हम लड़ेंगे साथी
( मारुती सुजुकी के आन्दोलनरत मजदूरों के साथ हम भी )
शिक्षा और समाज का एक गहरा रिश्ता है.,समाज शिक्षा और शिक्षक से ये उम्मीद करता है की वह सकारात्मक सामाजिक बदलाव में अपनी भूमिका अदा करेंगे .समाज का अंग होने के नाते हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम समाज में घटने वाली घटनाओं को समझकर अपनी राय कायम करें और इस पर अपनी प्रतिक्रिया दें . समाज हमसे यह अपेक्षा करता है कि हम अपनी एकता गरीब मजलूम और शोषित तबके के साथ बनायेंगे .
मारुती सुजुकी की घटना आखिर घटी क्यों ?
मारुती सुजुकी की मानेसर कारखाने में मजदूर लम्बे समय से आन्दोलनरत हैं .पिछले एक साल में ही यूनियन बनाने और सम्मानजनक वेतन इत्यादि को लेकर मजदूर तीन बार हडताल कर चुके थे . इन आंदोलनों को दबाने के लिए मारुती प्रबंधन ,हरियाणा व केंद्र सरकार ने मजदूरों की छटनी , उन पर झूठे मुक़दमे लगाना तथा मजदूर नेताओं को प्रलोभन देने जैसे कृत्य किये . मारुती सुजुकी के मजदूरों ने इससे लड़ते हुए अपनी एकता को कायम रखा .18 जुलाई 2012 के दिन एक सुपरवाईजर ने एक मजदूर को जाति सूचक गाली दी जब उस मजदूर ने इसका विरोध किया तो उस पर अभ्दर्ता का आरोप लगाकर उसे निलंबित कर दिया . इसके समाधान के लिए मजदूर यूनियन के नेताओं ने प्रबंधन से वार्ता की और घटना की निष्पक्ष जाँच कराने तथा उस मजदूर के निलंबन पर रोक लगाने की मांग रखी , लेकिन प्रबंधन अपनी जिद पर अदा रहा तथा लगातार यूनियन के नेताओं पर दबाब बनता रहा . यूनियन के नेता इस दबाब को अस्वीकार करते हुए अपनी जायज मांग रखते रहे .यह वार्ता लगभग तीन बजे दोपहर तक चलती रही लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला . इसी बीच दूसरा शिफ्ट शुरू हो गया और अन्य मजदूर भी कम्पनी में पहुच गये . वार्ता के दौरान ही मारुती प्रबंधन ने पूर्व नियोजित और जैसे की चलन रहा है 150 बौसरों(गुंडों ) को बुला लिया ,चूकि मजदूर भी आक्रोशित थे तो इस मारपीट में प्रबंधन के कुछ लोगों को चोटें आयीं तथा एक मनेजर की मौत हो गयी तथा बहुत से मजदूर भी घायल हुए .इस सन्दर्भ में सरकार व श्रम विभाग का रवैया एक तरफ़ा और मजदूरों के विपक्ष में रहा .
क्या मीडिया ने अपनी निष्पक्ष भूमिका निभाई ?
