लोक शिक्षक मंच ने जनवरी 2022 में सत्र 2021-22 में एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक वर्गों के विद्यार्थियों के वजीफों की स्थिति समझने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम के तहत दिल्ली शिक्षा विभाग से जानकारी माँगी थी। इस RTI में कुल 40 प्रश्न थे लेकिन हमारी तकनीकी ग़लती के कारण एसटी व माइनॉरिटी छात्रों से संबंधित पूरा डाटा प्राप्त नहीं हो पाया। इसलिए यहाँ केवल एससी व ओबीसी वर्गों के विद्यार्थियों का ही डाटा प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन हमारा मानना है कि जो वास्तविकता एससी/ओबीसी वर्गों के वजीफों की है, वही एसटी/अल्पसंख्यक वर्गों के छात्रों के वजीफों की भी है।
3 महीनों के अंतराल में 28 में से केवल 10 ज़ोन से जवाब
आए। कई स्कूलों ने अधूरी जानकारी दी या यह लिखकर भेजा कि वांछित जानकारी
स्कूल आकर प्राप्त करें। अधिकतम स्कूलों/ज़ोन द्वारा जानकारी प्रदान न करना
शिक्षा विभाग में RTI कानून के कमज़ोर कार्यान्वयन को दर्शाता है।
सत्र 2021-22 के स्कॉलरशिप संबंधित आंकड़े
शिक्षा
विभाग से प्राप्त एक जानकारी के अनुसार दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्षा
9-12 में नामांकित विद्यार्थियों में से 15.3% विद्यार्थी SC (पृष्ठभूमि
के) हैं, 7.2% OBC (पृष्ठभूमि के) हैं और 0.22% ST (पृष्ठभूमि के) हैं। इन
आँकड़ों के हिसाब से एक-चौथाई से भी कम विद्यार्थी इन वंचित जाति-समूहों से
हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जाति प्रमाण-पत्र न बनवा पाने के कारण बहुजन
पृष्ठभूमि के अधिकतर बच्चे स्कूलों में अदृश्य कर दिए जाते हैं और उन तक
उनके हक़ नहीं पहुँचते। दस ज़ोन के स्कूलों द्वारा भेजी गयी स्कॉलरशिप संबंधी
जानकारी के अनुसार:
एससी वर्ग के विद्यार्थियों के वजीफे
-
कक्षा 9-10 में कुल एससी पंजीकृत छात्रों में से केवल 8.6% एससी छात्र
प्री मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे जिनमें से ~55% बच्चों के
फॉर्म रिजेक्ट किए गए। एससी वर्ग के केवल 4% छात्रों को मुख्यमंत्री
प्रतिभा वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 9-10 के एससी वर्ग
के केवल 7.9% छात्रों को प्री मेट्रिक या मुख्यमंत्री में से कोई एक वज़ीफ़ा
मिला।
- कक्षा 11-12 में कुल एससी पंजीकृत छात्रों
में से केवल 8.6% छात्र पोस्ट मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे,
जिनमें से ~20.9% बच्चों के फॉर्म रिजेक्ट किए गए। एससी वर्ग के केवल 5.8%
छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में
कक्षा 11-12 के एससी वर्ग के केवल 12.7% छात्रों को पोस्ट मेट्रिक या
मुख्यमंत्री में से कोई एक वज़ीफ़ा मिला।
ओबीसी वर्ग के विद्यार्थियों के वजीफे
-
कक्षा 9-10 में कुल ओबीसी पंजीकृत छात्रों में से केवल 22.7% छात्र प्री
मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे, जिनमें से 49.4% बच्चों के फॉर्म
रिजेक्ट किए गए। ओबीसी वर्ग के केवल 14% छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा
वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 9-10 के ओबीसी वर्ग के
केवल 25.5% छात्रों को कोई वज़ीफ़ा मिला।
- कक्षा 11-12
में कुल ओबीसी पंजीकृत छात्रों में से केवल 12.2% छात्र पोस्ट मेट्रिक
वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे, जिनमें से 23.8% बच्चों के फॉर्म रिजेक्ट
किए गए। ओबीसी वर्ग के केवल 13.6% छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा वज़ीफ़ा
मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 11-12 के ओबीसी वर्ग के केवल
22.9% छात्रों को कोई वज़ीफ़ा मिला।
