लोक शिक्षक मंच द्वारा विद्यार्थियों के साथ एक ऑनलाइन सर्वेक्षण किया गया जिसका उद्देश्य यह समझना था कि विद्यार्थियों का ऑनलाइन शिक्षा को लेकर क्या अनुभव रहा है, उन्होंने किन समस्याओं का सामना किया, वे स्कूल खुलने के बारे में क्या सोचते हैं और उनकी क्या चिंताएं हैं। सर्वे में हिस्सा लेने वाले सभी विद्यार्थियों का धन्यवाद करते हुए हम यह रिपोर्ट साझा कर रहे हैं ।
20 जून से लेकर 20 जुलाई, 2020 तक चले इस ऑनलाइन सर्वेक्षण में सवाल हिंदी में थे। इसमें 30 विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया जिनमें 48.3 % लड़कियाँ थीं और 51.7% लड़के। एक विद्यार्थी ने अपनी लैंगिक पहचान नहीं बताई। सर्वे में हिस्सा लेने वाले 30 में से 28 विद्यार्थी दिल्ली के सर्वोदय विद्यालयों के छात्र - छात्राएं थीं और 1 प्रतिभा विद्यालय का। ये वे विद्यार्थी थे जो सत्र 2019-20 में कक्षा IX - XII में पढ़ते थे।
आगे बढ़ने से पहले हम यह स्वीकारते हैं कि यह इस सर्वेक्षण की सीमा है कि इसमें सिर्फ वही छात्र हिस्सा ले पाए होंगे जो ऑनलाइन तकनीकी को इस्तेमाल करने में ज़्यादा सक्षम और सुलभ महसूस करते होंगे। इसलिए यह सर्वे उन तक नहीं पहुँच पाया होगा जो इस डिजिटल होती दुनिया में हाशिए पर हैं। इस सर्वे में विद्यार्थियों की जातिगत पहचान नहीं पूछी गई थी इसलिए ऑनलाइन शिक्षा को समग्रता से समझने का एक महत्वपूर्ण पहलू - जाति - हमारे सर्वेक्षण से बाहर है।
इस सवाल के जवाब में कि 'क्या आपके पास अपना (पर्सनल ) स्मार्ट फोन है?' यह सामने आया कि 76.7% विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए घर के किसी और सदस्य का फ़ोन इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि 20% के पास अपना पर्सनल स्मार्टफ़ोन है। दूसरों के मोबाइल में अधिकतर छात्र अपने पापा (61.5%) का मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं और इसके अलावा मां , भाई, बहन का। एक के घर में कोई फ़ोन नहीं था।
30 में से 80% विद्यार्थियों ने लॉक डाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास ली थी जबकि 10% ने नहीं ली थी। लेने वालों में से 61.5% विद्यार्थियों ने ज़ूम के माध्यम से, 46.2% ने यूट्यूब या अन्य वीडियो माध्यमों से, 30.8% विद्यार्थियों ने व्हाट्सऐप के माध्यम से तथा 3.8% ने सभी माध्यमों से क्लास लेने का विकल्प चुना। क्लास लेने वाले दिल्ली शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों में से 24 यानी 85.7% ने शिक्षा विभाग द्वारा संचालित क्लास ली थीं (जैसे macmillan, aspiration.in, khan Academy के ज़रिए)।
ऑनलाइन कक्षाओं की frequency के बारे में 62% विद्यार्थियों ने कहा कि वे ऑनलाइन क्लास ज़्यादातर / कई बार ले पाए जबकि 31% ने कहा बहुत कम बार अटेंड कर पाए। ऑनलाइन क्लास न ले पाने के पीछे 50% छात्रों ने जो कारण बताए वे थे - दिन में थोड़ी देर के लिए ही फ़ोन उपलब्ध होना तथा इंटरनेट डाटा रिचार्ज की समस्या। 40.9% विद्यार्थियों ने कहा कि 'उसी स्मार्टफोन पर भाई या बहन को भी पढ़ना होता था'। 22.7% विद्यार्थियों ने यह समस्या बताई कि 'फ़ोन खराब हो गया था या खो गया था' और इतनी ही संख्या के विद्यार्थियों ने कहा कि 'घर में कामकाज के कारण समय नहीं' मिला। 18.2% विद्यार्थियों को ' लिंक खोलने या रजिस्टर करने का तरीका समझ नहीं आता था' जिस कारण वे क्लास नहीं ले पाए और 13.6% की समस्या यह थी कि 'घर में इतनी जगह नहीं है कि ठीक से पढ़ाई हो पाए'। 9.1% विद्यार्थियों ने स्मार्ट फ़ोन न होना, ध्यान न लग पाना और 'बाहर बाज़ार के काम या कमाई की चिंता के कारण समय नहीं' की समस्याओं को चिन्हित किया।
