दिल्ली के तीन निगमों में से दो में कर्मचारियों को महीनों से देरी से वेतन दिया जा रहा हैI इन विकट आर्थिक परिस्थितियों के संदर्भ में निगम प्रशासन व राज्य सरकार के ख़िलाफ़ निगम कर्मचारी लगातार आंदोलनरत हैं – कभी धरना प्रदर्शन करके तो कभी रैली निकालकरI ये सिलसिला पिछले कई वर्षों से जारी है और मामला अदालत में भी ले जाया गया है जहाँ निगम को कड़ी फटकार लगाई गई हैI लेकिन निगम व राज्य सरकार में शासन कर रहे दलों की आपसी खींचातानी के चलते कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल रहा हैI इस बीच सफ़ाई कर्मचारी समय-समय पर हड़ताल पर जा चुके हैं, जिसके दबाव में उन्हें तत्काल राहत भी मिली हैI शिक्षकों की ओर से अभी निगम के विभिन्न कार्यक्रमों/आयोजनों का बहिष्कार व हड़ताल का कोई फ़ैसला नहीं किया गया हैI ऐसे में जबकि निगम के सभी कर्मचारियों के बीच एकजुटता और समन्वय की ज़रूरत है, हम एक शिक्षक साथी द्वारा दर्ज एक हालिया अनुभव साझा कर रहे हैंI
.............. सम्पादक
अंकल आज बहुत खुश
हैंI आज ही उन्हें ऑफिस से पत्र मिला है जिसमें लिखा है कि कल उन्हें उनके काम के
लिए जोनल अवार्ड दिया जायेगाI खुश हों भी क्यों न, पूरे जोन से साल में सिर्फ एक
सफाईकर्मी को यह अवार्ड दिया जाता हैI अंकल बहुत ही मेहनती हैं, पूरे दिन झाड़ू
उनके हाथ से छूटती नहीं हैI छूटे भी कैसे, स्कूल इतना बड़ा जो है और निगम की ओर से
वो स्कूल में अकेले सफाईकर्मी हैंI आज जैसे ही उनको अवार्ड मिलने की खबर पता चली,
उन्होंने स्कूल के सभी लोगों से अवार्ड फंक्शन में चलने का अनुरोध कियाI पर इस ख़ुशी
के पीछे वो थोड़ा परेशान भी दिखे, हालाँकि उन्होंने खुद कोई बात नहीं बताईI मेरे
साथ ही वो अक्सर छुट्टी के समय स्कूल से मेन रोड तक आते हैंI आज उनके चेहरे का रंग
उतरा हुआ देखकर मैंने ही बात शुरु कीI मैं बोला, “आज तो आप बहुत खुश होंगे, कल
आपको अवार्ड मिलेगा”I इसपर वो बोले, “सर! ख़ुशी तो हो रही हैI आपके काम की लोग
तारीफ करते हैं तो अच्छा तो लगता हैI” अचानक उन्होंने बीच में ही रुकने को कहाI
मैंने पूछा, “क्या हुआ अंकल, आज रास्ते में ही उतर रहे हैंI” इसके जबाव में
उन्होंने जो कहा वो मुझे अन्दर तक हिला गयाI वो बोले, “सर! कल अवार्ड मिलेगा, इसलिए
मैं उधार लेने जा रहा हूँI वहां स्कूल का स्टाफ भी होगा और मेरे अन्य साथी भी
होंगेI उनके लिए कम-से-कम मिठाई का इंतजाम तो करना पड़ेगाI तनख्वाह तीन महीने से
नहीं आयी हैI घर पर तो कोई भी देखने नहीं आता है पर वहां तो खाली हाथ नहीं जा सकते
नI हम लोग तो कोई और काम भी नहीं कर सकते, इस सैलरी पर ही पूरी तरह निर्भर हैंI
एमसीडी के दूसरे सफाई वाले तो आन्दोलन करके सैलरी जबरदस्ती ले लेते हैं पर हम
स्कूल वालों को देखने वाला कोई भी नहीं हैI” मैं सोचता रहा कि दिल्ली की राजनीति
किस स्तर पर पहुँच गयी है, जहाँ आपके कर्मचारी की परेशानियाँ आपकी चिंता के केंद्र
में नहीं हैं मगर एक-दूसरे को नीचा दिखाने में आप किसी भी हद तक गिर सकते हैंI ऐसी
परिस्थितियों में क्या पुरस्कार देने का कोई औचित्य है?
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