लोक शिक्षक मंच द्वारा दाखिले के लिए कुछ स्कूलों को पत्र लिखा गया है जो कि हमारे सबको दाखिला अभियान का हिस्सा है। संपादक
Øe lañ 06 /अप्रैल / 2015 fnukad % 26 / अप्रैल / 2015
प्रति
उप-प्रधानाचार्या
उच्च माध्यमिक
कन्या विद्यालय
ढक्का, दिल्ली
विषय: विद्यालय में दाखिला प्रक्रिया के संदर्भ में।
महोदया,
लोक शिक्षक मंच सार्वजनिक स्कूल व्यवस्था, बच्चों और शिक्षक साथियों के हितों को एक मानते हुये आपके साथ कुछ विचार व चिंताएँ साझा करना चाहता है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि स्कूलों में हमें किन विषम परिस्थितियों और प्रशासनिक दबाव के तहत काम करना होता है। इसके बावजूद आज भी सरकारी स्कूल और शिक्षक सभी बच्चों के शिक्षा अधिकारों के पक्ष में तहेदिल से कार्यरत हैं और अपनी लोकतान्त्रिक ज़िम्मेदारी निभाने में जुटे हुये हैं। फिर भी यह एक कड़वी हक़ीक़त है कि देश के लाखों बच्चे आज भी स्कूलों के बाहर हैं। हमारे इलाक़े में भी ऐसे बच्चे हैं। दूसरी तरफ हम एक ऐसे खतरनाक दौर में हैं जिसमें कि शिक्षा को निजी मुनाफा कमाने के लिए इस्तेमाल करने को आतुर ताक़तें सरकारी स्कूल व्यवस्था व शिक्षकों के विरुद्ध लगातार कुप्रचार कर रही हैं, जनता व हमारे बीच दूरी पैदा की जा रही है और गिरते नामांकन को हमारी विफलता व लोगों से अलगाव दोनों के सबूत के रूप में दिखाया जा रहा है। यह कहना अफसोसनाक है कि अक्सर हमारे स्कूलों में वो बच्चे दाखिला लेने आते हैं जिनके माता-पिता उन्हें ‘और कहीं’ नहीं पढ़ा सकते, यानि सरकारी स्कूल उनका अंतिम विकल्प हैं। हम समझते हैं कि उपरोक्त संदर्भों में हमारी कानूनी, पेशागत व नैतिक सभी तरह की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि हम अपने स्कूलों के माहौल व प्रवेश प्रक्रिया को समाज के अंतिम पायदान पर खड़े वर्गों के हित में सहज-सुलभ बनाएँ।
लोक शिक्षक मंच सार्वजनिक स्कूल व्यवस्था, बच्चों और शिक्षक साथियों के हितों को एक मानते हुये आपके साथ कुछ विचार व चिंताएँ साझा करना चाहता है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि स्कूलों में हमें किन विषम परिस्थितियों और प्रशासनिक दबाव के तहत काम करना होता है। इसके बावजूद आज भी सरकारी स्कूल और शिक्षक सभी बच्चों के शिक्षा अधिकारों के पक्ष में तहेदिल से कार्यरत हैं और अपनी लोकतान्त्रिक ज़िम्मेदारी निभाने में जुटे हुये हैं। फिर भी यह एक कड़वी हक़ीक़त है कि देश के लाखों बच्चे आज भी स्कूलों के बाहर हैं। हमारे इलाक़े में भी ऐसे बच्चे हैं। दूसरी तरफ हम एक ऐसे खतरनाक दौर में हैं जिसमें कि शिक्षा को निजी मुनाफा कमाने के लिए इस्तेमाल करने को आतुर ताक़तें सरकारी स्कूल व्यवस्था व शिक्षकों के विरुद्ध लगातार कुप्रचार कर रही हैं, जनता व हमारे बीच दूरी पैदा की जा रही है और गिरते नामांकन को हमारी विफलता व लोगों से अलगाव दोनों के सबूत के रूप में दिखाया जा रहा है। यह कहना अफसोसनाक है कि अक्सर हमारे स्कूलों में वो बच्चे दाखिला लेने आते हैं जिनके माता-पिता उन्हें ‘और कहीं’ नहीं पढ़ा सकते, यानि सरकारी स्कूल उनका अंतिम विकल्प हैं। हम समझते हैं कि उपरोक्त संदर्भों में हमारी कानूनी, पेशागत व नैतिक सभी तरह की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि हम अपने स्कूलों के माहौल व प्रवेश प्रक्रिया को समाज के अंतिम पायदान पर खड़े वर्गों के हित में सहज-सुलभ बनाएँ।
हम आपसे अपील करते हैं कि अपने स्कूल को
सच्चे अर्थों में जनता की संस्था के रूप में खड़ा करें जहाँ से एक भी प्रार्थी
निराश या खाली हाथ ना लौटे।
सधन्यवाद
सदस्य,
संयोजक समिति सदस्य, संयोजक समिति सदस्य, संयोजक समिति
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1 comment:
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