Tuesday, 8 March 2022

पत्र: स्कूलों में विद्यार्थियों द्वारा धार्मिक पहचान उजागर करने वाले वस्त्र पहनने पर रोक लगाने के आदेश पर आपत्ति

 

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क्रम सं. लो.शि.मं./01/मार्च/2022                                     दिनांक: 04 मार्च, 2022

प्रति 

     अध्यक्षा, शिक्षा समिति 

     दक्षिण दिल्ली नगर निगम 

 

विषय: स्कूलों में विद्यार्थियों द्वारा धार्मिक पहचान उजागर करने वाले वस्त्र पहनने पर रोक लगाने के आदेश पर आपत्ति

 

महोदया

            लोक शिक्षक मंच हाल ही में आपके द्वारा जारी उस बयान पर अपनी आपत्ति प्रकट करना चाहता है, जिसमें आपने, मीडिया रपटों के अनुसार, अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि कोई भी विद्यार्थी अपनी धार्मिक (पृष्ठभूमि की) पहचान उजागर करने वाले प्रतीक वस्त्र को पहनकर स्कूल न आए। हम अपनी आपत्ति मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं में व्यक्त कर रहे हैं। 

 

1. ऐसे आदेश, ख़ासतौर से छोटी उम्र के बच्चों में, बेदख़ली, तनाव और डर की भावनाएँ फैला सकते हैं। ज़ाहिर है कि इससे न सिर्फ़ स्कूलों का सहज माहौल प्रभावित होगा, बल्कि शिक्षा की नाज़ुक व गंभीर प्रक्रिया पर भी बुरा असर पड़ेगा। इससे कुछ बच्चों का विशेष रूप से चिन्हित होने का ख़तरा उत्पन्न होगा, जोकि उन्हें और अलग-थलग करके उनमें हीन भावना विकसित कर सकता है। इससे न सिर्फ़ वो अवसाद में जा सकते हैं, बल्कि उनके आगे की शिक्षा भी बाधित हो सकती है। 

2. सार्वजनिक पद पर रहते हुए हमें इस अहम तथ्य को भुलाना नहीं चाहिए कि शिक्षा अधिकार अधिनियम (2009) के तहत शिक्षा 14 साल तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है जिसे पोशाक आदि से जुड़े किसी भी नियम या आदेश के तहत छीना नहीं जा सकता है। निःसंदेह, किसी भी बच्चे-बच्ची को उसकी वेशभूषा के आधार पर स्कूल में उपस्थित होने या पढ़ने से रोकना संविधान के विरुद्ध है तथा क़ानून का उल्लंघन भी होगा। 

3. हक़ीक़त तो यह है कि हमारे स्कूलों के अधिकतर विद्यार्थी (व शिक्षक भी) कोई-न-कोई धार्मिक चिन्ह धारण करते हैं। जब यह आदेश सभी चिन्हों को हटाने की ओर इशारा नहीं करता है तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसका नतीजा केवल कुछ चिन्हित प्रतीकों/विद्यार्थियों को भेदभावपूर्ण निशाना बनाने में सामने आएगा।    

4. अधिकारियों को उन चिन्हों के पीछे भागने का आदेश देने की बजाय जो विद्यार्थियों की सांस्कृतिक पहचान व विविधता का हिस्सा हैं, हमें उस चलन को रोकने की ज़रूरत है जो सार्वजानिक विद्यालयों के रूप को पंथनिरपेक्ष नहीं रहने देता है। अनेक विद्यालयों में ऑफ़िस व स्टाफ़ रूम से लेकर कक्षाओं तक में धार्मिक चित्र लगे रहते हैं, विद्यालयों में विशेष धार्मिक उत्सवों को खुलकर मनाया जाता है, बहुत से विद्यालयों में विद्यार्थियों से विशेष त्योहारों पर सफ़ाई और सजावट करवाई जाती है, किसी एक आस्था से जुड़ी वंदना की जाती है। इनमें से अधिकतर धार्मिक प्रदर्शन विद्यार्थियों की पढ़ाई की क़ीमत पर होते हैं। दैनिक सभा के नाम पर प्रत्येक दिन विद्यार्थियों से हाथ जोड़कर ईश्वर वंदना करवाई जाती है, जबकि विद्यालयों का काम बच्चों को भक्त या आस्तिक बनाना नहीं है। ज़ाहिर है कि असल समस्या ये या वो विद्यार्थी तथा उनका पहनावा नहीं है, बल्कि स्कूलों व शिक्षा की वो अन्यायपूर्ण व्यवस्था है जिसके लिए आप और हम ज़िम्मेदार हैं। अर्थात, कुछ चिन्हित विद्यार्थियों की पहचान के प्रतीकों से होने वाले काल्पनिक असर की चिंता करने के बदले बेहतर यह होगा कि हम अपने स्कूलों की पाठ्यचर्या, संस्कृति और माहौल को सही मायने में निरपेक्ष, तार्किक तथा मुक्तिकामी बनाने पर ज़ोर दें।  

5. विविधता न सिर्फ़ शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण मूल्य है, बल्कि यह हमारे देश की ख़ूबसूरती है और संविधान द्वारा संरक्षित तत्व भी है। ऐसे में, जेंडर की तमाम आलोचनाओं को बरतते हुए बच्चों से विभिन्न धार्मिक/सांस्कृतिक पहलुओं पर संवाद करने की ज़रूरत है, नाकि उनकी पहचान पर हमला करने की। इस संदर्भ में, स्कूलों व शिक्षकों का काम, बच्चों की उम्र का लिहाज़ करते हुए, उनकी विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों पर संवेदनशील ढंग से बातचीत करना है, नाकि उन्हें उनकी पृष्ठभूमि का हवाला देकर निष्कासित करना।

6. इतिहास गवाह है कि दुनियाभर में लड़कियों की शिक्षा में बाधा उत्पन्न करने में धर्म, जाति व नस्ल सम्बन्धी रूढ़िवादी नियमों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। क्या हमें यह स्वीकार होगा कि हमारी किसी एक भी छात्रा की पढ़ाई इसलिए छूट जाए क्योंकि वो हिजाब पहनती है? 19वीं शताब्दी के भारत में छोटी लड़कियाँ साड़ी पहनकर स्कूल जा पाईं, लेकिन आज लड़कियाँ ऐसी यूनिफ़ॉर्म के लिए तैयार हो रही हैं जिसमें वे भी खुलकर दौड़ और खेल सकें। छात्राएँ पहले ही ढेरों सामाजिक चुनौतियों से जूझते हुए अपने तरीक़ों से अपनी पढ़ाई के रास्ते बनाती हैं। हमें उनका रास्ता आसान करने व उनका साथ देने की ज़रूरत है, नाकि उनकी राह की अड़चनें बढ़ाने की।  

 

हम उम्मीद करते हैं कि आप बच्चों के हित में अपने आदेश/बयान को वापस लेंगी तथा दक्षिण दिल्ली नगर निगम के स्कूल किसी भी बच्चे-बच्ची को उसकी वेशभूषा या पृष्ठभूमि के आधार पर शिक्षा से वंचित करने का अन्याय नहीं करेंगे।  

 

 

धन्यवाद सहित

सदस्य, संयोजक समिति                      सदस्य, संयोजक समिति

लोक शिक्षक मंच                            लोक शिक्षक मंच 

 

प्रतिलिपि 

शिक्षा मंत्री, दिल्ली सरकार 

अध्यक्ष, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग 

निदेशक, शिक्षा, दक्षिण दिल्ली नगर निगम 

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