कुल विद्यार्थियों के वजीफे
दिल्ली
शिक्षा विभाग द्वारा इस विषय पर 02.02.23 को हुई मीटिंग के मिनट्स (DE
18(3)/29/PLG/E DISTRICT SCHEMES/2022-23/398-423 दिनांक 14.02.23) के
अनुसार 2021-22 में कुल 65,050 एससी/ एसटी/ ओबीसी वर्गों के विद्यार्थियों
ने स्कॉलरशिप का आवेदन किया। लेकिन यह कुल नामांकित एससी/ एसटी/ ओबीसी
छात्रों का मात्र 32.5% है। यानी, ~68% विद्यार्थी तो आवेदन ही नहीं कर
पाए! विभाग को यह जानकारी भी सार्वजनिक करनी चाहिए कि सत्र 2021-22 में कुल
कितने % छात्रों को कोई वज़ीफ़ा मिला।
विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप न मिल पाने के कारण
कुछ
साल पहले तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी/ एसटी वर्गों के लगभग सभी
छात्र तथा ओबीसी/ अल्पसंख्यक वर्गों के बहुत-से छात्र वज़ीफ़ा पाते थे। पर
धीरे-धीरे कथित वर्गों से आने वाले छात्रों पर अनेक शर्तों का बोझ डाल दिया
गया; जैसे - आय प्रमाण-पत्र, ऑनलाइन आवेदन, पिछली कक्षा में न्यूनतम अंक,
न्यूनतम उपस्थिति आदि। छात्रों के व्यापक बहिष्करण के पीछे अनेक कारण हैं:
-सबसे
पहला कारण आय प्रमाण-पत्र की शर्त है। अभिभावकों के अनुभव गवाह हैं कि
एसडीएम दफ़्तर से आय प्रमाण-पत्र बनवाना कितनी कठिन, एलिटिस्ट और भ्रष्ट
प्रक्रिया है। इस दस्तावेज़ को बनवाने के लिए अभिभावकों को कई तरह के कागज़
जुटाने पड़ते हैं और दलालों से जूझना-बचना पड़ता है।
-
दूसरा कारण है ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया की जटिलता। अधिकतर छात्र डिजिटल
पटल से जुड़ी विभिन्न तरह की तकनीकी समस्याओं के कारण फॉर्म भर नहीं पाते;
इस प्रक्रिया में अभिभावक को बार-बार साइबर कैफ़े के चक्कर लगाने पड़ते हैं
और पैसा खर्च करना पड़ता है। थक-हार के कुछ बच्चे फॉर्म भर पाते हैं मगर
ज़्यादातर छोड़ देते हैं। इस चक्रव्यूह समान दुर्गम व अपारदर्शी प्रक्रिया
में न स्कूलों के पास और न ही अभिभावकों के पास कोई सुनवाई के माध्यम हैं।
अगर हैं भी तो आख़िर वो कितनी समस्याओं के लिए और कितनी बार चक्कर काटें?
हमारी सरकारें भारत की मेहनतकश जनता पर डिजिटल शर्तें थोपने से पहले न
डिजिटल पटल की सहजता, सुगमता सुनिश्चित करती हैं और न ही जनता को इस
बाधा-दौड़ के लिए तैयार करती हैं; बल्कि आधारभूत ज़रूरतों तक के लिए जनता को
डिजिटल मशीनरी के सामने फेंक देती है।
- तीसरा कारण
जाति प्रमाण-पत्र की अनुपलब्धता है। आज भी वंचित तबकों से आने वाले अधिकतम
बच्चे अपनी जाति साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नहीं जुटा पाते और
स्कूलों में एससी/ एसटी/ ओबीसी के रूप में दर्ज नहीं हो पाते। एक शिक्षिका
के शब्दों में, "मेरे विद्यालय में स्कॉलरशिप संबंधित 7 पेरेंट्स मीटिंग
हुईं जिनमें कुल 42% माइनॉरिटी तथा एससी/ओबीसी वर्गों के पेरेंट शामिल हुए।
इनमें से 31% अभिभावकों ने बताया कि वे किराए पर रहते हैं और उनका मकान
मालिक रेंट एग्रीमेंट नहीं बनाएगा, जो कि आय प्रमाण-पत्र की अनिवार्य शर्त
है। ~12% अभिभावकों ने बताया कि या तो पिता का बैंक खाता नहीं है या बीमारी
आदि के कारण उपलब्ध नहीं करा सकते। काफ़ी मशक़्क़त के बाद भी माइनॉरिटी वर्ग
के केवल 6 (2%) और एससी/ओबीसी वर्गों के सिर्फ़ 15 (18%) विद्यार्थी आय
प्रमाण-पत्र बनवा पाए और स्कॉलरशिप का फॉर्म भर पाए।''
-
चौथा कारण है केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जो स्कॉलरशिप
योजनाओं को 'परीक्षा आधारित' बनाती है; जैसे प्रधान मंत्री यंग अचीवर्स
स्कॉलरशिप। 'मेरिट' की यह वर्णवादी अवधारणा सामाजिक न्याय के मूल्यों को
कमज़ोर करने के लिए नए-नए रूप धरती रहती है। (6.16, राशिनी 2020)
-
