प्रति
शिक्षा मंत्री
दिल्ली सरकार
विषय: दिल्ली के सरकारी व निगम स्कूलों के पूरी तरह खुलने के संदर्भ में
महोदय,
लोक शिक्षक मंच 7 फ़रवरी से कक्षा 9 से 12 तथा 14 फ़रवरी से अन्य कक्षाओं को सशरीर खोल दिए जाने के फ़ैसले का स्वागत करता है। हालाँकि, जबकि पूरे कोरोना काल के दौरान कमोबेश अनावश्यक रूप से लागू की गई स्कूलबंदी के चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जो अकादमिक व अन्य नुक़सान उठाना पड़ा है, उसकी भरपाई करना मुश्किल है।
बहरहाल, मौजूदा हालात में हम आपके समक्ष दो माँगें रख रहे हैं जिन पर अमल करने से विद्यार्थियों को हुई क्षति को कुछ हद तक कम किया जा सकेगा और उनकी सार्थक अकादमिक प्रगति को मदद मिलेगी।
1. फ़ेल न करने की नीति का समर्थन करते हुए भी हम यह समझते हैं कि महज़ तयशुदा वार्षिक कैलेंडर के अनुसार विद्यार्थियों को औपचारिक रूप से अगली कक्षा में पहुँचा देना शिक्षा या स्कूलों का उद्देश्य नहीं हो सकता। फिर, इस नाममात्र की प्रोन्नति से विद्यार्थियों को वो अकादमिक आधार उपलब्ध नहीं हो सकता है जिसकी ज़रूरत उन्हें अगली कक्षाओं के स्तर पर विषयवस्तु समझने में होगी। विभागीय दावों के विपरीत, स्कूलबंदी के इन दो वर्षों की किसी भी अवधि में अधिकतर विद्यार्थी न सिर्फ़ ऑनलाइन पढ़ाई से नहीं जुड़ पाए, बल्कि जुड़ने वालों के लिए भी इस प्रक्रिया की सार्थकता पर सवालिया निशान बने रहे। इन संदर्भों में यूँ परीक्षाएँ आयोजित करना जैसे कि सब 'सामान्य' हो पूरी तरह अनुचित व अन्यायपूर्ण है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि स्कूलों व शिक्षा की सार्थकता पढ़ने-पढ़ाने (व सांस्कृतिक, खेल-कूद जैसी अन्य गतिविधियों) में है, नाकि लकीर के फ़कीर की तरह परीक्षाओं के कर्मकांड को निभाने में। इन तथ्यों के संदर्भ में हमारा मानना है कि आगामी अकादमिक सत्र को हमेशा की तरह 1 अप्रैल से शुरु करना बेमानी होगा। इसके बदले, 10वीं तथा 12वीं कक्षाओं के अतिरिक्त शेष सभी कक्षाओं के लिए नए सत्र को एक महीने के लिए टाल कर 1 मई से शुरु करना चाहिए। इस दौरान स्कूलों को अपना सारा समय और ध्यान विद्यार्थियों की गहरी अकादमिक तैयारी में लगाना चाहिए। साथ ही, कम-से-कम 8वीं कक्षा तक, और अगर मुमकिन हो तो 9वीं के लिए भी, इस सत्र में विभाग द्वारा कोई केंद्रीकृत परीक्षा आयोजित नहीं की जानी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से हम असहाय होकर देख रहे हैं कि कैसे स्कूल खुलते ही परीक्षा लेने का ऐसा सिलसिला शुरु हो जाता है कि पढ़ने-पढ़ाने व गहन अध्ययन का समय ही नहीं बचता है। ऐसा लगता है कि हम शिक्षकों व स्कूल का मुख्य काम पढ़ाना नहीं, बल्कि परीक्षण करना है। ज़ाहिर है कि जिस पीड़ादायक परिघटना को हम पिछले कुछ वर्षों से स्कूलों में घटित होता देख रहे हैं, वो स्कूलबंदी के हालातों के चलते और भी ख़तरनाक होगी। अब जबकि बोर्ड की परीक्षाएँ का अप्रैल माह के अंतिम दिनों से शुरु होना तय है, ऐसे में शेष कक्षाओं की परीक्षाओं को आयोजित नहीं करने से या कक्षाओं के शिक्षकों के स्तर पर ही न्यूनतम समय में लेने से, स्कूलों का अधिकतम समय नियमित रूप से शिक्षण के लिए समर्पित करना भी संभव होगा। ग्रीष्मकालीन अवकाश को प्रभावित किए बिना, 1 मई से 10 मई तक के समय को अगले सत्र की शुरुआत और प्रवेश आदि की प्रक्रिया आरंभ करने के काम में लाया जा सकता है।
2. सत्र को एक महीने के लिए आगे बढ़ाकर विद्यार्थियों की गहन पढ़ाई को सुनिश्चित करना तभी संभव होगा जब ग़ैर-शैक्षणिक दायित्वों पर तैनात तमाम शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से उनके स्कूलों व कक्षाओं की सेवा के लिए वापस बुला लिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, विभाग को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि विद्यालय समय में शिक्षकों को घोड़े पर सवार किसी भी प्रकार के आदेश जारी न किए जाएँ और न ही डाटा या रपटों को जमा कराने के काम सौंपे जाएँ। वंचित वर्गों से आने वाले विद्यार्थियों को जिस तरह से स्कूलबंदी (व 'लॉकडाउन') से अतिरिक्त गंभीर नुक़सान पहुँचाया गया है, उस परिस्थिति में उन्हें तत्काल, नियमित व गहन अकादमिक मदद की ज़रूरत है। ज़ाहिर है, ऐसे में विभाग द्वारा शिक्षकों से अफ़सरशाही ढंग से पेश आकर ग़ैर-अकादमिक कामों के आदेश जारी करना विद्यार्थियों की शिक्षा का प्राणघातक अहित करेगा।
हम आशा करते हैं कि आप इन दोनों माँगों पर सलाह करके विद्यार्थियों के हित में शीघ्रातिशीघ्र फ़ैसला लेंगे।
सधन्यवाद
लोक शिक्षक मंच
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