Monday, 19 May 2025

बीएलएड को समाप्त करने की तैयारी के संदर्भ में बीएलएड की एक भूतपूर्व छात्रा का एक खुला पत्र

 प्रति 

     अध्यक्ष 
     राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद 
     दिल्ली 

विषय: बीएलएड को समाप्त करने की तैयारी के संदर्भ में बीएलएड की एक भूतपूर्व छात्रा का एक खुला पत्र 

महोदय,
पिछले दिनों अख़बारी खबरों और NCTE के एक दस्तावेज़ (20 फ़रवरी 2025) के अनुसार यह सामने आया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के आठ कॉलेजों में पढ़ाये जा रहे टीचर एजुकेशन से सबंधित B.El.Ed. (बैचलर ऑफ़ एलीमेंट्री एजुकेशन) को पूरी तरह हटाकर केवल नए टीचर एजुकेशन प्रोग्राम ITEP (इंटीग्रेटेड टीचर एजुकेशन प्रोग्राम) अथवा B.Ed को रखने का प्रस्ताव दिया गया है| लोक शिक्षक मंच पिछले पंद्रह सालों से शिक्षा संबंधी मुद्दों पर लगातार कार्य करता रहा है और एक शिक्षक संगठन होने के नाते मंच को कई BElEd ग्रेजुएट टीचर्स के साथ कार्य करने का अनुभव प्राप्त हुआ| ये शिक्षिकाएँ चार साल के शिक्षक-प्रशिक्षण के बाद, दिल्ली के सार्वजनिक स्कूलों के साथ, भारत के विविध शैक्षिक क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं| दिल्ली क्षेत्र के स्कूलों में भी BElEd शिक्षिकाएँ वर्षों से प्राथमिक स्कूलों और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं| ऐसी ही एक शिक्षिका के BElEd कोर्स करने के अपने अनुभवों को लोक शिक्षक मंच यहाँ साझा कर रहा है –

'मैंने पिछले दिनों अखबारों के माध्यम से जाना कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कराए जाने वाले BElEd कोर्स को साल 2026 से ख़तम कर दिया जायेगा| यह ख़बर पढ़ते ही जो पहली चीज़ मेरे दिमाग में कौंधी वह थी अब से ठीक 17 साल पहले की एक लड़की की याद जो दिल्ली की एक मजदूर आबादी वाले, इंडस्ट्रियल एरिया के सरकारी स्कूल से निकलकर, सेन्ट्रल दिल्ली के माता-सुन्दरी कॉलेज में, उधार ली गई रकम से अपना एडमिशन कराने पहुँची थी| उस दिन उस कॉलेज में एडमिशन के लिए कुल 32 लड़कियाँ आई हुई थीं| उनमें से कितनी अपने एडमिशन की रकम उधार लेकर आई थीं, नहीं कह सकती| परन्तु धूप से झुलसे चेहरे और बहुत पुराने हो चुके सूट तथा दुपट्टे में सिमटा उनका व्यक्तित्व उनकी मेहनत व संघर्षों को स्पष्ट बयान कर रहा था| हममें से अधिकत्तर निम्न वर्ग या निम्न मध्यम वर्ग की लड़कियाँ थीं जो आँखों में कॉलेज में पढ़ने का सपना और भविष्य में शिक्षक बनकर अपने जीवन को सँवारने की उम्मीद की चमक लेकर रोज़ कॉलेज में पढ़ने पहुँच जाती थीं| पहले साल की कॉलेज की पढ़ाई से चौथे साल तक की BElEd की शिक्षा ने हमारे लिए न केवल पढ़ने, शिक्षक बनने और नौकरी पाने के रास्ते खोले, बल्कि एक जकड़े हुए और गैर-बराबरी पर आधारित समाज में हम लड़कियों को अपने जीवन से जुड़ी विसंगतियों को पहचानने की दृष्टि और उनपर सवाल करने के लिए आवाज़ भी दी| स्कूली किताबों के पहले-दूसरे पन्ने पर छपी संविधान की उद्देशिका में लिखे जिन शब्दों को हम बचपन से पढ़ती आई थीं, BElEd की कक्षाओं में उन्हें हम पहली बार जीवंत होते हुए महसूस करती थीं| 