मुख्या धारा की पत्रकारिता से तो ये उम्मीद भी नहीं की जा सकती की जा सकती की वो मजदूरों का पक्ष लेगी पर पत्रकारिता के नूनतम मानदंडों के तकाजे से हम उनसे यह उम्मीद तो कर ही सकते हैं की वो कम से कम मजदूरों के पक्ष को भी अपनी खबरों मै शामिल करेगी ,पर इस घटना के सन्दर्भ मै इसका आभाव ही दिखा. मीडिया मारुती मै हुई आगजनी और एक प्रबंधक की मृत्यु की खबर को ही लगातार दिखाती - छापती रही, उसके पीछे की घटना और मजदूरों के पक्ष को कभी दिखने छापने का कोई प्रयास नहीं किया. पर्बंधक की मौत कैसे हुई ये तो जांच का विषय है पर मीडिया लगातार इस घटना के लिए मजदूरों को ही दोषी साबित करती रही जबकि मजदूरों तथा जानकर लोगों का कहना है की मजदूर यूनियन ने लगातार वार्ता के द्वारा समस्या समाधान की कोशिश की और दोषी व्यक्तियों को सजा देने की मांग रखी .मीडिया की किसी भी खबर मै प्रबंधक द्वारा बौन्सरों को बुलाने का जिक्र तक नहीं था जबकि मजदूरों को धमकाने का ये तरीका अक्सर इस्तेमाल किया जाता है. मीडिया लगातार मारुती सुजुकी पर्बंधन द्वारा अपनी कंपनी को अन्य जगह ले जाने तथा इस घटना का निवेश पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को प्रचारित प्रसारित करता रहा.
सरकारों की क्या भूमिका रही ?
सरकारों ने नव उदारवाद की नीतियों को आंख मूँद कर अपने यहाँ लागु किया और हमारे देश को देशी विदेशी पुजीपतियों के लिए आसान चारागाह बना डाला है . पुजीपतियों को ये हर सुविधाएँ देने को तत्पर हैं -सस्ती जमीन ,टैक्स की छूट , सस्ती बिजली -पानी और करोड़ों की कर्ज माफ़ी .सरकारों ने मजदूरों द्वारा लड़कर प्राप्त किये गये अधिकारों को न मानने की खुली छूट दे दी है . जब भी देश के शोषित उत्पीडित लोग अपने हक़ अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं तो उनपर बर्बर दमन चला कर कुचल दिया जाता है . ग्रेजियानो ,निप्पों हो या मारुती सुजुकी के मजदूर आन्दोलन मै सरकारों की भूमिका दमनात्मक ही रही है .
ऐसा नहीं है की ये शोषण दमन की नीति सिर्फ मजदूरों पर ही जारी है देश मै ऐसा कोई भी तबका नहीं है जिसपर सरकार ने दमन न ढाया हो , पिछले दिनों पंजाब के शिक्षकों को दौड़ा दौड़ा कर पीटने की घटना हो या पटना मै अनुबंध अद्यापक संघ द्वारा किया जाने वाला सम्मानजनक वेतन और परमानेंट करने की मांग को लेकर किया जाने वाला पर्दशन सभी को सरकार ने बेरहमी से कुचला है . दिल्ली की बात करें तो हमारे ही विभाग मै अनुबंध आधार पर शिक्षकों को कम वेतन पर काम कराया जाता है और उन्हें अन्य सुविधाएँ भी नहीं मिलती हैं , जहाँ स्थाई महिला कर्मी को मातृत्व अवकाश 180 दिनों का मिलता है वहीँ अनुबंधित महिला शिक्षिकाओं को मात्र 90 दिनों का , हर साल नये सीरे से उनकी नियुक्ति की जाती है क्या उन्हें भी अन्य शिक्षिकों की तरह सम्मानजनक कार्य परिस्थिति उपलब्ध नहीं कराया जाना चाहिए . इसलिए हम मजदूरों व अन्य मेहनतकशों के शोषण दमन के खिलाफ और मारुती सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों के साथ अपनी एकजूटता पर्दर्शित करते हैं और साथ ही निम्न मांगें रखते हैं :
1. मारुती सुजुकी के मानेसर कारखाने मै हुई घटना की निष्पक्ष जाँच की जाए .
2. मारुती सुजुकी व अन्य कारखानों मै श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करवाया जाए .
3. एस सी /एस . टी कानून के अंतर्गत दोषी सुपरवाईजर पर मुकदमा दर्ज किया जाए .
4. बौन्सेरों की इस घटना मै भूमिका की जाँच की जाए तथा उनको बुला वाले पर्बंधाकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए .
5 . मजदूरों का निलंबन तुरंत प्रभाव से समाप्त किया जाए .