30 में से 13 यानी 46.4% विद्यार्थियों ने बताया कि ऑनलाइन कक्षाएँ करने में उन्हें किसी की मदद नहीं मिली जबकि 25% को माता-पिता, इतनों को ही शिक्षक , 14.3% को भाई - बहन, इतनों को ही दोस्त और 3.6% को अन्य रिश्तेदारों की मदद मिली।
ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षण में फ़र्क़ के बारे में विद्यार्थियों के मत इस प्रकार थे - 58.6% विद्यार्थियों ने कहा कि टीचर के साथ क्लास में ज़्यादा समझ आता था जबकि 20.7% ने कहा कि दोनों माध्यमों में समझ आता है । 24.1% ने कहा कि वे कक्षा में सवाल पूछ पाते थे लेकिन ऑनलाइन में नहीं पूछ पाते जबकि 3.4% ने कहा कि वे ऑनलाइन में भी सवाल पूछ पाते हैं। 55.2% विद्यार्थियों ने कहा कि कक्षा में चर्चा हो पाती थी और दोस्तों से भी सीखते थे, 44.8% ने ऑनलाइन माध्यम में स्कूल के दोस्तों से न मिल पाने और खेल कूद की संभावना न होने को जताया। 20.7% ने 'ऑनलाइन पढ़ाई में फोन की स्क्रीन के आगे बैठे रहने से स्वास्थ्य परेशानियों' को चिन्हित किया।
ऑनलाइन शिक्षा में सवाल पूछ पाने की संभावना के बारे में 33.3% ने कहा कि वे अच्छे से सवाल पूछ पाते हैं जबकि 66.7% ने कहा या तो वे बहुत कम सवाल पूछ पाते हैं या ज़्यादा नहीं या बिलकुल नहीं।
28% विद्यार्थियों ने कहा कि विशेष ज़रूरतों वाले विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षण में परेशानी हो रही है जबकि 52% ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
लॉकडाउन की शुरुआत से लेकर अभी तक रिचार्ज में खर्च पैसे के बारे में 19 विद्यार्थियों ने जवाब दिए जिनमें से 31.5% ने 800-1000 का रिचार्ज, 26% ने 400-600 का रिचार्ज, 15.8% ने 200 - 400 और 600 - 800 का रिचार्ज तथा 5.2% ने 200 से कम और 1200 से ज़्यादा का रिचार्ज करवाया।
9 विद्यार्थियों का कहना था कि वे ऐसे विद्यार्थियों को जानते हैं जिनके पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है। ऐसे प्रत्येक विद्यार्थी ने 2 से लेकर 18 तक छात्रों की गिनती बताई जिनके पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है। 5 विद्यार्थियों का कहना था कि वे ऐसे 2 से लेकर 10 विद्यार्थियों को जानते हैं जो गाँव चले गए हैं।
82.8% विद्यार्थियों का मत यह था कि सरकार को सभी विद्यार्थियों को व्यक्तिगत यन्त्र देना चाहिए ताकि सभी छात्रों की पढ़ाई जारी रह सके। 41.4% के अनुसार अगर भविष्य में यही तरीका संभव है तो हाँ देना चाहिए। 27.6% का मत था कि ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ संकट के समय के लिए है, यह ऑफलाइन शिक्षा की जगह नहीं ले सकती। 13.8% विद्यार्थियों के अनुसार इस कदम से पर्यावरण को बहुत नुकसान होगा और 10.3% के अनुसार सभी बच्चों के पास बढ़िया यन्त्र कभी नहीं पहुँच पाएगा।
