Tuesday, 19 February 2019

दिल्ली के शिक्षकों के लिए टैब को अनिवार्य करने वाले आदेश के खिलाफ़



प्रति

शिक्षा मंत्री
दिल्ली सरकार, दिल्ली

विषय: शिक्षकों के लिए टैब को अनिवार्य करने वाले आदेश के खिलाफ़

महोदय

लोक शिक्षक मंच आपके समक्ष दिल्ली सरकार के स्कूलों के सभी शिक्षकों के लिए टैब को अनिवार्य करने वाले आदेश के खिलाफ़ अपनी आपत्ति दर्ज करना चाहता है| दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के एक हालिया आदेश में प्रत्येक शिक्षक को 15,000 रुपए का टैब खरीदना अनिवार्य किया गया है|
07.01.2019 के आदेश के अनुसार 'All referred teachers are supposed to buy the tablet and submit bill by 15.01.2019 failing which  no re-imbursement be made and action as deemed fit will be initiated against the defaulting teachers.' अर्थात, अगर किसी शिक्षक ने 15 जनवरी तक टैब नहीं खरीदा तो उनको इसका भुगतान नहीं किया जाएगा| हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या टैब न खरीदने पर शिक्षक की तनख्वाह से पैसे काट लिए जाएंगे या फिर उन्हें कोई और दंड दिया जाएगा|
हम आपके समक्ष टैब की खरीद और शिक्षा में इसके उपयोग, दोनों को अनिवार्य करने से सम्बन्धित कुछ प्रश्न एवं चिंताएं साझा कर रहे हैं

किसी भी वस्तु की खरीद अनिवार्य करना असंवैधानिक

 हम बाज़ार से क्या सामान खरीदते हैं, यह सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हमारे पास पैसा है या नहीं| यह इस पर भी निर्भर करता है कि एक उपभोक्ता के रूप में हमारे मूल्य और आवश्यकताएं क्या हैं। शिक्षा विभाग द्वारा टैब की आवश्यकता से संबंधित कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं किए गए हैं, इसलिए इसकी ज़रूरत पर प्रश्न उठना वाजिब है| कोई भी वस्तु खरीदना एक जटिल तथा चेतन कृत्य है| जो कंपनियां ये माल बेचती हैं उनके खरीददार बनना या न बनना हमारे व्यक्तिगत पर्यावरणीय-आर्थिक-राजनीतिक उसूल तथा समझ का प्रश्न है, इसलिए किसी को कुछ भी खरीदने पर मजबूर करना असंवैधानिक प्रतीत होता है| भले ही खरीद की वस्तु निजी सम्पत्ति न हो, जैसे कि स्कूल में इस्तेमाल होने वाले ये टैब, लेकिन खरीदने की प्रक्रिया में लगने वाले विचार, मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया और मेहनत चेतनाविहीन नहीं होते| इसलिए किसी भी शिक्षक को टैब न खरीदने पर दण्डित नहीं किया जा सकता| साथ ही, शिक्षण जगत में पैसों से संबंधित दंडों का चलन शुरु करना बौद्धिक दरिद्रता का सूचक है|

हालांकि, अगर दिल्ली सरकार शिक्षकों को स्वयं टैब खरीदकर देती है, तब भी निम्नलिखित आपत्तियाँ एवं चिंताएँ अपनी जगह बनी रहेंगी -   


गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ बढ़ाने में एक और कड़ी

हमने देखा है कि डिजिटलीकरण तथा ई-गवर्नेंस के नाम पर स्कूलों में काम अनावश्यक रूप से बढ़ा है, डुप्लीकेट हुआ है तथा मानवीय गलतियां सुधारना बेहद मुश्किल होता गया है| दाखिले, नतीजे, बैंक खाते, आधार संख्या, वोटर ID की मांग, मिशन बुनियाद की दैनिक प्रगति के डाटा आदि के डिजिटलीकरण ने शिक्षकों पर पहले ही अत्यधिक दबाव बना रखा था, लेकिन टैब को अनिवार्य करना हमें पूरी तरह से डाटा एंट्री ऑपरेटर बना देने की साज़िश है| हम शिक्षकों का व्यापक अनुभव बताता है कि डिजिटलीकरण से गैर-शैक्षणिक काम घटे नहीं बल्कि बढ़े हैं और न ही शिक्षण प्रक्रिया मुक्त-सुगम हुई हैI यहाँ तक कि इसने बच्चों के अधिकारों को भी दुरूह बनाकर छीना है|
जब डाटा एंट्री स्कूली कंप्यूटर पर होती है और शिक्षण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए कंप्यूटर लैब विकसित किये जा रहे हैं तो प्रत्येक शिक्षक को टैब किस आवश्यकता के तहत दिए जा रहे है? मौजूदा व्यवस्था की किन कमियों को पूरा करने के लिए जनता के करोड़ों रुपए इनमें खर्च किए जा रहे हैं?


