Tuesday, 31 January 2023

गर्व से कहो, हम हैं लोकतंत्र की माँ और गणतंत्र के पिता की अबोध संतान

सरकार द्वारा इतनी मेहनत करके हमें लगातार यह सिखाया जा रहा है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र ही नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है। इधर संविधान दिवस के अवसर पर यूजीसी ने शिक्षा संस्थानों को निर्देश भी दिया था कि वो खाप पंचायतों, ग्रंथों व प्राचीन इतिहास के उदाहरणों पर व्याख्यान/चर्चा आयोजित करके इस देश की लोकतांत्रिक जड़ों को सींचने का काम करें। फिर भी कुछ ढीठ और मूर्ख लोगों को ये सीधी-सी बात समझ में नहीं आ रही है। वो समझते हैं कि लोकतंत्र कोई पाश्चात्य या नया विचार है और भारत में इसका कुछ लेना-देना हमारे स्वतंत्रता आंदोलन व संविधान से है। ऐसे में गणतंत्र दिवस ने इस पाठ को पढ़ाने और तथ्य को साबित करने के लिए एक बेहतरीन अवसर उपलब्ध कराया। हमने तमाम देशों के नेतृत्व में से मिस्र के राष्ट्रपति को अपने 74वें गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बुलाने का फ़ैसला किया। 2014 में राष्ट्रपति बनने से पहले अब्देल फ़तेह अल-सीसी सेना अध्यक्ष थे। अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के दौरान उन्होंने बहुत-से लोकतांत्रिक कारनामे अंजाम दिए हैं, जिन्होंने उन्हें दुनिया के सबसे बड़े और सबसे बूढ़े लोकतंत्र के नवावतार के गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन के मुख्य अतिथि के लिए यक़ीनन सुयोग्य पात्र बनाया। उन्होंने न केवल अपने देश के संविधान को निलंबित करने और सैन्य तख़्तापलट करके देश की सेवा करने का श्रेय हासिल किया था, बल्कि विरोध-प्रदर्शन को लगभग अवैध बनाने, 2014 के राष्ट्रपति चुनाव में 97% मत प्राप्त करने, 2018 के चुनाव में विपक्ष को नेस्तनाबूद करने, मानव-अधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने व जेल भेजने और क़ानून में संशोधन करके 2030 तक सत्ता पर काबिज़ रहने का रास्ता तैयार करने जैसे लोकतांत्रिक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। कहना मुश्किल है कि इन दो प्राचीन और महान सभ्यताओं के वंशजों में से किसे दूसरे से ज़्यादा प्रेरणा लेने की ज़रूरत है - लोकतंत्र की माँ की वर्तमान सत्ता को या उसकी मिस्री संतान को? 
 
इधर गणतंत्र दिवस के इनाम के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात मुख्यमंत्रित्व काल में हुई व्यापक साम्प्रदायिक हिंसा के संदर्भ में उनकी भूमिका को प्रश्नांकित करती हुई बीबीसी द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री को एक मज़बूत सरकार द्वारा फ़ौरन प्रतिबंधित कर दिया गया। एक अति पके हुए लोकतंत्र का उदाहरण पेश करने के लिए सरकार ने अपनी आपातकालिक शक्ति का सदुपयोग किया। देश की सुरक्षा की ख़ातिर न सिर्फ़ सभी ऑनलाइन मीडिया पोर्टलों को इस डॉक्यूमेंट्री के लिंक हटाने के आदेश दिए गए, बल्कि प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालयों के छात्र समूहों/संगठनों द्वारा इस ख़तरनाक व देशद्रोही फ़िल्म को स्क्रीन करने के नापाक मंसूबों को विफल करने के लिए सख़्त आदेश जारी करने पड़े, कैम्पसों में इंटरनेट-बिजली काटनी पड़ी, फ़िल्म देखने के जघन्य अपराध के लिए एफ़आईआर दर्ज करनी पड़ीं और कैंपस में सशस्त्र बलों को तैनात करना पड़ा। इतना सब केवल और केवल विदेशी षड्यंत्र को नाकाम करने और लोकतंत्र को बचाने के लिए! लोकतंत्र के उदात्त मूल्यों के प्रति समर्पण का एक अन्य नमूना पेश करते हुए प्रधानमंत्री महोदय ने गणतंत्र दिवस के अगले ही दिन परीक्षा के मारे बेचारे विद्यार्थियों की सभी चिंताओं को दूर करने के लिए, पिछले कुछ वर्षों की तरह, उन्हें अपने गुर से लाभांवित करने का प्रयास जारी रखा। कहीं वो 'मान-न-मान, मैं तेरा भगवान' के आशीर्वाद से वंचित न हो जाएँ, विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों व शिक्षकों ने इसी तरह के कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए अपने मेल आई डी तथा फ़ोन नंबर पीएमओ से लेकर तमाम सरकारी महकमों को दे रखे हैं। 'परीक्षा पर चर्चा' पर प्रधान शिक्षाविद की एक किताब पहले-ही प्रकाशन जगत में तहलका मचा चुकी है। मगर आज़ादी के अमृत महोत्सव का तकाज़ा था कि प्रमुख प्रधानाचार्य के कार्यालय से इस बार आई निमंत्रण मेल में हमें बाबाजी से सलाह लेने का निर्देश दिया गया था। कहीं लोग अपने फ़ोन-लैपटॉप पर वर्जित फ़िल्में न देखते रह जाएँ या डिजिटल उपकरण न होने के चलते वंचित न महसूस करें, इसलिए बिकी हुई प्रेस के सम्मेलन को घास तक नहीं डालने वाले प्रचारक के सत्संग में परीक्षा से आतंकित विद्यार्थियों के सवालों के जवाब देने के लिए पूरा-का-पूरा स्टेडियम बुक कर दिया गया। हमें मालूम है कि अपने छात्र जीवन में इस परीक्षा-योगी ने कितने जतन से, कितनी परीक्षाएँ देकर, कितनी डिग्रियाँ अर्जित की थीं। आख़िर शिक्षा व परीक्षाओं पर टिप्स देने के लिए इनसे बेहतर व्यक्ति कौन हो सकता है!
तो, चाहे वो छात्रों को हमारे देश के अंदरूनी मामले में दख़ल देने वाली किसी डॉक्यूमेंट्री को देखने के पाप से बचाना हो या फिर परीक्षा के पुण्य काम में हाथ बँटाने के लिए उनके जीवन में दख़ल देना हो, लोकतंत्र की ये माँ गणतंत्र को पालने-पोसने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। धन्य हैं हम जो हमें लोकतंत्र की माँ की गोद में रचे-बसे इस अति-प्राचीन गणतंत्र में प्रजा के रूप में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ!