Thursday, 17 November 2016

टेक महिंद्रा द्वारा शिक्षकों के आत्मसमान पर कुठाराघात किये जाने के विरोध में

लोक शिक्षक मंच पूर्वी दिल्ली नगर निगम में टेक महिंद्रा द्वारा निगम शिक्षकों के लिए आयोजित सेवाकालीन सेमिनार में शिक्षकों के प्रति अपमानजनक व्यवहार की सख़्त आलोचना करता है और इस संबंध में निगम शिक्षक संघ (MCTA) द्वारा टेक महिंद्रा के ख़िलाफ़ की गई शिकायत/कार्रवाई का स्वागत करते हुए उसका पूर्ण समर्थन करता है। हमें इस बात की ख़ुशी है कि शिक्षक संघ की शिकायत का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए महापौर महोदय ने यह आदेश जारी किये हैं कि टेक महिंद्रा द्वारा लिए जा रहे शिक्षकों के सेमिनारों को तत्काल प्रभाव से रोका जाए। 

                शिक्षक संघ द्वारा उठाया गया यह प्रश्न बेहद प्रासंगिक हैं कि जब निगम वित्तीय कारणों से अपने शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों के वेतन नियमित रूप से देने में अक्षम रहता है तथा वित्तीय संकट से जूझ रहा है, तो फिर ऐसे में निगम के शिक्षा विभाग द्वारा अपने स्कूल व अन्य संसाधन टेक महिंद्रा को किस समझदारी से सौंपे गए हैं। क्या यह आपराधिक स्तर की ग़ैर-ज़िम्मेदारी नहीं है? क्या यह निगम की ज़िम्मेदारी के अधीन स्थित सार्वजनिक संसाधनों को निजी संस्थाओं के हितों को समर्पित करने का कृत्य नहीं है? क्या यह शिक्षकों व अन्य निगम कर्मचारियों के साथ धोखा व उनके जले पर नमक छिड़कना नहीं है? शिक्षक संघ का यह पूछना भी बेहद लाज़मी है कि जब शिक्षा विभाग के अंतर्गत आर ऐंड ई (R and E) नाम का एक केंद्र शिक्षकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण के उद्देश्य से पहले ही कार्य कर रहा है तो फिर निजी संस्थाओं को इस काम का ठेका देने का औचित्य क्या है। क्या ऐसे में इस केंद्र के अस्तित्व, भूमिका व भविष्य तक पर सवाल खड़े नहीं होते हैं? क्या यह निगम के तहत वर्षों से बिना किसी निजी स्वार्थ व मुनाफ़े के उद्देश्यों से सार्वजनिक शिक्षा के विस्तार व सुदृढ़ीकरण के लिए काम कर रहे केंद्रों को बंद करके निजी संस्थाओं को बढ़ावा देने की कवायद नहीं है?

पिछले कुछ वर्षों से लोक शिक्षक मंच ने भी लगातार शिक्षक साथियों के बीच सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था में सुनियोजित रूप से निजी संस्थाओं व NGO के फैलाये जा रहे जाल के ख़तरे की तरफ़ पर्चों, लेखों, पुस्तिका, पत्र-व्यवहार व औपचारिक-अनौपचारिक गोष्ठियों के माध्यम से ध्यानाकर्षित करने की कोशिश की है। इस संबंध में हमने कुछ वर्ष पहले से ही हमारे स्कूलों में NGO के बढ़ते हस्तक्षेप के दुष्परिणामों को सैद्धान्तिक व अनुभवजनित दोनों स्तरों पर पहचान कर इनका मुखर विरोध करना शुरु कर दिया था। इसका एक प्रमाण हमारे साथी द्वारा टेक महिंद्रा पुरस्कार लेने से इनकार करना था तो एक अन्य प्रमाण विभाग द्वारा हमारे स्कूलों में चल रहे महिंद्रा फॉउंडेशन द्वारा चलाये जा रहे 'नन्हीं कली' कार्यक्रम की अनुमति को आगे नहीं बढ़ाना था। हमारा अनुभव भी हमारी इस समझ को पुनर्बलित करता है कि चाहे कोई फ़ंड देने वाला कॉरपोरेट हो, या कोई दान-पुण्य करने वाली धार्मिक क़िस्म की संस्था हो, या किसी प्रकार के उत्साही दिखने वाले NGO हों, हमारे स्कूलों के लिए इनके क़दम घातक हैं क्योंकि समाज व शिक्षा के प्रति इनकी समझ व नीयत दोनों निजी स्वार्थ को प्रोत्साहित करने वाली होती हैं। देर-सवेर इसका सबूत इनके रवैये में प्रकट हो जाता है जिसका ख़ामियाज़ा कभी हमारे विद्यार्थियों को अपमानित होकर चुकाना पड़ता है तो कभी हम शिक्षकों को।
हम एक बार फिर MCTA को शिक्षक स्वाभिमान के बचाव में टेक महिंद्रा के विरुद्ध मोर्चा खोलने पर बधाई देते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि शिक्षक संघ आत्मसम्मान के इस संघर्ष को उत्तरी व दक्षिणी निगम तक विस्तारित करेगा और इस कड़ी में टेक महिंद्रा द्वारा प्रायोजित शिक्षक पुरस्कार का पूर्ण बहिष्कार करने का आह्वान देगा। हम सभी शिक्षक साथियों से अपील करते हैं कि एक तो अपने स्कूलों में बिना विभागीय अनुमति के किसी NGO को घुसपैठ न करने दें और दूसरे औपचारिक अनुमति लेकर काम कर रहे NGO को न्यूनतम व सीमित स्थान/सहयोग दें। हम शिक्षा विभाग से भी माँग करते हैं कि टेक महिंद्रा व हमारे स्कूलों में हस्तक्षेप कर रहे सभी अन्य NGO के अनुमति-पत्र रदद् किये जाएँ, शिक्षा विभाग व स्कूलों से निजी संस्थाओं को बाहर रखने का फ़ैसला नीतिगत स्तर पर लिया जाये तथा विभाग के अंतर्गत ज़िम्मेदार केंद्रों, पुस्तकालयों, कार्यक्रमों आदि के सार्वजनिक प्रबन्ध को और मज़बूती से खड़ा किया जाये।   

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