लोक शिक्षक मंच ने संत नगर में 23 मार्च की शाम सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह की शहादत दिवस पर एक सभा का आयोजन किया । सभा में मंच के सदस्यों के अतिरिक्त कुछ शिक्षकों व विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। सभा की शुरुआत पंजाब के जनकवि पाश की, जिनकी शहादत भी इसी तारीख को हुई थी, दो कविताओं के पाठ और भगत सिंह के दिए गए इन्क़लाबी नारे से की गई। इसके बाद एक मिनट का मौन रखकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। सभा के दौरान मंच के कुछ साथियों ने भगत सिंह की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे, जिनमें गहन अध्ययन का महत्व, तार्किकता, साम्राज्यवाद सहित हर तरह के शोषण के खिलाफ संघर्ष आदि शामिल थे।
आज के समय में समाज में, विशेषकर शिक्षा जगत के संदर्भ में, उपरोक्त सभी चिंताओं का बने रहना भगत सिंह सहित उन सभी क्रांतिकारियों के विचारों की प्रासंगिकता को बढ़ा देता है जिन्होंने आज़ादी का अर्थ व मेल एक समतामूलक और न्यायप्रिय सामाजिक व्यवस्था से लगाने का आह्वान किया था। साथियों द्वारा समूह में क्रांतिकारी गीतों से सभी उपस्थित लोगों की हिस्सेदारी और हौसला-अफ़ज़ाई की गई। राजेश्वर प्रसाद (निगम शिक्षक व कवि) ने शहीदों को समर्पित एक स्व-रचित गीत प्रस्तुत करके शहीदों के बलिदान व विरासत को याद किया। उपस्थित विद्यार्थियों ने भगत सिंह द्वारा अपने जीवन के विभिन्न मोड़ों पर लिखे गए खतों को पढ़कर भगत सिंह की मानवीय व राजनैतिक प्रतिबद्धताओं को सभा के समक्ष साझा किया।
डॉ. विकास गुप्ता (प्रोफेसर इतिहास विभाग दिल्ली विश्व विद्यालय व सदस्य अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच ) ने इस अवसर पर राष्ट्रवाद की ऐतिहासिकता, उसकी व्याख्या व प्रकार को लेकर समाज-विज्ञान में चली आ रही बहस व अतीत-आधुनिकता के सरलीकृत द्वंद्व पर एक इतिहासकार की नज़र डालते हुए सभा का ध्यान आकर्षित किया। आज़ादी के संघर्ष के दौरान राष्ट्रवाद व आज़ादी के मायने को लेकर चली बहसों पर रौशनी डालते हुए उन्होंने भगत सिंह की ऐसे सभी सवालों पर तीखी और साफ़ वैचारिकता को रेखांकित किया तथा एक जनपक्षधर, इंसाफ व बराबरी पर टिके समाज के आदर्श के पहलू को ही उनके लगातार प्रासंगिक बने रहने का एक महत्वपूर्ण कारण बताया। सभा का अंत साथी कमलेश के समापन वक्तव्य व इन्क़लाबी नारे से संघर्ष के संकल्प को ताज़ा करने से हुआ।
आज के समय में समाज में, विशेषकर शिक्षा जगत के संदर्भ में, उपरोक्त सभी चिंताओं का बने रहना भगत सिंह सहित उन सभी क्रांतिकारियों के विचारों की प्रासंगिकता को बढ़ा देता है जिन्होंने आज़ादी का अर्थ व मेल एक समतामूलक और न्यायप्रिय सामाजिक व्यवस्था से लगाने का आह्वान किया था। साथियों द्वारा समूह में क्रांतिकारी गीतों से सभी उपस्थित लोगों की हिस्सेदारी और हौसला-अफ़ज़ाई की गई। राजेश्वर प्रसाद (निगम शिक्षक व कवि) ने शहीदों को समर्पित एक स्व-रचित गीत प्रस्तुत करके शहीदों के बलिदान व विरासत को याद किया। उपस्थित विद्यार्थियों ने भगत सिंह द्वारा अपने जीवन के विभिन्न मोड़ों पर लिखे गए खतों को पढ़कर भगत सिंह की मानवीय व राजनैतिक प्रतिबद्धताओं को सभा के समक्ष साझा किया।
डॉ. विकास गुप्ता (प्रोफेसर इतिहास विभाग दिल्ली विश्व विद्यालय व सदस्य अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच ) ने इस अवसर पर राष्ट्रवाद की ऐतिहासिकता, उसकी व्याख्या व प्रकार को लेकर समाज-विज्ञान में चली आ रही बहस व अतीत-आधुनिकता के सरलीकृत द्वंद्व पर एक इतिहासकार की नज़र डालते हुए सभा का ध्यान आकर्षित किया। आज़ादी के संघर्ष के दौरान राष्ट्रवाद व आज़ादी के मायने को लेकर चली बहसों पर रौशनी डालते हुए उन्होंने भगत सिंह की ऐसे सभी सवालों पर तीखी और साफ़ वैचारिकता को रेखांकित किया तथा एक जनपक्षधर, इंसाफ व बराबरी पर टिके समाज के आदर्श के पहलू को ही उनके लगातार प्रासंगिक बने रहने का एक महत्वपूर्ण कारण बताया। सभा का अंत साथी कमलेश के समापन वक्तव्य व इन्क़लाबी नारे से संघर्ष के संकल्प को ताज़ा करने से हुआ।