतरण पर सभी बच्चे दूर के स्कूलों में जा पाएँगे?
हमें लगता है कि कई परिवार अपने बच्चों को दूर भेजकर नहीं पढ़ा पाएँगे। इस तरह सैकड़ों बच्चों की पढ़ाई छूट जाएगी। इसकी मार लड़कियों पर अधिक पड़ेगी। दूरी की वजह से स्कूल में बच्चों की हाजिरी भी कम हो सकती है। कुछ परिवार अपने दूसरे जरूरी खर्च कम करके अपने बच्चों की पढ़ाई और अपनी खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को प्राइवेट स्कूलों के बाजार की भेंट चढ़ाने को मजबूर हो जाएँगे। जो बच्चे दूर के स्कूलों में स्थानांतरण ले भी लेंगे उन्हें अतिरिक्त वक्त, थकान, मारामारी और खर्चा वहन करना होगा। इस इलाकेे में ही नहीं बल्कि पूरी दिल्ली की परिवहन व्यवस्था की नाकामी से हम सब वाकिफ हैं - स्टूडेंट बस पास बनाए नहीं जा रहे, बसें हैं नहीं, हैं तो भरी रहती हैं, बच्चों के लिए रुकती नहीं या वो चढ़ नहीं पाते और दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों के लिए धड़ल्ले से डी टी सी की बसें लगी हुई हैं।
प्रश्नः ठेके पर काम करने वाले शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों का क्या होगा?
हमारा मानना है कि आज के दौर में जब सरकारें खुलकर निजीकरण को बढ़ावा दे रही हैं, पक्की नौकरियाँ खत्म करके सामाजिक असुरक्षा फैला रही हैं, मेहनतकश वर्गों के बरसों की लड़ाइयों से जीते गए हक छीन रही हैं और देशी-विदेशी कम्पनियों को जल-जंगल-जमीन व जनता के अन्य संसाधन सौंप रही हैं, स्कूल स्थानांतरित होने की गाज ठेके पर नियुक्त सफाई कर्मचारियों से लेकर शिक्षकों तक सभी पर गिरेगी।
प्रश्नः आज कितने विद्यालयों की इमारतें खतरनाक घोषित हो चुकी हैं? इनके बंद होने से फायदा किसे होगा ?
हमारे इसी इलाके में काली बिल्डिंग के नाम से मशहूर निगम के बुराड़ी बाल विद्यालय का भवन भी पिछले दो साल से खतरनाक घोषित होकर बंद है। उसमें पढ़ने वाले जो सैकड़ों विद्यार्थी पहले सुबह स्कूल जाते थे वो अब बगल के स्कूल में दोपहर बाद एक अन्य स्कूल के पहले से पढ़ रहे सैकड़ों बच्चों के साथ किसी तरह पढ़ने को मजबूर हैं। कइयों ने प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश ले लिया है। इसके बावजूद, नया भवन बनाना तो दूर, प्रशासन ने अबतक उस पुराने भवन को गिराने का काम भी शुरु नहीं किया है! दिल्ली के सौ से ज्यादा स्कूलों के भवन खतरनाक घोषित हो चुके हैं। जाहिर है, इस स्थिति से सीधा फायदा भवन निर्माण में लगे ठेकेदारों को और शिक्षा को बाजार में बेचने वाली चीज बनाकर मुनाफा कमाने के लिए निजी स्कूल खोलने व चलाने वालों को ही होगा।
उपर्युक्त प्रश्नों के माध्यम से कुछ बातों पर रोशनी डाली गई हैं। शिक्षा का वही अधिकार मतलब रखता है जो बराबरी पर टिका हो। शिक्षा का अधिकार कोई सरकारी या प्राइवेट संस्था का अहसान या खैरात नहीं है। यह लोगों द्वारा लड़कर जीता गया हक है जिसका वादा संविधान भी करता है। स्कूलों में एक-एक दिन छोड़कर कक्षाएँ चलने लगें तो हम यह सोचकर संतुष्ट नहीं हो सकते कि चलो काम तो चल रहा है। विद्यार्थियों के लिए मुफ्त परिवहन की माँग उठाना भी बच्चों की शिक्षा के समान हक और राज्य सरकार की जवाबदेही का मसला है। सत्र के बीच में भी जब हजारों-लाखों बच्चे शिक्षकों का इंतजार कर रहे हैं तब हम यह हिसाब लगाकर संतुष्ट नहीं हो सकते कि चलो इतने शिक्षक तो हैं कि स्कूल लग रहा है। सब बच्चों के लिए उम्दा और बराबरी की शिक्षा के लिए लड़ने से ज्यादा गाइड, किताबों से परीक्षाएँ पास कराने को ही स्कूलों की जिम्मेदारी मानना खतरनाक है। जब 2009 में 6-14 साल के ही बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून संसद में पास हुआ तो उसके दायरे से 3-6 और 14-18 साल तक के बच्चे बाहर कर दिए गए। आज जब आठवीं कक्षा के बाद एक तरफ तो कानून बच्चों को शिक्षा का कोई अधिकार नहीं देकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देता है और दूसरी तरफ स्कूल के बाद की पढ़ाई के बिना अपनी पसंद की तो दूर कोई भी नौकरी मिलना नामुमकिन है, हम समझ सकते हैं कि शिक्षा की यह भेदभाव व ऊँच-नीच की व्यवस्था हमारे साथ एक धोखा है।