शिक्षा के शिथिलीकरण का खतरा

अगर विद्यार्थियों की उपस्थिति भरने से लेकर गृहकार्य, पाठ-योजना, शिक्षण तथा शिक्षक का मूल्यांकन आदि स्कूल की प्रत्येक गतिविधि को टैब पर भरवाया जाएगा तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कल शिक्षकों को ऐसी पाठ-योजना या गृहकार्य बनाने के लिए मजबूर किया जायेगा जो कंप्यूटर में पहले से फीड किए गए सॉफ्टवेयर के अनुसार हो| इससे निश्चित ही शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षक की अकादमिक स्वायत्ता में कमी आएगी| यह चलन हर विषय से उसकी विशिष्टता छीनकर उसे खोखला कर देगा| उदाहरण के तौर पर, भाषा, गणित. सामाजिक विज्ञान, विज्ञान आदि के शिक्षण और मूल्यांकन को जांचने वाले सॉफ्टवेयर इनकी बारीकियों को पकड़ने में असमर्थ होंगे जिसका परिणाम यह होगा कि शिक्षकों को अपने शिक्षण को कुछ कंप्यूटरीकृत स्टैण्डर्ड बिन्दुओं के अनुसार ढालने पर विवश होना पड़ेगा|
इतना ही नहीं, टैब के अनिवार्य इस्तेमाल से विद्यार्थियों में यह भ्रामक संदेश जायेगा कि शिक्षण में यांत्रिकरण गुणवत्ता का परिचायक है। इससे उभरती पीढ़ियों में तकनीकी उपकरणों के प्रति एक अंधभक्ति का भाव और मज़बूत होगाI विकास के नाम पर स्कूलों को तकनीकी उपकरणों से पाट देने से लोगों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भ्रम तो पैदा किया जा सकता है, लेकिन यह शिक्षण को बौद्धिक गहराई व स्वायत्तता के उदेश्यों से भटका देगाI यह अनिवार्यता संसाधनों के न्यायोचित व विवेकपूर्ण उपयोग की व्यक्तिगत व सामूहिक ज़िम्मेदारी के एहसास को पनपने में भी बाधा पहुँचाएगी।


शिक्षकों की स्वायत्तता पर प्रश्न

शिक्षण में हमेशा से ही चॉक, ब्लैकबोर्ड जैसी मूलभूत सामग्री से लेकर विविध ऑडियो-विडियो उपकरणों का उपयोग होता रहा हैI बल्कि हम शिक्षक अपने स्तर पर भी, अपनी योजना व ज़रूरत के अनुसार लैपटॉप-कंप्यूटर जैसे उपकरणों को अपनी कक्षाओं व विद्यार्थियों के लिए इस्तेमाल करते रहे हैंI लेकिन टैब जैसे यांत्रिक औज़ार को अनिवार्य करना महत्वपूर्ण रूप से अलग है| जब तक हम शिक्षक इन उपकरणों का अपनी अकादमिक आवश्यकता व पेशागत समझ के अनुसार प्रयोग करने को स्वतन्त्र हैं तब तक ये यंत्र हमारे सहायक हैं, वहीं इनका इस्तेमाल तयशुदा ढंग से निर्धारित व अनिवार्य करने पर यह संबंध पलट जायेगा और हम शिक्षक इनके सहायक होने की भूमिका में आ जाएँगे। शिक्षकों की बौद्धिक व पेशागत समझ को केंद्रीकृत आदेशों व निजी कंपनियों के यंत्रों के प्रोग्राम्स के अधीन करना निश्चित ही शिक्षा-विरोधी है| हम देख रहे हैं कि कक्षा में होने वाली गतिविधियों को लगातार केंद्रीकृत करने के प्रयास किए जा रहे हैं| टैब जैसे यंत्रों का जबरन प्रयोग शिक्षकों पर सूक्ष्म निगरानी रखने तथा उनकी प्रत्येक गतिविधि को नियंत्रित करने के खतरे को कई गुणा बढ़ा देता है


कौन से शिक्षाशास्त्रीय शोधों के आधार पर टैब जैसे यांत्रिक उपकरणों की बहुतायत?