हममें से कई लड़कियाँ घर से 20 किलोमीटर की दूरी पार कर कॉलेज पहुँचने के लिए ऑटो रिक्शा से लेकर सरकारी बसों के सफ़र में अपने महिला होने को लगातार महसूस करते हुए कई तरह की फ़ब्तियों, दुर्व्यवहार और रूढ़ दृष्टियों से निर्मित छवियों में स्वयं को रोज़ किन्हीं अदृश्य ज़ंजीरों से जकड़ा हुआ पाती थीं| इस कोर्स में आने के बाद हमारे सामने समानता, समता, बंधुत्व जैसी संकल्पनाएँ हर समय घूमती रहती थीं और अदृश्य शिकंजों की कसावट को अधिक स्पष्टता से व्यक्त करती रहती थीं|  

ये BElEd की कक्षाएँ हीं थीं जिनसे हमें उन रूढ़ छवियों के शिकंजों को तोड़ने के लिए वैचारिक समझ और शाब्दिक अभिव्यक्तियाँ मिलीं| सड़क से लेकर परिवार की भीतरी संरचना में अपने लिए बराबरी की माँग अब हम लड़कियों के बीच बढ़ने लगी थी| हम यह जानने लगीं थीं कि यह लड़ाई जितनी बाहरी है उससे कहीं अधिक भीतरी है| अपने भीतर बसे असंख्य भय और संकोचों से जूझना बाह्य तत्वों से जूझने की तुलना में कई बार अधिक कठिनाइयों भरा था| चार वर्षों की अपनी BElEd की स्नातक शिक्षा में हम जितना शिक्षा और स्कूल को समझ रही थीं उतना ही अपने व्यक्तित्व को जान रही थीं| हम यह समझ पा रही थीं कि यह ज़रूरी नहीं कि पढ़-लिख कर मात्र शिक्षक की नौकरी पा जाने से हम किसी परिवर्तन की राह को प्रशस्त कर सकें, बल्कि ज़रूरी है कि स्वयं को एक व्यक्ति, व्यक्तित्व के रूप में पहचान कर समाज, शिक्षा, स्कूल और राजनीतिक बोध के साथ प्राथमिक शिक्षा के ताने-बाने को समझना| इसकी समझ BElEd प्रोग्राम के दौरान मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शनशात्र और भाषा ज्ञान के सैद्धांतिक अध्ययन के साथ रंगमच, स्व-विकास और मानवीय संबंधों की व्यावहारिक कार्यशालाओं ने हमें दी| इस प्रोग्राम ने हम मेहनतकश, दलित व अन्य पृष्ठभूमियों से आने वाली युवा लड़कियों को ऐतिहासिक रूप से एक व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में जितना स्वयं को समझने के सघन अवसर दिए उतना ही शिक्षा जगत में वास्तविक धरातल पर बच्चों के साथ कार्य करने के अवसर भी उपलब्ध कराए|  

मैं पिछले सात साल से दिल्ली के प्राथमिक स्कूल में छोटे बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रही हूँ| आज भी मैं ख़ुद में छोटे बच्चों की शिक्षा के लिए सक्रियता से कार्य करने की शक्ति और ऊर्जा का स्रोत अपने भीतर कहीं महसूस करती हूँ तो वापिस अपनी BElEd की कक्षाओं में ही पहुँच जाती हूँ| जब-जब मैं स्कूली परिवेश में सामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों का सामना करती हूँ तो याद करती हूँ – सुल्ताना के सपने, फ्रेरे, अम्बेडकर,ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले तथा स्त्री विमर्श को| अकसर मैं अपनी कक्षाओं में बच्चों की शिक्षण संबंधी चुनौतियों से जूझती हूँ तो अनायास ही - डीवी, गाँधी, टैगोर, रूसो, मोंटेसरी के विचार और बारबियाना के छात्रों द्वारा अपने शिक्षक को लिखे पत्र, 'दिवास्वपन' (गिजुभाई बधेका) तथा 'अध्यापक' (सिल्विया ऐश्टन वार्नर), 'तोत्तो-चान' (टेटसुको कुरोयानागी) जैसी पुस्तकें मेरी स्मृतियों में उभर आती हैं| इन दिनों BElEd कोर्स को खत्म करने की ख़बरें मुझे विचलित कर रही हैं, इसलिए इस पत्र के माध्यम से मैं अपनी चिंता और प्रश्न आपके साथ साझा करना चाहती हूँ, कि – एक कोर्स जिसने हमें न केवल शिक्षण-प्रशिक्षण का कौशल दिया, बल्कि जीवन को समझने के आयाम भी प्रदान किए, ऐसे गहन और मज़बूत शिक्षक-शिक्षा कोर्स को खत्म करके शिक्षक-प्रशिक्षण के क्षेत्र में हम कौन से नवीन परिवर्तनों के लिए ज़मीन साफ़ कर रहे हैं?'