आइए हम सरकार से अपने बच्चों के लिए निम्न मांगे करें -
हमारे बच्चों के ळिए हमारे इलाके में ही स्कूल की व्यवस्था की जाए।
सभी बच्चों के लिए स्कूल आने जाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा दी जाए।
हमारे क्षेत्र के हिसाब से उचित संख्या में स्कूल खोले जाएँ।
देश के सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
देश में पड़ोस पर आधारित समान स्कूल व्यवस्था लागू की जाए।
हम आपके सामने बुराड़ी विद्यालय के माध्यम से उभरी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई हमारी शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई लेकर आये हैं। बुराड़ी स्कूल भवन को, जिसमें कि हमारे क्षेत्र के अधिकांश बच्चे पढ़ते हैं, अचानक इस सत्र के बीच में जबकि परीक्षाएँ होने वाली थीं, यह कहकर बंद कर दिया गया कि अब यह भवन बच्चों के पढ़ने के लिए सुरक्षित नहीं है। सुनने में आ रहा है कि अब इतने बच्चों को कहीं और भेजा जाएगा जो कि आस-पास तो कतई नहीं होगा। इस संदर्भ में हम आपसे कुछ सवाल साझा करना चाहते हैं-
प्रश्न: क्या स्कूल की इमारत अचानक खतरनाक घोषित हो गई ?
हमारा मानना है कि ऐसा नहीं है। यह इमारत अचानक खतरनाक घोषित नहीं हुई है बल्कि यह मरम्मत के अभाव में इस हालत में पहुँच गयी है। यदि इसका रखरखाव ठीक ढंग से किया जाता तो यह इस हालत में नहीं होती। इसके अलावा यह ठेकेदार द्वारा भवन बनाने में घटिया सामान लगाने की तरफ भी इशारा करता है।
प्रश्न: बुराड़ी के इस स्कूल में इतने अधिक बच्चे (लगभग सात हजार ) क्यों पढ़ते हैं ?
हमारा क्षेत्र अभी नव-विकसित होता हुआ क्षेत्र है। हमारे इस इलाके में नए बसे हुए परिवारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हमारे इस इलाके की जरूरत के अनुसार सही संख्या में स्कूल नहीं खोले गए और इसी कारण से एक ही विद्यालय में हमारे क्षेत्र के इतने बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं।
प्रश्न: क्या बच्चों को सप्ताह में केवल तीन-तीन दिन स्कूल बुलाकर पढ़ाना ठीक है ?
हमारा मानना है कि यह बच्चों के साथ सरासर धोखा है। साथ ही, यह शिक्षा अधिकार कानून का भी खुला उल्लंघन है, जिसमें 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की सरकार ने गारंटी दी है।
प्रश्न: क्या इस स्थिति को किसी भी तरह टाला नहीं जा सकता था? क्या सत्र के बीच में बच्चों की पढ़ाई में आई रुकावट को रोका नहीं जा सकता?
हमें लगता है कि अगर समय रहते, छुट्टियों में मरम्मत कराके, इलाके में प्राइवेट स्कूलों के दोपहर बाद खाली पड़े भवनों को सरकार के आदेश से बुराड़ी स्कूल की नई इमारत बनने तक स्कूल चलाने का इंतजाम कराके, क्षेत्र में सरकारी जमीनों पर समय रहते कक्ष बनाकर और निजी जमीनों को अधिग्रहित करके उन पर स्कूल बनाकर और सबसे बढ़कर पूर्व-नियोजित तरीके से समय रहते ही नए स्कूल खोलकर इस स्थिति से निबटा जा सकता था। मामला इच्छाशक्ति का भी है।
प्रश्नः क्या स्थानांतरण पर सभी बच्चे दूर के स्कूलों में जा पाएँगे?
हमें लगता है कि कई परिवार अपने बच्चों को दूर भेजकर नहीं पढ़ा पाएँगे। इस तरह सैकड़ों बच्चों की पढ़ाई छूट जाएगी। इसकी मार लड़कियों पर अधिक पड़ेगी। दूरी की वजह से स्कूल में बच्चों की हाजिरी भी कम हो सकती है। कुछ परिवार अपने दूसरे जरूरी खर्च कम करके अपने बच्चों की पढ़ाई और अपनी खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को प्राइवेट स्कूलों के बाजार की भेंट चढ़ाने को मजबूर हो जाएँगे। जो बच्चे दूर के स्कूलों में स्थानांतरण ले भी लेंगे उन्हें अतिरिक्त वक्त, थकान, मारामारी और खर्चा वहन करना होगा। इस इलाकेे में ही नहीं बल्कि पूरी दिल्ली की परिवहन व्यवस्था की नाकामी से हम सब वाकिफ हैं - स्टूडेंट बस पास बनाए नहीं जा रहे, बसें हैं नहीं, हैं तो भरी रहती हैं, बच्चों के लिए रुकती नहीं या वो चढ़ नहीं पाते और दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों के लिए धड़ल्ले से डी टी सी की बसें लगी हुई हैं।
प्रश्नः ठेके पर काम करने वाले शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों का क्या होगा?
