स्कूलों पर जनविरोधी व गैरआकादमिक
आदेश नहीं सहेंगे !!
दिल्ली सरकार के
शिक्षा विभाग द्वारा 11 सितम्बर को केवल अंग्रेज़ी में जारी किए गए सर्कुलर ‘Collecting comprehensive data in respect of
students studying in Govt. Schools of Delhi’ (संख्या- No. DE.23 ( Z63)/ Sch.Br./2018/87) में स्कूलों को यह निर्देश दिए गए कि वे
बच्चों से उनके परिवार के सदस्यों (माता-पिता/अभिभावक तथा सभी भाई-बहन) के वोटर
कार्ड, आधार कार्ड, वर्तमान एवं स्थाई निवास के मालिकाना स्वरूप तथा शैक्षिक योग्यता की जानकारी इकट्ठा करें|
लोक शिक्षक मंच इस
सर्कुलर का पुरज़ोर विरोध करता है| इस आदेश को अनुचित और ख़तरनाक मानते हुए हम इसे ख़ारिज करते हैं और
निम्नलिखित आपत्तियाँ दर्ज करते हैं -
1. ऐसा प्रतीत होता
है कि सरकारों ने विशेषकर सरकारी स्कूलों को डाटा इकट्ठा करने के केंद्र बना दिया है| शिक्षकों पर
बच्चों की आधार संख्या, बैंक अकाउंट, फ़ोन नं. आदि जानकारियों को इकट्ठा करने के लिए ज़बरदस्त दबाव है| सरकार ने हमें
शिक्षक से ज़्यादा आधार व बैंकों के एजेंट बना दिया है| इस कड़ी में यह सर्कुलर हमें हमारे आकादमिक और शैक्षणिक काम से
और दूर ले जाता है और इस मायने में ग़ैरक़ानूनी भी है|
2. यह स्पष्ट हो चला
है कि दुनियाभर की नवउदारवादी सरकारें नागरिकों के आँकड़ों को अपने प्रचार और लोगों की एक-एक बात पर
नज़र रखने और उनपर नियंत्रण करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं| साथ ही, यह इन आँकड़ों को कंपनियों को उपलब्ध कराकर उनके
व्यापारिक हित साधने का खेल भी है| ऐसे में हम इस सर्कुलर को शक की निगाह से
क्यों न देखें?
3. इस सर्कुलर ने
शिक्षकों को अभिभावकों के सामने कटघरे में खड़ा करना शुरु कर दिया है| अभिभावक शक और डर के साथ स्कूल आकर
शिक्षकों से सवाल कर रहे हैं कि उन्हें ये आँकड़े क्यों चाहिए| आँकड़े देने से इंकार करने वाले या दिए हुए आँकड़ों को वापस माँगने वाले अभिभावकों की
संख्या बढ़ेगी और इस घटना के बाद माता-पिता का स्कूलों तथा शिक्षकों पर विश्वास
घटेगा| समुदाय में शिक्षकों की जिस वैधता का दुरुपयोग करके सरकार यह काम करना चाह रही है, ऐसे आदेशों
से वह वैधता ही ख़तरे में पड़ रही है|
4. यह तानाशाही का
अभिमान नहीं तो क्या है कि विद्यार्थियों की इतनी महत्वपूर्ण जानकारी माँगने से पहले सरकार को कोई
झूठे या लुभावने कारण भी बताना ज़रूरी नहीं लगा| क्या विभाग चाह रहा था कि शिक्षक
कैसे भी, साम-दाम-दंड भेद का इस्तेमाल करके यह जानकारी इकट्ठा कर लें?
5. दस दिन में इतनी
गम्भीर और विस्तारपूर्वक जानकारी इकट्ठा करने की क्या एमरजेंसी हो सकती है? स्पष्ट है कि सरकार चाहती
थी कि इससे पहले कि शिक्षक व अभिभावक इस आदेश की चाल समझ पाएँ या इसपर प्रश्न उठा पाएँ या इसके खिलाफ़ आंदोलित हो पाएँ या अदालत जा पाएँ, लाखों बच्चों व उनके
परिवारों की जानकारी उस तक पहुँच
चुकी हो|
6. यह अफ़सोसजनक है कि इस सर्कुलर ने स्कूलों
में शिक्षकों को दोराहे पर खड़ा कर दिया हैI जहाँ एक तरफ़ हमारा पेशा हमें अपने विद्यार्थियों को निजता,
गरिमा, आज़ादी और अधिकारों के प्रति सचेत करने का दायित्व देता है, वहीं दूसरी तरफ़ इस तरह के आदेश शिक्षकों को विद्यार्थियों के हितों और अधिकारों के खिलाफ़ जाकर बिचौलिये की भूमिका निभाने पर मजबूर करते हैं|
7.
सर्कुलर के साथ दिये गए फ़ॉर्म में परिवार के
मकान के स्वामित्व
के बारे में भी जानकारी माँगी गयी है - यानि, बच्चे के परिवार
को बताना होगा कि वो अपने मकान में रहता है या किराए के मकान में| इससे आदेश की नीयत के बारे में हमारा संदेह और गहरा हो जाता
है| आज देशभर में जनता को भारतीय–ग़ैरभारतीय, राष्ट्रवादी-देशद्रोही
में बाँटने की जो राजनीति चल रही है,
उसमें क्या गारंटी है कि आज धोखे से इकट्ठे किये गए ये आँकड़े कल दिल्ली में रहने वालों को ‘दिल्लीवाले’ और ‘बाहरवाले’ साबित करने के लिए इस्तेमाल नहीं किये जायेंगे? हम जानते हैं कि हमारे स्कूलों
के बच्चे जिस वर्ग से आते हैं, उसमें सभी परिवारों के पास ऐसे दस्तावेज़ नहीं होंगे या वे देना नहीं चाहेंगे| दस्तावेज़ का न होना कोई अपराध नहीं है, लेकिन यह बहुत संभव है कि भविष्य में
शिक्षा विभाग की यह मुहिम ऐसे लोगों को बेहद असुरक्षित बना दे या अपराधी तक घोषित कर दे|
8.
विभाग द्वारा डाटा की ‘जाँच, डिजिटलाइज़ेशन और विश्लेषण’ जैसे उद्देश्यों
का क्या अर्थ निकाला जाए? इस सर्कुलर में एक ‘रहस्यमयी’ थर्ड पार्टी का उल्लेख है जिसे इकट्ठा की गयी सारी जानकारियों की ‘जाँच, डिजिटलाइज़ेशन और विश्लेषण’ का ठेका दिया
जाएगा| जबकि यह भी स्पष्ट नहीं है कि ये ‘थर्ड
पार्टी’ निजी है या सार्वजानिक, इस बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता है कि यह ‘रहस्यमयी’ एजेन्सी इस डाटा का दुरुपयोग नहीं करेगी|
हम सरकार को याद दिलाते हैं कि
स्कूल शिक्षा का केंद्र हैं, डाटा उत्पादन केंद्र नहीं, हमारे विद्यार्थी चिंतनशील
प्राणी हैं, मात्र आँकड़े नहीं और हम शिक्षक जनता से जुड़े बुद्धिजीवी हैं, मूक आदेशपालक नहीं| हम सरकार से माँग करते
हैं कि इस आदेश को तुरंत प्रभाव से निरस्त किया जाए और स्कूलों पर इस तरह के जनविरोधी
व गैरआकादमिक आदेश थोपना बंद किया जाए|