86.7% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्हें स्कूल में ही ढंग से और लगातार कंप्यूटर सिखाया जाना चाहिए ताकि वे सभी डिजिटल कामों के लिए तैयार हो जाएं जैसे ऑनलाइन राशन, कॉलेज, आधार आदि के फॉर्म भर सकें।
आप के अनुसार क्या ऑनलाइन पढ़ाई जारी रहनी चाहिए? अगर हां तो ऑनलाइन पढ़ाई में सुधार के लिए आप कोई सुझाव देना चाहेंगे । अगर नहीं तो क्यों नहीं।
इस पर 20 जवाब आए जिनमें से 6 विद्यार्थियों का मत था कि ऑनलाइन पढ़ाई जारी नहीं रहनी चाहिए क्योंकि इससे बच्चे ज़्यादा कुछ सीख नहीं पाते, उन्हें बहुत कुछ समझ नहीं आता, नेटवर्क की दिक्कत रहती है, घर के मुकाबले क्लास में ज़्यादा अच्छा समझ आता था।
तीन विद्यार्थियों का कहना था कि हाँ, यह जारी रहना चाहिए, दो और विद्यार्थियों ने कहा कि जारी रहनी चाहिए लेकिन ऐसा तरीका निकाला जाना चाहिए जिससे जिनके पास मोबाइल नहीं है उनकी पढ़ाई का नुकसान न हो, एक का कहना था कि हाँ, ऑनलाइन पढ़ाई से घर पर कोविड से सुरक्षित रहकर पढ़ाई की जा सकती है इसलिए जारी रहनी चाहिए और एक का कहना था कि ऐसा तभी होना चाहिए जब सरकार सबको टैब दे दे।
एक विद्यार्थी का कहना था कि 'यूट्यूब टीचर बेहतर पढ़ाते हैं, they are more professional और सरकार को उन्हें भर्त्ती करना चाहिए'। एक का सुझाव था कि बेहतर ऐप बनाने चाहिए और एक विद्यार्थी ने कहा कि वे कम डाटा की वजह से वीडियो नहीं चला पाते और इसका कोई इंतज़ाम होना चाहिए। एक अन्य विद्यार्थी ने ऑनलाइन सपोर्ट से काम पेंडिंग न रहने को फायदे के रूप में गिनवाया।
कोरोना बीमारी से डर के बारे में 37.9% विद्यार्थियों ने कहा कि उनके मन में कोरोना बीमारी का काफी डर है , 37.9% ने कहा थोड़ा डर है और 24.1% ने कहा उन्हें डर नहीं है।
क्या कोरोना बिमारी के दौरान आपने सरकारी अस्पतालों में अच्छी सुविधाओं और दवाइयों की ज़रूरत महसूस की? इस सवाल के जवाब में 31.6% ने माना कि उन्होंने यह ज़रूरत महसूस की, 28.6% ने कहा नहीं और 35.7% ने कहा उन्होंने इस बारे में सोचा नहीं।
क्या आपको लगता है 2020-21 को ज़ीरो सत्र घोषित किया जाए (जिसमें पढ़ाई चलती रहे लेकिन कोई परीक्षा न हो और न अगली कक्षा में प्रमोट किया जाए। यानी सभी बच्चे एक साथ यह सत्र दोहराएंगे)?
इस सवाल पर 31% विद्यार्थियों का कहना था हाँ, ऐसा किया जाना चाहिए जबकि 51.7% विद्यार्थियों का कहना था नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए। 13.8% ने कहा पता नहीं।
आपके घर में कमाई के क्या क्या साधन हैं?
छात्रों के जवाब से यह सूची बनी - सिलाई, कोचिंग देना, जनरल स्टोर, पापा स्टेज शो करते हैं , बेलदारी , मज़दूरी, फिलहाल कोई रोज़गार नहीं (3), अपना व्यवसाय होना आदि। सिर्फ 1 विद्यार्थी ने कहा कि उनके साधन पहले की तरह हैं क्योंकि पापा एमसीडी में कार्यरत हैं लेकिन तनख्वाह न आने के कारण परेशान हैं।
लॉक डाउन के बाद काम धंधा वापस शुरू होने के सम्बन्ध में 40% विद्यार्थियों ने कहा हाँ हुआ तो है पर बस गुज़ारे लायक़, 26.7% ने कहा हाँ, पर पहले से कम और 23.3% ने कहा बिल्कुल शुरू नहीं हुआ।
आर्थिक तंगी के चलते आगे की पढ़ाई छूटने का डर 73.3% विद्यार्थियों ने व्यक्त किया और बाकी 23.3% ने कहा उन्हें यह डर नहीं है।
जिन बच्चों के घरों में काम धंधों की दिक्कत बढ़ गई है, उनकी पढ़ाई न छूटे इसके लिए क्या सुझाव देंगे (आप एक से ज़्यादा चुन सकते हैं)?
