दीपक कटारिया
एम. एड. प्रथम वर्ष
(केंद्रीय शिक्षा संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय)
शास्त्री पार्क रेड लाइट के पास ज्यों ही माल से भरा एक रिक्शा कार के ऊपर पलट कर गिरा, त्यों ही एक साहब बाहर निकले और निकलते ही रिक्शे वाले को ऐसा तेज़ थप्पड़ मारा कि उसका होंठ फट गया और अमीरों के पीने की सबसे पसंदीदा चीज़ उसके फटे होंठ से बहने लगी। थप्पड़ मारते ही साहब बोले, 'साले चरसी, इतना बोझ ले जाया नहीं जाता तो भरते क्यों हो रिक्शे में? अभी भी गांजे के नशे में लग रहा है। लेक्चर के लिए यूनिवर्सिटी जाना है, उसके लिए भी लेट हो गया', प्रोफ़ेसर साहब ने झुंझलाकर कहा।
उधर से रिक्शे वाले ने कहा, 'साहब, गांजा पीते हैं क्योंकि इतना वज़न खींचने के कारण पूरे शरीर में दर्द रहता है! और इतना बोझ इसलिए ले जा रहा हूँ ताकि अपनी बच्ची के लिए किताबें ला सकूँ और वो अगली जमात में पढ़ सके। पर, अगर पढ़ाई इस तरह का नशा देती है जिसमें एक इंसान दूसरे इंसान को इंसान ही न समझे तो इससे भला तो हमारा गांजे का ही नशा है।'
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