हमारा मानना है कि आज के दौर में जब सरकारें खुलकर निजीकरण को बढ़ावा दे रही हैं, पक्की नौकरियाँ खत्म करके सामाजिक असुरक्षा फैला रही हैं, मेहनतकश वर्गों के बरसों की लड़ाइयों से जीते गए हक छीन रही हैं और देशी-विदेशी कम्पनियों को जल-जंगल-जमीन व जनता के अन्य संसाधन सौंप रही हैं, स्कूल स्थानांतरित होने की गाज ठेके पर नियुक्त सफाई कर्मचारियों से लेकर शिक्षकों तक सभी पर गिरेगी।
प्रश्नः आज कितने विद्यालयों की इमारतें खतरनाक घोषित हो चुकी हैं? इनके बंद होने से फायदा किसे होगा ?
हमारे इसी इलाके में काली बिल्डिंग के नाम से मशहूर निगम के बुराड़ी बाल विद्यालय का भवन भी पिछले दो साल से खतरनाक घोषित होकर बंद है। उसमें पढ़ने वाले जो सैकड़ों विद्यार्थी पहले सुबह स्कूल जाते थे वो अब बगल के स्कूल में दोपहर बाद एक अन्य स्कूल के पहले से पढ़ रहे सैकड़ों बच्चों के साथ किसी तरह पढ़ने को मजबूर हैं। कइयों ने प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश ले लिया है। इसके बावजूद, नया भवन बनाना तो दूर, प्रशासन ने अबतक उस पुराने भवन को गिराने का काम भी शुरु नहीं किया है! दिल्ली के सौ से ज्यादा स्कूलों के भवन खतरनाक घोषित हो चुके हैं। जाहिर है, इस स्थिति से सीधा फायदा भवन निर्माण में लगे ठेकेदारों को और शिक्षा को बाजार में बेचने वाली चीज बनाकर मुनाफा कमाने के लिए निजी स्कूल खोलने व चलाने वालों को ही होगा।
उपर्युक्त प्रश्नों के माध्यम से कुछ बातों पर रोशनी डाली गई हैं। शिक्षा का वही अधिकार मतलब रखता है जो बराबरी पर टिका हो। शिक्षा का अधिकार कोई सरकारी या प्राइवेट संस्था का अहसान या खैरात नहीं है। यह लोगों द्वारा लड़कर जीता गया हक है जिसका वादा संविधान भी करता है। स्कूलों में एक-एक दिन छोड़कर कक्षाएँ चलने लगें तो हम यह सोचकर संतुष्ट नहीं हो सकते कि चलो काम तो चल रहा है। विद्यार्थियों के लिए मुफ्त परिवहन की माँग उठाना भी बच्चों की शिक्षा के समान हक और राज्य सरकार की जवाबदेही का मसला है। सत्र के बीच में भी जब हजारों-लाखों बच्चे शिक्षकों का इंतजार कर रहे हैं तब हम यह हिसाब लगाकर संतुष्ट नहीं हो सकते कि चलो इतने शिक्षक तो हैं कि स्कूल लग रहा है। सब बच्चों के लिए उम्दा और बराबरी की शिक्षा के लिए लड़ने से ज्यादा गाइड, किताबों से परीक्षाएँ पास कराने को ही स्कूलों की जिम्मेदारी मानना खतरनाक है। जब 2009 में 6-14 साल के ही बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून संसद में पास हुआ तो उसके दायरे से 3-6 और 14-18 साल तक के बच्चे बाहर कर दिए गए। आज जब आठवीं कक्षा के बाद एक तरफ तो कानून बच्चों को शिक्षा का कोई अधिकार नहीं देकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देता है और दूसरी तरफ स्कूल के बाद की पढ़ाई के बिना अपनी पसंद की तो दूर कोई भी नौकरी मिलना नामुमकिन है, हम समझ सकते हैं कि शिक्षा की यह भेदभाव व ऊँच-नीच की व्यवस्था हमारे साथ एक धोखा है।
आइए हम सरकार से अपने बच्चों के लिए निम्न मांगे करें -
हमारे बच्चों के ळिए हमारे इलाके में ही स्कूल की व्यवस्था की जाए।
सभी बच्चों के लिए स्कूल आने जाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा दी जाए।
हमारे क्षेत्र के हिसाब से उचित संख्या में स्कूल खोले जाएँ।
देश के सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
देश में पड़ोस पर आधारित समान स्कूल व्यवस्था लागू की जाए।
राष्ट्रपति हो या मजदूर की संतान सबको शिक्षा एक समान