40% विद्यार्थियों ने कहा कि कक्षा पहली से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई मुफ्त कर दी जानी चाहिए और 83.3% विद्यार्थियों ने कहा कि बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए आर्थिक मदद दी जाए।
जो बच्चे अपने गांव से नहीं लौटेंगे/लौट पाएंगे, उनकी पढ़ाई जारी रखने के लिए आप क्या सुझाव देंगे? 14 विद्यार्थियों ने ये सुझाव दिए - बच्चे जहाँ हैं वहीं से पढ़ाई जारी रखें और उन्हें वहीं पढ़ने की सुविधा दी जाए जैसे किताब आदि (6), ऑनलाइन पढ़ाई कराई जाए (4), उनके गांव से लौटने का प्रबंध किया जाए (2)। एक सुझाव था, ' जैसे चुनाव के लिए हम कहीं भी पहुँचते है वैसे ही उन्हें वापस बुलाने का बंदोबस्त किया जाए और बच्चों के भविष्य के बारे में सोचते हुए ज़रूरी कदम उठाए जाएं।'
बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य में सुधार के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
29 में से 37.9% विद्यार्थियों ने कहा ज़्यादा मात्रा और गुणवत्ता का मिड डे मील दिया जाए, 55.2% ने कहा कक्षा 12 तक के बच्चों के लिए मिड डे मील का इंतज़ाम हो, 65.5% ने कहा दूध और फल भी बच्चों को दिया जाए और 86.2% ने कहा कि हर बच्चे की पूर्ण स्वास्थ्य जांच और मुफ्त इलाज हो।
कोरोना बीमारी जैसा संकट दोबारा न आए , इसके लिए आपको क्या लगता है , दुनिया में क्या बदलाव होने चाहिएं (जैसे पर्यावरण , शिक्षा , स्वास्थ्य, जीविका आदि में)? 19 जवाब आए जिनमें से 7 ने पर्यावरण पर ध्यान देने की ओर इशारा किया , 3 ने स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देने पर ज़ोर दिया, 1 ने स्वच्छता और उचित शारीरिक दूरी बनाने, 1 ने योगा करने और 1 ने लॉकडाउन बढ़ाने का सुझाव दिया।
प्रमुख बिंदु जो इस सर्वे से निकलकर आए
1. अधिकतम विद्यार्थियों के पास व्यक्तिगत फ़ोन नहीं था। 76.7% विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए घर के किसी और सदस्य का फ़ोन इस्तेमाल कर रहे थे।
2. मुख्यत : विद्यार्थियों का कहना था कि ऑनलाइन कक्षाओं में गुणवत्तपूर्ण पढ़ाई नहीं हो पाई जैसे 58.6% विद्यार्थियों ने कहा कि टीचर के साथ क्लास में ज़्यादा समझ आता था। 55.2% विद्यार्थियों ने कहा कि कक्षा में चर्चा हो पाती थी और दोस्तों से भी सीखते थे, 44.8% ने ऑनलाइन माध्यम में स्कूल के दोस्तों से न मिल पाने और खेल कूद की संभावना न होने को जताया। 66.7% ने कहा या तो वे बहुत कम सवाल पूछ पाते हैं या ज़्यादा नहीं या बिलकुल नहीं। 52% ने 600 से ज़्यादा का रिचार्ज करवाया।
3. सुझावों के रूप में विद्यार्थियों की बड़ी संख्या ने सभी बच्चों को व्यक्तिगत उपकरण दिए जाने और स्कूलों में ही कंप्युटर की ठोस शिक्षा दिए जाने का समर्थन किया। जैसे 82.8% विद्यार्थियों का मत यह था कि सरकार को सभी विद्यार्थियों को व्यक्तिगत यन्त्र देना चाहिए ताकि सभी छात्रों की पढ़ाई जारी रह सके। 86.7% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्हें स्कूल में ही ढंग से और लगातार कंप्यूटर सिखाया जाना चाहिए।
4. 51.7% विद्यार्थियों का कहना था 2020-21 सत्र को ज़ीरो सत्र घोषित नहीं किया जाना चाहिए।
5. सरकार द्वारा वित्तीय आवश्यकता की ज़रूरत इस आंकड़े से चिन्हित होती है कि आर्थिक तंगी के चलते आगे की पढ़ाई छूटने का डर 73.3% विद्यार्थियों ने व्यक्त किया और 83.3% विद्यार्थियों ने कहा कि बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए आर्थिक मदद दी जाए।
6. अधिकतम विद्यार्थियों ने बेहतर और अधिक पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य जांच और चिकित्सा उपचार की मांग का समर्थन किया। 55.2% ने कहा कक्षा 12 तक के बच्चों के लिए मिड डे मील का इंतज़ाम हो, 65.5% ने कहा दूध और फल भी बच्चों को दिया जाए और 86.2% ने कहा कि हर बच्चे की पूर्ण स्वास्थ्य जांच और मुफ्त इलाज हो।