प्रति दिनांक
: 04 जुलाई, 2015
संपादक
विषय : दिल्ली सरकार के
स्कूलों में दाखिले के लिए आधार कार्ड अनिवार्य करके सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना
के संदर्भ में ।
महोदया/महोदय,
लोक शिक्षक मंच शिक्षा के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षकों का एक समूह है जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था
के मजबूतीकरण के लिए प्रतिबद्ध एवं संघर्षरत है। लोक शिक्षक मंच ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग, दिल्ली के समक्ष सरकारी स्कूलों में बच्चों की प्रवेश प्रक्रिया को लेकर एक शिकायत की थी। सरकारी स्कूलों में प्रशासन के आदेशों
के दबाव में विभिन्न कक्षाओं में प्रवेश के लिए बच्चों व उनकी माताओं के आधार
कार्ड की प्रति और बच्चे के बैंक खाते का ब्यौरा माँगा जा रहा है। इस ग़ैर-कानूनी
माँग के कारण न सिर्फ अभिभावकों को परेशानी हो रही है,
उनका समय व धन बर्बाद हो रहा है, उन्हें धक्के खाने पड़ रहे
हैं बल्कि बच्चों के सामने शिक्षा से भी वंचित होने का खतरा बढ़ गया है। शिकायत के जवाब में मंच को आयोग से पत्र
संख्या C/RTE/DCPCR/15-16/06/1457 (दिनाँक 4-6-15) और शिक्षा
निदेशालय का संलग्न पत्र संख्या DE 23 (540)/Sch.Br/2015/DCPCR/513 (दिनाँक 1-5-15) प्राप्त हुआ। मंच न केवल जवाब से असंतुष्ट है बल्कि इसे लेकर निराश भी
है।
शिक्षा
निदेशालय का कहना है कि किसी
को आधार
कार्ड व बैंक खाता न होने के कारण दाखिले से मना न किया
जाए मगर साथ ही वह यह भी
स्पष्ट करता है कि प्रवेश के
समय इन्हें फॉर्म में
दर्ज करना ज़रूरी है! यह न सिर्फ़ समस्या को टरकाने का रवैया दर्शाता है बल्कि क़ानूनी स्थिति का भी
मखौल उड़ाता है। यह सर्वविदित है कि बैंक खाते खोलने के लिए भी आधार कार्ड का होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है।
इसके लिए जारी सूची में से कोई भी दस्तावेज़ प्रस्तुत किया जा सकता है। रही बात
खातों को अनिवार्य रूप से आधार से
जोड़ने की तो यह भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना ही हुई। ऐसे में आयोग व शिक्षा विभाग को ऐसे आदेशों को मानने व जारी करने के बजाए अदालत के आदेशों का हवाला देकर
क़ानून की स्थिति के आलोक में आधार की अनिवार्यता से जुड़े प्रशासनिक आदेशों के
ग़ैर-क़ानूनी होने की बात साफ़ करनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार कहा है (सितंबर 2013,
मार्च 2014 व मार्च 2015) कि वो आधार की शर्त लगाने वाले आदेश जारी करने वाले अधिकारियों के
विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई करेगा।
उपरोक्त
तथ्यों के संदर्भ में उस प्रशासनिक आदेश की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई जिसमें सक्षम अधिकारी ने वज़ीफ़े के लिए
खातों को आधार संख्या से जोड़ने के आदेश जारी किये हैं। ऐसा प्रतीत होता है
कि आधार की अनिवार्यता संबंधी कोई लिखित आदेश असल में जारी ही नहीं किए गए हैं मगर
प्रधानमंत्री से लेकर सचिव तक कुल प्रशासन मौखिक निर्देशों के बल पर इसे जबरन
थोपने पर तुला हुआ है। यह प्रशासन का कानून के प्रति शर्मनाक बर्ताव दर्शाता है और
संदेश देता है कि वो अपनी मनमर्ज़ी को संवैधानिक पाबंदियों से परे मानता है।
आधार को
लेकर न्यायालयों में जो सवाल खड़े किये गए हैं वो इसकी अपमानित करने वाली व इंसानी गरिमा के
विरुद्ध बायोमैट्रिक प्रणाली, निजता के उल्लंघन, डाटा की असुरक्षा, संसद में इसके क़ानून का पारित न होना
