Monday, 6 December 2021

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यचर्या

यह अनुभव दिल्ली सरकार के  स्कूल में पढ़ाने वाली एक शिक्षिका साथिन ने साझा किया है साथ ही अनुरोध किया है कि उनकी पहचान को उजागर न किया जाए ............संपादक 


शिक्षिका के विद्यालय में अक्टूबर 2021 से देशभक्ति पाठ्यचर्या पढ़ाने की कार्यवाही शुरु हुई। संबंधित शिक्षकों को एक 'देशभक्ति पाठ्यचर्या' नामक पुस्तिका (teacher's manual) दी गई और छोटी कक्षाओं में हफ़्ते के 6 दिन और बड़ी कक्षाओं में हफ़्ते के 2 दिन यह पाठ्यचर्या पढ़ाने को कहा गया। इस दौरान विद्यालय में विभिन्न कारणों से नियमित कक्षाएँ नहीं हो पाईं (और कुछ शिक्षक मुश्किल से मिले पढ़ाई का समय गैर-विषयवार बातों पर नहीं गँवाना चाहते थे), इसलिए इस लेख में विद्यार्थियों के साथ हुई बातचीत से उपजे अनुभव नहीं हैं। यह केवल मैन्युअल से उपजे कुछ सवालों की सूची है।

देश क्या होता है?
देश से प्रेम करना क्या होता है?
देशभक्ति क्या होती है?
देशभक्त कौन होता है?
क्या देशभक्ति सिखाई जा सकती है?
देशभक्ति क्यों सिखानी है? 
देशभक्ति और देशप्रेम में क्या अंतर है?

जब पता चला कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 'देशभक्ति पाठ्यचर्या' शुरु होने वाला है तो मन में बहुत से सवाल आए जिनमें से कुछ ऊपर लिखे हैं। पढ़ा तो पाया कि, अंतिम सवाल को छोड़कर, बाकी सभी सवाल देशभक्ति पाठ्यचर्या मैन्युअल में भी मौजूद थे। 

1. मैन्युअल के अनुसार देशभक्ति का मतलब होता है 'देश की सार्वजनिक चीज़ों से प्यार करना' जैसे स्कूल, पार्क, बस, कूड़ेदान। (पृष्ठ 3)
यह तो सही बात है। लेकिन जो छात्र और जिनके परिवार सारा दिन इन सार्वजनिक सुविधाओं के सहारे ही ज़िन्दगी जीते हैं, उन्हें क्यों यह सिखाना पड़ रहा है कि सार्वजनिक चीज़ों से प्यार करो? उन्हें यह सिखाने वाले 'हम' कौन होते हैं कि सार्वजनिक चीज़ों से प्यार करो? 
घरों में काम करने वाली महिलाएँ और उनके बच्चे तो घंटों सार्वजनिक पार्क में ही बैठकर अगली शिफ्ट का इंतज़ार करते हैं; मज़दूर परिवारों के बच्चे तो सार्वजनिक स्कूलों में ही पढ़ते हैं; ये अपने इलाज लाइनों में लगकर सार्वजनिक डिस्पेंसरियों और अस्पतालों से ही कराते हैं; इस वर्ग के युवक-युवतियाँ कोविड से डरी कम सीटों वाली सार्वजनिक बसों का ही इंतज़ार करते हैं। हाँ, कूड़ा बीनने वालों के बच्चों के लिए तो हमारे सरकारी स्कूल भी पहुँच से बाहर और अभिजात हो गए हैं।
ऐसे में अगर देशभक्ति क्लास में कोई छात्रा पलट कर पूछ ले, "मैम, हम सार्वजनिक स्कूलों से प्यार करते हैं इसलिए इन्हें महंगा नहीं होने देंगे और बोर्ड फ़ीस के ख़िलाफ आंदोलन करेंगे; हम हम सार्वजनिक पार्क से प्यार करते हैं इसलिए अमीर मोहल्लों की तरह अपने मोहल्ले में भी पार्क बनवाने के लिए सरकार से माँग करेंगे क्योंकि हमारे एक-एक कमरों के घरों में तो बिल्कुल धूप नहीं आती; हम सार्वजनिक बसों से प्यार करते हैं इसलिए संघर्ष करेंगे कि डीटीसी बसों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि लोग इंतज़ार के मारे इन्हें गालियाँ न दें", तो हम इस छात्रा के सवालों का क्या जवाब दें? 
अगर विद्यार्थी ऐसे सवाल पूछते हैं तो क्या हम शिक्षक उन्हें आंदोलन और संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित करें या उन्हें यह समझाएँ कि जब हम सिखाते हैं कि सार्वजनिक स्कूल, पार्क, बस से प्यार करो तो इसका मतलब होता है 'इनकी सीटों पर अपना नाम मत लिखो' नाकि यह कि इन्हें अपना हक़ मानकर इनके लिए क्रांति करने लग जाओ।

