Sunday, 20 March 2016

अनुवादित लेख: रोहित वेमुला को किसने मारा?


आनंद तेलतुम्बड़े

रोहित वेमुला, हैदराबाद विश्वविद्यालय के 26 वर्षीय दलित पीएचडी स्कॉलर ने अपने आत्महत्या पत्र में किसी, दोस्त या दुश्मन, को उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया। इसका इस्तेमाल उसके हत्यारों ने उनकी बेगुनाही का दावा करने के लिए किया।  

वह कार्ल सगान की तरह लिखना और ब्रह्मांड की खोज में अपनी कल्पना को उड़ान देना चाहता था वह अपनी अंतरात्मा की गहराई तलाश रहा था, इस जाति-ग्रसित समाज में एक दलित की पीड़ित अंतरात्मा जो अस्तित्व की निरर्थकता के निष्कर्ष पर जा पहुंची। उसकी मौत से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आत्महत्या खुद की हत्या करना नहीं है; बल्कि विशिष्ट हालातों में हुई मौत है, जिसमें परम्पराएं, रीति-रिवाज व संस्थाएं शामिल हैं, ऐसी मौत जो हत्यारों के चेहरों पर पर्दा डाल देती है|

रोहिके विशिष्ट हालात विश्वविद्यालय परिसर में उस जुगाडू टेंट के रूप में मौजूद हैं जिसमें हॉस्टल से निकाले जाने के बाद वह और उसके 4 साथी पिछले 12 दिनों से रह रहे थे। उसकी स्थिति आत्म-सम्मान के लिए चल रहे संघर्ष में भी ज़िन्दा है, जो उसके बाद भी चल रहा है। 18 दिसंबर को उप-कुलपति को लिखा मर्मभेदी ख़त, अपने दोस्तों के सामने 27वें जन्मदिन की पार्टी ना दे पाने का बोझ (जो कुछ ही दिन दूर था), उसकी माँ को आखिरी फ़ोन, जिसे उसने एक गहरा संकेत देते हुए बीच में ही काट दिया। इतनी जानकारी काफी है पर्दा हटाने के लिए, हत्या के लिए ज़िम्मेदार हालातों और संभवत: लोगों को दुनिया के सामने लाने के लिए।  

इस केस का विस्तृत ब्यौरा सार्वजनिक है| ABVP HCU के अध्यक्ष नंदनम सुशील कुमार पर एक कथित हमला हुआ, जिसके लिए 5 दलित छात्रों को, जिनमें से एक रोहि था, सज़ा दी गयी। यह हमला आज तक साबित नहीं हो पाया है। बल्कि धिकारिक रिपोर्ट, डॉक्टर की जांच, और गवाहों ने यह स्थापित किया कि ऐसा कोई हमला नहीं हुआ था। फिर भी दलित विद्यार्थियों को सज़ा दी गयी। इसके बाद प्रशासन के निरंतर उतार-चढ़ावों ने यह साबित कर दिया कि जाति पूर्वाग्रहों, विश्वविद्यालय के बाहर से दबाव और प्रशासन की अकुशलता ने मिलकर कैसे खेल खेला।

इस हादसे को मोदी सरकार के श्रम और रोज़गार मंत्री, बंडारू दत्तात्रेय, के ख़त ने नया मोड़ दे दिया।  HRD मंत्री स्मृति रानी को लिखे इस ख़त में बंडारू ने HCU को जातिवादी, अतिवादी, और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का अड्डाबताया और आवश्यक कार्रवाकी मांग की। बंडारू ने अम्बेडकर विद्यार्थी एसोसिएशन (ASA) द्वारा याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ प्रदर्शन को उनकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का सबूत बताया।  
ईरानी के विवादग्रस्त दफ्तर (जिसके अनुसार शायद HRD का अर्थ है हिंदुत्व रिसोर्स डेवलपमेंट’) ने सांकेतिक ढ़ंग से उप-कुलपति को लिखा, उसी तरह जिस तरह IIT मद्रास में अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल को प्रतिबंधित किया गया था और जिसके बाद देश-भर में प्रदर्शन हुए।  

