हमारे स्कूलों में विद्यार्थियों की गिरती संख्या के संदर्भ में दाख़िलों की ऐसी कोई अंतिम तिथि तय करना एक आत्मघाती फ़ैसला है और संदेह उतपन्न करता है। ज़ाहिर है कि जब 31 अगस्त के बाद दाख़िले बंद कर दिए जायेंगे तो नामांकन गिरेगा जिसके परिणामस्वरूप शिक्षक पद ही कम नहीं होंगे बल्कि नए स्कूल खुलना तो दूर, स्कूलों को और तेज़ी से बंद करने का रास्ता भी खुलेगा। ख़ासतौर से तब जबकि पिछले कुछ वर्षों से शिक्षा अधिकार अधिनियम के अनुपालन में दाख़िले सालभर दिए ही जा रहे थे, ये फ़ैसला और भी हैरान-परेशान करता है। अंतिम तिथि तय करना निगम के 'प्रवेश अभियान' की सार्थकता व उपयोगिता पर भी, जिसके तहत हर हफ़्ते स्कूली बच्चे व शिक्षक अपने स्कूल के पड़ोस में प्रभात फेरी निकाल रहे थे, सवाल खड़े करता है। बहुत संभव है कि 31 अगस्त को प्रवेश बंद कर देने के पीछे प्रमुख कारण उस ई-गवर्नेंस व डिजिटिलाइज़ेशन का दबाव हो जिसे लोगों की सहूलियत के लिए नहीं बल्कि IT तकनीकज्ञों की असंवेदनशील समझ के अनुसार और सत्ता को संकुचित व केन्द्रीकृत करने के लिए थोपा जा रहा है। यही वजह है कि ऐसे आदेशों से, एक तिथि के बाद, दाख़िले स्कूली स्तर पर नहीं बल्कि 'उच्च स्तर' पर आवेदन करने से ही संभव हो पाते हैं। चाहे वो 'आधार' को अनिवार्य करना हो या फिर प्रवेश के लिए अंतिम तिथि घोषित करना हो, निगरानी व सत्ता तंत्र के लिए अब डाटा इतना अहम है कि उसे अपने ही बनाये क़ानून तोड़ने और बच्चों के हक़ों की अनदेखी करने से भी गुरेज़ नहीं है। बहरहाल, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने शिकायत का संज्ञान लेते हुए यह आश्वस्त किया कि वो इस मामले में कार्रवाई करके यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि क़ानून का पालन हो और बच्चों को उनका संवैधानिक हक़ मिले। .............. संपादक
प्रति
08-09-2017
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अध्यक्ष
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग
कश्मीरी गेट
विषय: दिल्ली नगर निगम व दिल्ली सरकार के स्कूलों में प्रवेश के संदर्भ में शिक्षा अधिकार क़ानून का पालन नहीं होने के बारे में
महोदय,
हम, लोक शिक्षक मंच की ओर से आपके संज्ञान में दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार के स्कूलों में दाख़िला-प्रक्रिया के शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE Act 2009) के विरुद्ध होने की शिकायत करना चाहते हैं। इस वर्ष उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा जारी एक आदेश के तहत 31 अगस्त के बाद दाख़िलों को रोक दिया गया है।
यह शिक्षा अधिकार के विरुद्ध है और इसका सीधा असर हज़ारों बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने में ज़ाहिर हो रहा है। इससे न केवल वो बच्चे प्रभावित हो रहे हैं जोकि आर्थिक, स्वास्थ्य व पारिवारिक अस्थिरता जैसे कारणों से अगस्त तक प्रवेश नहीं ले पाये, बल्कि पुनः प्रवेश पाना चाहने वाले तथा School Leaving Certificate लेकर आ रहे बच्चे भी शिक्षा के अधिकार से महरूम हो रहे हैं।
दिल्ली सरकार के स्कूलों में इस साल दाख़िले की प्रक्रिया अनिवार्य रूप से online की गई जिसमें अभिभावकों का बहुत पैसा ख़र्च हुआ। Online Registration में आधार कार्ड को अनिवार्य बनाया गया जबकि RTE के तहत किसी भी विद्यार्थी को दस्तावेज़ों के अभाव के आधार पर न तो दाख़िले से रोका जा सकता है और न ही दाख़िले के लिए परेशान किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, दाख़िलों को लेकर क़ानून का पालन न होने व लोगों को आ रही अन्य समस्याओं की ओर हम आपका ध्यान खींचने के लिए 13 मई 2017 का एक पत्र संलग्न कर रहे हैं जिसे हमने शिक्षा मंत्री, दिल्ली सरकार को भेजा था।
हम उम्मीद करते हैं कि आप नगर निगम व दिल्ली सरकार के शिक्षा विभागों को उचित निर्देश जारी करके शिक्षा अधिकार अधिनियम के पालन को सुनिश्चित करेंगे और सभी बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाने में सक्रिय भूमिका अदा करेंगे।
सधन्यवाद
फ़िरोज़ अहमद
सदस्य, लोक शिक्षक मंच
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