लोक शिक्षक मंच की टिप्पणी: बीएलएड से शिक्षित-प्रशिक्षित हुई शिक्षिका का यह खुला पत्र न केवल उक्त कार्यक्रम की एक जीवंत झलक देता है, बल्कि विषम परिस्थितियों से आने वाली छात्राओं पर उसके गहरे व प्रेरक आकादमिक तथा सामाजिक चेतना के असर का सबूत भी देता है। इसके अतिरिक्त, मंच के साथी बीएलएड कोर्स के आधार स्कूलों में नियुक्त साथी शिक्षिकाओं के शैक्षणिक कर्म के भी गवाह रहे हैं। इन दोनों ही आधार पर मंच बीएलएड कोर्स को बंद किए जाने का समर्थन नहीं कर सकता है। हमारी जानकारी में, न तो दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में पढ़ा रहे बीएलएड के अधिकांश शिक्षक इस फ़ैसले से ख़ुश हैं और न ही ITEP के कोर्स को अकादमिक सुसंगतता के साथ उतारने की पूरी तैयारी की गई है। आलम ये है कि ITEP का जो बैच शुरु हुआ है, एक साल बीतने के बाद भी, उसके विद्यार्थी अपनी नियमित, गहन कक्षाओं का इंतज़ार कर  रहे हैं। एक विचारणीय बात यह भी है कि जिस ITEP कोर्स को बीएलएड के बदले लाया जा रहा है, वो स्व-वित्त-पोषित है तथा उसकी फ़ीस बीएलएड की फ़ीस से दोगुनी से भी अधिक है। इस नाते भी बीएलएड की जगह पर ITEP को लाना समाज के मेहनतकश व वंचित वर्गों के साथ अन्याय है। 
मंच माँग करता है कि NCTE बीएलएड को हटाने के अपने फ़ैसले को वापस ले तथा इस विषय में आगे भी कोई भी फ़ैसला इस कोर्स के पढ़ाने वालों से सलाह करके ही ले। साथ ही, मंच, अकादमिक गुणवत्ता, नियमित-गहन कक्षाओं तथा राज्य द्वारा सामाजिक न्याय के आधार पर समान रूप से शिक्षा उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी जैसे मूल्यों के पक्ष में, ITEP कोर्स की विषयवस्तु, इसके क्रियान्वयन तथा फ़ीस की समीक्षा की भी माँग करता है। 

सधन्यवाद 

Feedback submitted on 9th of March on behalf of LSM on CBSE'S Draft Scheme for conducting two Board examinations in Class 10



A) Point-wise feedback
Under the proposed scheme
1. Students will get less time between two papers. 
2. Teachers will get less time to evaluate. 
3. Total number of days actually available for teaching in schools will go down further. 
4. It is not clear why the question papers of Vocational subjects will be taken back. 
5. Regarding point number 15 which says that a student may change subject for the second phase, it is not clear how such a student will get to study that new option from mid-session. It may lead to more and more students leaving or being nudged away from Maths and Science. Moreover, this provision will add an unnecessary complication for schools. 
6. Regarding point number 19 which talks of enhanced fees to be collected for both the phases at the time of filling the LOC in the first phase, this is unfair and will add extra financial burden, especially on students from marginalised backgrounds. 
7. Regarding point number 22 which mentions a review of verification, photocopy and revaluation norms in the light of availability of time, the implicit suggestion is that the process, which was already too costly for most students from marginalised backgrounds, will become further out of reach, thereby negatively impacting fairness, CBSE's accountability and transparency of the Board exams. 
8. Point number 38 implies limiting students' attempts at improvement. Needs greater clarity (including linguistic) and keeping students' options open.  
9. The very purpose of the proposed new scheme of Board exams is not clear, or is totally irrelevant to the claims of addressing students' stress and the negative impact of the private coaching industry. In fact, the private coaching industry has increased leaps and bounds after the introduction of CUET. This new scheme of holding Board exams in two phases is not going to affect the malaise of the private coaching industry in any way.
 
B) Other Suggestions
1. CBSE should abolish Board examination fees in totality. 
2. CBSE should not assume in an unscientific and undemocratic manner as to the needs of the students, teachers and schools with respect to exams. Instead, it would be better to conduct rigorous surveys, studies and consultations to understand the conditions and demands/needs, and thereafter make any changes in policies etc. 
3. CBSE should be more careful about the clarity in and exactness of language used in its documents etc