2. मैन्युअल के अनुसार देश का सम्मान करने का मतलब होता है 'देश के सिपाहियों, किसानों और मज़दूरों का सम्मान करना' (पृ 7)।
यह भी सही बात है कि 'देश' का मतलब 'देश के लोग' होते हैं। लेकिन जो बच्चे ख़ुद मज़दूरी और किसानी करने वाले परिवारों से आते हैं, उन्हें क्यों यह सिखाना पड़ रहा है कि मज़दूरों और किसानों का सम्मान करो? उन्हें यह सिखाने वाले 'हम' कौन होते हैं कि मज़दूरों और किसानों का सम्मान करो?
ऐसे में अगर देशभक्ति क्लास में कोई छात्र पलट कर पूछ ले, "सर, सरकार हमें तो कहती है कि 'मज़दूरों का सम्मान करो' लेकिन ख़ुद स्कूलों में गार्ड, सफ़ाई कर्मचारी और शिक्षकों को ठेके पर रखती है। क्या यह उनकी मेहनत का अपमान नहीं है कि उनसे कम तनख्वाह पर पूरा काम कराया जाता है? उन्हें न छुट्टियाँ मिलती हैं, न मुफ़्त इलाज मिलता है और न नौकरी की सुरक्षा मिलती है। ठेकेदार उनकी तनख्वाह से हर महीने हज़ारों रुपए काट लेता है फिर भी सरकार ख़ुद भर्तियाँ नहीं करती बल्कि ठेकेदारों से करवाती है। क्या पता बड़े होकर हममें से भी कोई गार्ड की नौकरी करे, तो हमें भी ऐसे ही हालातों में काम करना पड़ेगा। इसलिए हम आज से ही मज़दूरों के सम्मान की लड़ाई लड़ेंगे और उन्हें पक्का करवाने के लिए सरकार से बात करेंगे। हम यह भी पूछेंगे कि स्कूल में 8 घंटे काम करने वाली सफाई कर्मचारी और 6 घंटे काम करने वाली शिक्षिका की तनख्वाहों में इतना फ़र्क़ क्यों है? यह फ़र्क़ है या भेदभाव?"; तो हम इस छात्र के सवालों का क्या जवाब दें?
अगर विद्यार्थी ऐसे सवाल पूछते हैं तो क्या हम शिक्षकों को उन्हें लड़ने के लिए प्रोत्साहित करना है या उन्हें यह समझाना है कि सिपाहियों का सम्मान करने का मतलब होता है कि जब उनको गुज़रते हुए देखो तो सीधे खड़े होकर सलाम करो, नाकि ये कि उनके काम के हालातों की जाँच करने लगो; किसानों का सम्मान करने का मतलब होता है कि किसानों से अच्छे से बात करो, नाकि यह कि पूछने लग जाओ कि हर साल किसान आत्महत्या क्यों करते हैं, किसानी छोड़कर शहर क्यों आते हैं, धरने पर क्यों बैठे हैं; मज़दूरों का सम्मान करने का मतलब होता है कि हर सब्ज़ी वाले-ठेलेवाले-मज़दूर से 'भैया' कहकर बात करो, नाकि यह कि ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ़ लड़ने लग जाओ।

मंत्री जी,
हमें समझ नहीं आ रहा 
हम बच्चों के अंदर से
ये मज़दूरवर्गीय देशभक्ति ख़त्म करके 
मध्यवर्गीय देशभक्ति कैसे डालें?
ताकि 
इन्हें जब पढ़ाई या इलाज न मिले, ये सोचें
'नहीं, इसमें मेरे देश की कोई ग़लती नहीं है'
इन्हें जब नौकरी या तनख्वाह न मिले, ये सोचें 
'नहीं, इसमें मेरी सरकार की कोई ग़लती नहीं है'
इनके साथ जब न्याय न हो, ये सोचें 
'जिस सरकार ने मुझे देशभक्त बनाया
वो कभी ग़लत नहीं हो सकती
मुझे अपनी सरकार पर गर्व है'
हम कोशिश कर रहे हैं 
पर यह काम आसान नहीं 
ऊपर से ये बच्चे ज़िद्दी 