MHRD से एक-के-बाद-एक चार ख़त भेजने से यह समझा जा सकता है कि VC पर विद्यार्थियों के खिलाफ कदम उठाने को लेकर कितना दबाव बना होगा। मंत्री से मिले इस सहयोग ने आंतरिक तौर पर जातिवादी प्रशासन को ऐसी सज़ा देने के लिए उत्साहित किया जो विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में मौत की सज़ा से कम नहीं थी। बिना हॉस्टल, प्रशासन इमारतों में घुसे, सार्वजानिक जगहों को इस्तेमाल करे और अन्य विद्यार्थियों से बात करे शोधार्थी कैसे रह सकते हैं? इन सबका मतलब ही शोधार्थी की मृत्यु होता है।

निष्कासन के बाद ये विद्यार्थी हैदराबाद की ठिठुरती ठण्ड में बाहर ही रहने लगे लेकिन फिर भी VC को अपने दुराचार की गंभीरता का एहसास नहीं हुआ| दिसंबर 18 को रोहि ने VC पर ख़त में दलित छात्रों और ABVP के बीच झगड़े में व्यक्तिगत दिलचस्पी लेने का इल्ज़ाम लगाया था।  उसने व्यंग्यात्मक  ढंग से HCU में दलित छात्रों की स्थिति उजागर की और लिखा कि VC को दाखिले के समय ही दलित छात्रों को ज़हर और फांसी का फंदा दे देना चाहिए और उसके जैसे विद्यार्थियों के लिए इच्छामृत्यु का प्रबंध कर देना चाहिए।    

यह ख़त किसी भी ज़िम्मेदार व्यक्ति के लिए विद्यार्थी की मानसिक दशा को गंभीरता से लेने का कारण  हो सकता था, ऐसा विद्यार्थी जो निरंतर उत्पीड़न और गरीबी के कारण स्वयं को निरुपाय महसूस कर रहा था और जिसे जुलाई से वज़ीफ़ा भी नहीं मिला था।  इसी वज़ीफ़े से वह गुंटूर में अपनी माँ और छोटे भाई को मदद करता था।   
  
एक तरफ तो सरकार बाबासाहेब अम्बेडकर की 125वीं जन्मतिथि पर खर्चा करने का दिखावा करके अपनी छवि निर्मित करने की कोशिश कर रही है ताकि दलितों को कांग्रेस से खींचकर अपनी तरफ कर सके। दूसरी तरफ सरकार उन सभी स्वतंत्र व मूलभूत बातों को दबा देना चाहती है जिनके लिए अम्बेडकर खड़े थे| अम्बेडकर ने प्राथमिक शिक्षा के बनिस्बत उच्च शिक्षा को इसलिए महत्व दिया क्योंकि उनका मानना था कि उच्च शिक्षा ही जनमानस में वो आलोचनात्मक नज़रिया और नैतिक शक्ति पैदा कर सकती है जिससे ताकतवर तत्वों के जातीय पूर्वाग्रहों को चुनौती दी जा सके।  

जैसे पूरी दुनिया में असहमति व्यक्त करने वाले मुसलमान युवाओं को आतंकवादी घोषित करना आसान है, वैसे ही दलित-आदिवासी युवाओं पर अतिवादी, जातिवादी और राष्ट्र-विरोधी होने का ठप्पा लगा देना भी आसान है।    

भारतीय जेलें ऐसे निर्दोष युवाओं से भरी पड़ी हैं जिन पर सालों से राजद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियों में हिस्सा लेने का इल्ज़ाम है| जिस आक्रामक रूप से भाजपा संस्थाओं, विशेषत: उच्च शिक्षा संस्थानों, के भगवाकरण में लगी है उससे यह पूर्वाभास लगाया जा सकता है कि आने वाले वर्षों में अभी और रोहि बनाए जाएंगे 

वे लोग जो चुपचाप इस घृणित प्रक्रिया, भारत की बहुवादी संरचना के टूटने और ब्राह्मणवादी प्रभुत्व की पुनर्स्थापना को दर्शक बने देख रहे हैं, वे भी उतने ही दोषी हैं जितने कि वे जो प्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल हैं।  

तेलतुम्बड़े लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा समिति के साथ नागरिक अधिकार कार्यकर्ता व लेखक हैं।






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