किसी भी चीज़ को अनिवार्य करने के पीछे ठोस कारण होने चाहिए जोकि न सिर्फ़ उस विषय के ज्ञान से जुड़े हों, बल्कि क़ानूनन भी वैध होंI जबकि टैब जैसे यांत्रिक औज़ार शिक्षा और शिक्षण के चरित्र में मूलभूत बदलाव लाने की सम्भावना रखते हैं, हम जानना चाहेंगे कि यह फैसला किन शिक्षाशास्त्रीय तथा नीतिगत दस्तावेज़ों के आधार पर लिया गया है| हम शिक्षक अपनी पेशागत शैक्षिक तैयारी और समाज के प्रति अपने दायित्व से ही बौद्धिक प्राणी हैं, कोई मशीनी आदेशपालक नहीं। इस तरह के आदेशों के औचित्य को समझना-परखना, जिनके पीछे कोई स्थापित शिक्षाशास्त्रीय आधार न हो, हमारे लिए लाज़िमी है। 
आज बाज़ार भले ही हमें तकनीकी के नित नए अवतारों को मसीहा की तरह देखने को फुसला रहा है, लेकिन दशकों से विश्व के अनेक हिस्सों में तकनीकी को लेकर सवाल उठते रहे हैं| समस्याओं के समाधान के रूप में बेची जाने वाली तकनीकी न सिर्फ नई व और ख़तरनाक समस्याएं खड़ी करती है, बल्कि यह एक ऐसे चक्रव्यूह की तरह है जो संसाधनों की नित नयी आहुति मांगता है|

ज़ाहिर है कि ये तकनीकी उपकरण शिक्षा की बेहतरी या शिक्षकों की ज़रूरत के तहत नहीं लाए जा रहे हैं| तो प्रश्न उठता है कि यह डिजिटलीकरण किनके हितों को साधने के लिए लाया जा रहा है|


डाटा का विश्लेषण निजी संस्थाओं के हाथ में

प्रतिदिन डाटा का दबाव बढ़ता जा रहा है| शिक्षण जैसी जटिल प्रक्रिया के छोटे-छोटे टुकड़े कर, उसे नम्बरों अथवा ग्रेडों में तब्दील कर, डाटा के रूप में माँगा जा रहा है| संभव है कि टैब पर डाटा भरना आसान हो जाए, लेकिन प्रश्न यह है कि यह डाटा जिसकी मांग दिन-प्रतिदिन, घंटे-प्रतिघंटे बढ़ती जा रही है, आख़िर किसकी ज़रूरत है। यक़ीनन, अबतक हमें डाटा के बढ़ते उत्पादन से बच्चों की ज़िंदगी या शिक्षा में तो कोई फ़ायदा होता नहीं दिख रहा है। हाँ, ये ज़रूर है कि सर्वव्यापी डाटा के इस कारोबार-युग में हम व हमारे विद्यार्थी खुद महज़ एक डाटा होकर रह गए हैं। 
कौन-से लोग और संस्थाएं इस डाटा का विश्लेषण कर रहे हैं? उनकी राजनीतिक और अकादमिक स्थिति क्या है? क्या गारंटी है कि यह डाटा निजी संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को नाकारा साबित करके अपनी दुकान चलाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा?    


आज इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के पर्यावरण विरोधी आयाम सामान्य ज्ञान का हिस्सा ही नहीं हैं, बल्कि खुद हमारी पाठ्यचर्या यह माँग करती है कि हम अपने विद्यार्थियों को इस ख़तरे के प्रति समझदार बनायें व सजग करें। भाषा से लेकर पर्यावरण विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास व राजनीति विज्ञान जैसे विषयों की पाठ्यपुस्तकें संतुलित-सुंदर जीवन व उसके लिए ज़रूरी समझदारी तथा सामाजिक व्यवस्था के सवालों से जूझने को प्रेरित करती हैं। शिक्षण हमारे लिए कोई कोरी, काग़ज़ी क्रिया नहीं है, और न ही हम अपने विद्यार्थियों से महज़ एक पेशेवर रिश्ता क़ायम रखते हैं। इसलिए अगर शिक्षक फ़ोन/स्मार्ट फ़ोन/लैपटॉप/टैब आदि लेने से पहले पर्यावरणीय क्षति को लेकर चिंतित रहते हैं तो हम बेवजह परेशान नहीं हैं|

हम आपसे माँग करते हैं कि शिक्षा के व्यापक हित में टैब से जुड़े आदेशों को निरस्त करेंI साथ ही हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भी ऐसी किसी व्यवस्था को अनिवार्य करने से पहले सभी पहलुओं पर विचार किया जायेगाI

धन्यवाद सहित



सदस्य, संयोजक समिति                      सदस्य, संयोजक समिति
लोक शिक्षक मंच                            लोक शिक्षक मंच 

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