दिल्ली के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य को समझने के लिए लोक शिक्षक मंच द्वारा 25 जनवरी 2014 को दिल्ली विश्वविद्यालय के केंद्रीय शिक्षा संस्थान में दोपहर 2 बजे एक सभा आयोजित की गई। इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर श्री राम कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले साथी राकेश को आमंत्रित किया गया था। लोक शिक्षक मंच के सदस्यों के अतिरिक्त भी कुछ साथियों ने चर्चा में हिस्सा लिया। राकेश के प्रस्ताव पर चर्चा का स्वरूप मुख्य सम्बोधन का न होकर उपस्थित लोगों द्वारा विषय पर अपने-अपने विचार/प्रश्न रखना तय हुआ। कुछ साथियों ने इस नये राजनैतिक उभार के प्रति अपने संदेह व्यक्त किये जोकि जातीय विषमता, आरक्षण, आर्थिक नीति आदि विषयों पर इसकी समझ को लेकर थे। कुछ ने माना कि विचारधारा की कथित नामौजूदगी के बावजूद इसे समर्थन नहीं तो सहानुभूति प्राप्त हो रही है। यह बात भी सामने आई कि इस परिघटना से लोगों में एक स्तर पर राजनैतिक सक्रियता व हस्तक्षेप की लालसा और सम्भावना बढ़ रही है। इसे वर्तमान व्यवस्था की सीमाओं के अंदर एक बेहतर विकल्प तो माना जा सकता है पर क्योंकि इसने भ्रष्टाचार की एक सतही व्याख्या को जन-मुद्दा बनाने की कोशिश की है इसलिए यह व्यवस्थाजनक अन्याय को पहचानने से बचती है - जोकि वर्गीय शोषण और लोकहित के संदर्भ में ख़तरनाक है। इस विचार का ज़ोरदार खंडन किया गया कि समाज व राजनीति में ताक़तों का उठान व पतन किसी प्राकृतिक नियम की तरह होता है।
कुल मिलाकर सभा इस नतीजे पर पहुँची कि इस प्रशासन व सरकार से इनकी ग़लत राजनीति की वजह से अधिक उम्मीद न रखते हुए, इसपर जनहित के व्यापक मुद्दों पर - सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, मज़दूरों की कार्य परिस्थितियाँ आदि - निरंतर दबाव बनाए रखना चाहिए। इससे राजनैतिक उभार की वर्तमान परिस्थितियों को जनपक्षधरता की तरफ़ मोड़ने में कामयाबी हासिल हो सकती है और सत्ता की दोगली-जनविरोधी राजनीति लोगों के समक्ष बेनक़ाब भी हो सकती है। यह सब करते हुए भी हमें अपनी विचारधारात्मक रूप से पुख्ता ज़मीन पर ही लोगों के बीच सही राजनैतिक समझ बनाने हेतु काम करते रहना है, चाहे वो किसी भी स्तर पर हो।
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