पाँचवा और सबसे मौलिक कारण है केंद्र सरकार द्वारा वजीफों के बजट आवंटन
में ज़बरदस्त कटौती। स्पष्ट है कि जिस देश को अपने बच्चों को पढ़ने के लिए
स्कॉलरशिप देनी होती है वो बजट बढ़ाता है और शर्तें घटाता है और जिसे नहीं
देनी होती है वो बजट घटाता है और शर्तें बढ़ाता है। इसी बेशर्म कटौती का
नतीजा था कि 2022-23 में कक्षा VIII तक के विद्यार्थियों से प्री मेट्रिक
फॉर माइनॉरिटी के फॉर्म भरवाने के बावजूद बीच सत्र में मंत्रालय ने उनकी
स्कॉलरशिप ख़त्म कर दी और फॉर्म रिजेक्ट कर दिए।
-
01.02.23 को द हिंदू में छपी इशिता मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार जिस
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को 2021-22 में स्कीम्स के लिए 365 करोड़ दिए गए
थे उसे 2022-23 में 44 करोड़ दिए गए, यानी 38% बजट कटौती। 11.02.22 को
न्यूज़क्लिक में छपी रविन्द्र नाथ सिन्हा की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 के
केंद्रीय बजट में एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों के विद्यार्थियों के स्कॉलरशिप
बजट में पिछले साल के बजट की तुलना में 30% गिरावट हुई है। 30.01.20 को
सीबीजीए में छपे लेख में प्रोविता कुंडू बताती हैं कि 2015-16 से 2019-20
के बीच, एससी वर्ग के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप आवंटन 58% घटा है और ओबीसी
वर्ग के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप आवंटन लगभग स्थिर रहा है। 2019-20 की
स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने
एससी वर्ग के छात्रों के लिए जितना बजट माँगा उसका 59% मिला और ओबीसी वर्ग
के छात्रों के लिए जितना बजट माँगा उसका 54% मिला।
हमारी माँगें:
1.केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार स्कॉलरशिप का बजट आवंटन बढ़ाएँ।
2. स्कॉलरशिप आवेदन से आय प्रमाण-पत्र की शर्त को ख़त्म किया जाए।
3.
सरकारी स्कूलों में स्कॉलरशिप आवेदन को पहले की तरह स्कूलों द्वारा
कार्यान्वित किया जाए, नाकि बच्चों द्वारा ख़ुद ऑनलाइन फॉर्म भरने पर छोड़ा
जाए।
4. जाति प्रमाण-पत्र बनवाने में विद्यार्थियों की मदद की जाए।
5. स्कॉलरशिप को मेरिट/परीक्षा आधारित न बनाया जाए; इसके सामाजिक न्याय के स्वरूप व उद्देश्य का पालन किया जाए।
6. यह सुनिश्चित किया जाए कि बैंक खाता या आधार संख्या न होने के कारण कोई भी छात्र अपने वजीफ़े से वंचित न हो।
7.
दिल्ली शिक्षा विभाग व नगर निगम सार्वजनिक करें कि पिछले 10 सालों में
दिल्ली सरकार व नगर निगम के स्कूलों में कितने % एससी/ एसटी/ ओबीसी/
अल्पसंख्यक पृष्ठभूमियों के विद्यार्थियों को वज़ीफ़ा मिला।
8. अभिभावकों, विद्यार्थियों और शिक्षकों से व्यवस्थित ढंग से बात करके स्कॉलरशिप प्राप्ति में आ रही अड़चनों को समझा और सुलझाया जाए।
9. स्कॉलरशिप के पीछे के सामाजिक न्याय के ऐतिहासिक संदर्भ के बारे में शिक्षकों व प्रशासन-तंत्र को सचेत किया जाए।
1 comment:
आपकी चिंता तो वाजिब है और समाज के इस वर्ग को आगे उठाना चाहिए लेकिन रात दिन इसी स्कॉलरशिप इसी जाति गणना के 20 रजिस्टर ने हमारे शिक्षकों को पढ़ाई से दूर कर दिया है ।इस सरकार में भी शिक्षक का बच्चों को पढ़ाने का समय और कम हुआ है। जाति जाति करने से यह वैमनस्य भी और बढ़ रहा है। कृपया इस पर भी विचार करें। यदि इसी में उलझा रहे तो सरकारी स्कूल और बर्बाद होंगे और अंजाम या तो कॉन्ट्रैक्ट टीचर आएंगे या फिर निजी स्कूल और बढ़ेंगे। आपकी चिंता सही होते हुए भी समाधान का सही रास्ता नहीं देती। राजनीतिज्ञों को जाति-जाति करने दो शिक्षा में इसे कम से कम करो! प्रेमपाल शर्मा दिल्ली
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