3. इस पर पाठ्यचर्या के आख़िरी दो अध्यायों में देश की असली समस्याओं - जैसे डॉक्टरों की कमी, साफ़ पानी की कमी, नौकरियों की कमी - को भी रख दिया गया है। इस गतिविधि में विद्यार्थी को सोचना है कि इन समस्याओं के पीछे किसकी कमी है - उनकी अपनी या उनके परिवार की या समाज की या सरकार की?
यह भी सही बात है। लेकिन अगर वो जाँच-पड़ताल करते-करते उन हाथों तक पहुँच गए जो समाज और सरकार दोनों को चलाते हैं; अगर वो 'व्यवस्था' तक पहुँच गए, तो हम उन्हें कैसे नियंत्रित करेंगे? अगर वो यह पूछने लगे कि सरकारें बदल जाने से भी बेरोज़गारी ख़त्म नहीं होती, ठेकेदारी ख़त्म नहीं होती, जातिवाद ख़त्म नहीं होता, साम्प्रदायिकता ख़त्म नहीं होती, साफ़ हवा नहीं बचती, जल-जंगल नहीं बचते; तो हम उनका ग़ुस्सा क्या कहकर शांत करेंगे?

अंत में
देशभक्ति पाठ्यचर्या मैन्युअल में कुछ ऐसी बातें लिखी हैं जिनसे विद्यार्थी असमंजस में पड़ सकते हैं। इन पर स्पष्टता वांछित है - 
a. पृष्ठ 14 पर देशभक्तों की लघु सूची में भगत सिंह के बग़ल में सावरकर को रखा गया है। भगत सिंह पूरी तरह से राज्य और धर्म को अलग रखने के हिमायती थे। तो क्या पाठ्यचर्या निर्माताओं को यह यकीन है कि सावरकर भी भगत सिंह की तरह इन दोनों को पूरी तरह से अलग रखने को राज़ी थे?
संभव है कि कक्षा 1-8 पढ़कर आए विद्यार्थी सावरकर के बारे में न जानते हों। तो क्या आने वाले समय में देशभक्ति पाठ्यचर्या की पुस्तिका में सावरकर के बारे में सामग्री प्रदान कराई जाएगी?
b. विद्यार्थियों ने कक्षा 8 में अंग्रेज़ों और औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ़ होने वाली लड़ाइयों में कुछ मुसलमान, दलित और आदिवासी नेताओं के नाम भी पढ़े हैं। अगर मैन्युअल में एक भी मुसलमान, दलित या आदिवासी 'देशभक्त' का नाम नहीं है तो क्या हम शिक्षकों को उन्हें इनके बारे में बताना है या नहीं? (हालांकि इस पाठ्यचर्या की दूसरी पुस्तिका में प्रस्तुत देशभक्तों की सूची में मुसलमान, दलित और आदिवासी नेताओं के नाम भी मौजूद हैं लेकिन इस शिक्षक मैन्युअल में नहीं है जो सभी शिक्षकों को पढ़ाने के लिए दी गई है) 
c. पृष्ठ 18 पर लिखा है, 'हमारे देश में शिक्षा की क्या हालत है और वहीं अमेरिका जैसे देशों में यह कितनी अच्छी हो गई है'; कहीं बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थी अपनी हालत को देखते हुए यह न पूछ लें कि "मैम, क्या अमेरिका में कॉलेज की पढ़ाई मुफ़्त है?" ऐसे में हम अमरीका की एजुकेशन लोन के सहारे चलती उच्च शिक्षा वाली बात कैसे छिपाएँगे?
d. पृष्ठ 26 पर भी असमंजस पैदा करने वाले काफ़ी बिंदु हैं -
i. एक तरफ़ कक्षा 10 की इतिहास की पाठ्यचर्या का पहला पाठ उन्हें पढ़ा रहा है कि आधुनिक राष्ट्रवाद का उदय लगभग 200 साल पहले हुआ। कक्षा 12 में वो पढ़ते हैं कि 4,600 साल पुरानी हड़प्पा सभ्यता से पहले इस क्षेत्र में बड़ी बस्तियों की बसावट के सबूत नहीं मिलते। दूसरी तरफ़ देशभक्ति पाठ्यचर्या कह रही है कि 'वो अपने देश पर गर्व करें क्योंकि 10,000 साल के इतिहास में भारत ने किसी देश/जाति पर आक्रमण नहीं किया'। अगर विद्यार्थी पूछ लें कि 'क्या 10,000 साल पहले भारत था? 10,000 साल पहले ये हमलावर देश कौन-से थे?', तो हम इन सवालों के क्या उत्तर दें?  
