प्रति
शिक्षा मंत्री
दिल्ली सरकार
विषय : दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में कक्षा VI-IX नॉन-प्लान दाखिला प्रक्रिया में समस्याओं के निवारण हेतु
लोक शिक्षक मंच शिक्षा
विभाग के 04 अप्रैल
2022 के 'दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में कक्षा VI-IX में दाखिले की प्रक्रिया' संबंधी सर्कुलर में उल्लिखित
दिशा-निर्देशों पर अपनी घोर आपत्ति दर्ज करता है -
1. कोरोना घरबन्दी के दौरान
शारीरिक दूरी के नियमों का हवाला देते हुए दाखिले आवेदन की प्रक्रिया को अनिवार्यत: ऑनलाइन किया
गया था। लेकिन अब जब परिस्थितियाँ सामान्य हैं, तो विद्यालयों में ऑफलाइन दाखिले क्यों
नहीं किए जा रहे?
2. दिल्ली सरकार इस
सच्चाई से अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चे का दाखिला करवाने के लिए आने
वाले अधिकतम अभिभावक स्मार्ट फोन पर ऑनलाइन फ़ॉर्म भरना नहीं जानते।
उन्हें इंटरनेट कैफ़े वालों के पास जाकर 50-100 रु खर्च करने पड़ते हैं। फ़ॉर्म भरने में
कैफे वाले कई तरह की ग़लतियाँ भी कर देते हैं। जब इन अभिभावकों के लिए
सीधे स्कूल आकर बच्चे का दाखिला करवाना ही सबसे सुलभ विकल्प है, तो फिर इन्हें ऑनलाइन फ़ॉर्म भरने के लिए मजबूर क्यों किया जा
रहा है?
3. यह शिक्षा अधिकार
अधिनियम 2009 के
उन प्रावधानों
का भी उल्लंघन है जिनके तहत कक्षा 1-8 तक की शिक्षा पूर्णतः मुफ़्त होनी चाहिए। यहाँ तो दाखिले की
प्रक्रिया में ही अभिभावक को पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं!
4. ऑनलाइन आवेदन
प्रक्रिया का बहुत बड़ा नुकसान यह भी है कि नॉन-प्लान के रास्ते से आने
वाले बच्चों की 40-50 दिनों
की पढ़ाई बर्बाद
हो रही है। जहाँ हम यह मान सकते हैं कि प्लान एडमिशन से आए बच्चों की पढ़ाई 1 अप्रैल, 2022 से ही शुरु हो गई, वहीं नॉन-प्लान से आए बच्चों का
21 मई, 2022 से पहले स्कूल में दाखिला नहीं होगा।
भले ही बच्चा 1 अप्रैल
से दाखिला
चाहता हो और उसने 11 अप्रैल
को ही फ़ॉर्म भर दिया हो लेकिन उसकी पढ़ाई 21 मई के बाद ही शुरु होगी। क्या बच्चों की
40-50 दिनों की पढ़ाई का नुकसान शिक्षा अधिकार
अधिनियम का उल्लंघन नहीं है?
5. पहले अभिभावक सीधा स्कूल आते थे और उनके
बच्चे का 1-2 दिन
में दाखिला हो जाता था लेकिन अब 'अति-सक्रिय'
प्रशासनिक व्यवस्था व डिजिटल इंडिया की
मार ने इस प्रक्रिया को बहुत जटिल और अभिजात बना दिया है।
6. इसका सबूत अभिभावकों
का वो डर भी
है जो दाखिला करवाते समय उनके चेहरों पर साफ़ नज़र आता है। उन्हें डर होता है कि उनके बच्चे को
दाखिला मिलेगा या नहीं, कहीं
उनसे कोई ऐसा दस्तावेज़ न माँग लिया जाए जो उनके पास नहीं है,
अगर उनके दस्तावेज़ों में लिखी स्पेलिंग्स मेल नहीं
खाईं तो कहीं उनके बच्चे को दाखिला देने से मना न कर दिया जाए आदि। अभिभावकों को स्कूलों में
कोई पोस्टर, रेडियो-अख़बार
का कोई विज्ञापन,
एसएमसी / पीटीएम की कोई बैठक यह नहीं
बताती कि 'शिक्षा' बच्चों का मौलिक अधिकार है इसलिए उनके पड़ोस के
सरकारी स्कूल किसी बच्चे को दाखिला देने से मना नहीं कर सकते।
हमारी माँगें -
1. सभी कक्षाओं में
दाखिले की प्रक्रिया को पुन: ऑफलाइन किया जाए।
2. नॉन-प्लान दाखिले का
फ़ॉर्म भरने वाले बच्चों को बिना देर किए स्कूलों में दाखिला दिया जाए।
3. प्रत्येक स्कूल में
पोस्टर लगवाए जाएँ कि RTE 2009 के
तहत पड़ोस के स्कूल में उम्र-अनुसार कक्षा में दाखिला प्रत्येक बच्चे का मौलिक
अधिकार है।
4. विद्यालयों में
दाखिले जैसे प्रशासनिक कामों के लिए गैर-अकादमिक स्टॉफ की भर्ती की जाए ताकि अध्यापकों को पढ़ाना
छोड़कर ये ज़िम्मेदारियाँ न निभानी पड़ें।
5. जब तक गैर-अकादमिक
स्टॉफ की भर्ती नहीं की जाती तब तक एडमिशन करने वाले शिक्षकों की ट्रेनिंग्स करवाई
जाएँ जिनमें उन्हें शिक्षा अधिकार अधिनियम का उद्देश्य और प्रावधान समझाए
जाएँ ताकि कोई भी बच्चा दाखिले से वंचित न रह जाए।
सधन्यवाद
लोक शिक्षक मंच
CC:
अध्यक्ष, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग
अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
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