आदि गंभीर मुद्दों से जुड़े हैं। सभी बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना आयोग
व शिक्षा विभाग का फ़र्ज़ है इसलिए इन्हें 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों के लिए
किसी भी तरह की बायोमैट्रिक पहचान की छाप - जिसमें इंसानों को जानवरों या निर्जीव
वस्तुओं की तरह चिन्हित किया जाता है - को स्वीकृति नहीं देनी
चाहिए। यह
अदालत के आदेशों के भी अनुकूल
होगा। हमें याद रखना चाहिए कि दक्षिण अफ्रीका में गाँधी द्वारा लड़ा गया एक आंदोलन उस प्रावधान के खिलाफ था जिसके अंतर्गत सभी
भारतीयों को अपनी उँगलियों के निशान पुलिस के पास दर्ज कराने थे और उन निशानों से युक्त एक पहचान-पत्र सार्वजनिक स्थलों पर
धारण करना
था। इस तरह के आदेशों का विरोध
इसलिए भी हुआ था -
और हो रहा है - क्योंकि पुलिस के पास उँगलियों की छाप दर्ज कराने का सिलसिला
अपराधियों के संदर्भ में शुरु हुआ था। सबकी बायोमैट्रिक जानकारी का एक स्थाई
रिकॉर्ड रखने का अभिप्राय है कि सब संदिग्ध की श्रेणी में डाल दिए गए हैं! चाहे वो
बच्चे ही क्यों न हों। हम इस घिनौने विचार का विरोध करते हैं। साथ ही, जानवरों को निजताहीन प्राणी समझकर उनके
मालिकों की सुविधा के लिए उन्हें गोदने आदि की जो अमानवीय परम्परा रही है, बायोमैट्रिक प्रणाली उसी तर्ज पर आधारित है। बच्चों को ऐसे प्रशासनिक आदेशों - वो भी ग़ैर-क़ानूनी - के पालन की मजबूरी के बहाने हम उनकी
मासूमियत का फायदा उठाकर उन्हें आधुनिक तकनीक के मानव व स्वतंत्रता विरोधी चरित्र के खतरों से पूरी तरह
अनजान बना देंगे। जब वो 18 से पहले
कुछ निजी
अधिकारों - जैसे शादी - से इसलिए वंचित होते हैं कि वो पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं हैं तब फिर इस उम्र से
पहले उनकी बायोमैट्रिक पहचान दर्ज करके उन्हें जबरन (या माता-पिता की सहमति से
भी) एक ऐसे
अधिकार को खोने वाला निर्णय लेने पर कैसे मजबूर किया जा सकता है जो एक बार छिन गया
तो फिर प्राप्त नहीं हो सकता? जिस तरह वयस्क होने से पहले किसी को क़ानून में इतना परिपक्व नहीं माना जाता है कि वो
अपनी शादी या सम्पत्ति का फैसला कर पाए, उसी तरह गरिमा व निजता से जुड़ी हुई बायोमैट्रिक पहचान अपनाने व दर्ज कराने के संदर्भ में बच्चों को पूर्ण संरक्षण
की ज़रूरत है, न कि जबरन
या धूर्त दोहन की।
लोक
शिक्षक मंच माँग करता है कि स्कूलों में प्रवेश/वज़ीफ़ा प्रक्रिया सहित बच्चों पर आधार लादने के सभी प्रशासनिक आदेशों, प्रावधानों पर तत्काल प्रभाव से
पूरी तरह रोक लगाई जाए ताकि
बच्चों को अपमानित करने वाली प्रक्रिया से संरक्षण मिले, उनकी गरिमा को ठेस न पहुँचे, उनके शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन न हो
और सर्वोच्च न्यायालय
की भी अवमानना न होने पाए।
सधन्यवाद
रंजीता सरोज
राजेश
फिरोज
सदस्य
सदस्य
सदस्य
संयोजक समिति
संयोजक समिति
संयोजक समिति
लोक शिक्षक मंच
लोक शिक्षक मंच
लोक शिक्षक मंच
संलग्न :
1.
शिक्षा निदेशक, दिल्ली को लोक शिक्षक
मंच का शिकायती पत्र ।
2. बाल अधिकार संरक्षण
आयोग, दिल्ली का लोक शिक्षक मंच को जवाबी पत्र ।
3. शिक्षा निदेशालय,
दिल्ली का बाल अधिकार संरक्षण आयोग, दिल्ली को जवाबी पत्र ।
4. शिक्षा निदेशालय,
दिल्ली का आधार कार्ड और बैंक खाते के संदर्भ में सर्क्युलर ।
5.
सर्वोच्च न्यायालय के आधार कार्ड के संदर्भ में
विभिन्न आदेशों की प्रतियां ।
No comments:
Post a Comment