ii. देशभक्ति मैन्युअल के अनुसार '5000 साल पहले योग का अनुसन्धान हो चुका था'। अगर विद्यार्थी पूछते हैं तो हम पूर्व हड़प्पा काल के योग संबंधी कौन-से साक्ष्य प्रस्तुत करें?
iii. किताब में कई बार यह ज़िक्र आया है कि 'एक दौर में भारत को दुनियाभर में सोने की चिड़िया माना जाता था'; कृपया स्पष्ट करें कि वो कौन-सा दौर था और क्या उस दौर में हर घर में सोने की चिड़िया रहती थी या सिर्फ़ राजमहल में? 
iv. विद्यार्थी यह जानकर बहुत ख़ुश होंगे कि 3,000 साल पहले 'दुनिया का पहला औपचारिक शिक्षा केंद्र तक्षिला विश्वविद्यालय' था जो कि दिल्ली से बहुत दूर नहीं है। अगर उन्हें हड़प्पाई स्थलों व तक्षिला का ऐतिहासिक भ्रमण कराया जा सके तो यह उनके लिए अविस्मरणीय होगा। चूँकि कक्षा 8 में सावित्रीबाई की कहानी उन्हें प्रेरणा देती है तो शायद वे यह भी जानना चाहें कि क्या उस समय इस विश्वविद्यालय में समाज के सभी वर्णो और वर्गों के लड़के-लड़कियाँ पढ़ते थे? 
v. कक्षा 11 में विद्यार्थी विश्वइतिहास पढ़ते हैं और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों को एक-दूसरे से जोड़ना सीखते हैं। संभव है कि देशभक्ति पाठ्यचर्या पढ़ते समय विद्यार्थी पूछ लें कि क्या हम सिर्फ़ भारत के शून्य पर गर्व कर सकते हैं या मेसोपोटामिया की गणित परम्परा पर भी गर्व कर सकते हैं? संभव है कि वे पूछ लें कि बुद्ध, कबीर, महात्मा गाँधी विश्वइतिहास से कैसे जुड़े थे? क्या दुनिया के अन्य हिस्सों में भी ऐसे चिंतक हुए थे?  
vi. कक्षा 12 में वे पढ़ते हैं कि गौतम बुद्ध ने ईश्वर की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए थे; गुरु नानक ने कहा था कि मैं कोई नया धर्म शुरु करना नहीं चाहता। वे पूछ सकते हैं कि फिर देशभक्ति पाठ्यचर्या इन चिंतकों को ईश्वरीय क्यों कह रही है?
vii. वे पूछ सकते हैं कि जब बुद्ध, कबीर, गाँधी ने जातीय-धार्मिक-मशीनी कट्टरता पर सवाल उठाए थे तो आप हमें 'कट्टर देशभक्त' क्यों बना रहे हैं?
viii. वे पूछ सकते हैं कि हमारे विद्यालय हमें भक्त क्यों बना रहे हैं? आस्था के सामने विवेक का समर्पण करना तो मंदिर-मस्जिद सिखाते थे; विद्यालयों को क्या ज़रूरत आना पड़ी? 

1 comment:

Unknown said...

बहुत ही महत्वपूर्ण और सामयिक सवाल हैं।इन तमाम सवालों को पूछना आज के समय की सबसे बड़ी देशभक्ति होगी।केवल पांच साल में एक बार वोट देकर अपने कर्तव्य का इति श्री समझ लेना ही देश भक्ति नहीं हो सकता, असली देश भक्ति तो एक जागरूक नागरिक के रूप में सरकार के कामों निगाह रखना और उससे सवाल पूछना होता है। लोक शिक्षक मंच का यह काम बहुत ही सराहनीय है। मेरे जैसे नागरिकों को इससे प्रेरणा मिलती, देश-समाज के लिए ठीक दिशा में सोचने उसके अनुरूप आचरण करने के लिए।