Tuesday, 19 December 2023

एक 'नैतिक' कथा का पुनर्पाठ


 

Story of 2 Parrots

Once upon a time, a mother parrot was out in search of food for her 2 baby parrots. A hunter stole the 2 baby parrots from the nest and took off. One of the baby parrots managed to escape and flew off a distance and landed near a hermit’s cottage. The hermit took loving care of the baby parrot. The other parrot lived with the hunter and was taught to speak human language but the hunter spoke very rough language. One day a king who had lost his way passed the cottage of the hunter. The parrot saw the king and said, “O come, come hunter and seize this person who is coming on a horse, seize him, bind him, kill him kill him.” Hearing this, the king was very displeased with the parrot and rode further away. This time as he was passing the hermit’s cottage he heard another parrot who said, “O come soon dear hermit, for a guest is here we must welcome him and give him cool shade under this tree and treat our guest with cool waters and sweet fruits!” Hearing this the king stopped and asked the parrot, “It is so strange as I met another parrot who looked exactly same like you, but he spoke unkind words and was very rude while you are so sweet to listen to.”

The parrot related to the king the story of the hunter and how both brothers had been separated from their mother. And how they were raised by different people. The king rested in the hermit’s cottage and reached a conclusion. One learns to speak the language with whoever one is associated with.

Wisdom, Life Lessons, and Rules: We pick up the way we speak to others from the culture we are exposed to since childhood. We have learnt their style, their way of talking from the people we associate since childhood and we may not know any other way, so our language and even our way of thinking is vastly influenced by them.

Therefore, one has to choose circle of friends and company one keeps very wisely. We want to associate with people who are kind and of good character, good values and high principles.

Associating with bad company makes us cultivate more vices instead of virtues!

Credits: The Panchatantra by Visnu Sarma translated by Chandra Rajan

और ये भी 
       
       Panchantantra: The King And The Parrots
Once upon a time, a tribal king who was hunting in the forest caught two parrots in his nest. He was very pleased with this and thought that he would teach the parrots to talk and his children would be happy to play with the talking parrots.

As the tribal king was returning home with his catch, one of the parrots somehow escaped from the net and flew away to the other end of the forest. At the other end of the forest was a sage’s hut. The parrot that escaped started living here with the sage. The other parrot was carried to the tribal king’s home and he began living there with the tribal king and his family.
Many months later, one day, a king from a nearby kingdom was passing through the forest on his horse. While riding, he came near the tribal king’s house. As he came nearer to the house, the tribal king’s parrot who was kept in a cage outside the house, started shouting loudly, “Who is there? Catch this man who is coming here and beat him black and blue.”

The king was displeased on hearing the parrot talk in such a filthy way and decided to ride in the other direction. Soon, he reached the other end of the forest where the sage’s hut was situated. When the king came closer to the hut, the sage’s parrot, who was also kept in a cage outside the hut, said politely, “You are welcome, dear sir. Please come in and have a seat. Would you like a glass of water and some sweets?” After having welcomed the guest with proper manners, the parrot called out to his master, “Guruji, you have a visitor. Please take him inside and offer him some refreshment.”

The king was amazed to see the intelligence and manners of this parrot. He realized the contrast between the tribal king’s parrot who was extremely rude and the sage’s parrot who was polite and courteous. He understood that a good environment and training always give better results and that a man is known by the company he keeps. 

इसी तरह की एक अन्य कहानी में - जोकि दिल्ली के कुछ निजी स्कूलों की पाठ्यपुस्तक में शामिल है - दोनों तोते क्रमशः पंडित व क़साई के घर पलते हैं और इसी आधार पर एक के व्यवहार को श्रेष्ठ तथा दूसरे के व्यवहार को निकृष्ट दिखाया गया है। इस 'लोककथा' के कई संस्करण हैं। कुछ शिकारी को निशाना बनाते हैं, तो कुछ क़साई को या आदिवासियों को। मगर एक बात सबमें समान है - सभी में ऋषि/ब्राह्मण/पंडित का महिमामंडन किया गया है। इस तरह की घोर जातिवादी कहानियाँ निजी स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में आसानी से जगह पाती हैं। NCERT की एक अंग्रेज़ी की पाठ्यपुस्तक में भी इस तरह की कहानी को शामिल तो किया गया है, मगर उसमें जातिवादी पूर्वाग्रह से बचने की सावधानी ज़रूर बरती गई है - शिकारी या क़साई के बदले 'चोरों' को दिखाया गया है। लेकिन इसके बाद यह कहानी भी ऋषि के गुणगान पर जाकर ही टिकती है। लगता है जैसे इन कहानियों का उद्देश्य इंसानों के व्यवहार पर माहौल से पड़ने वाले असर को दर्शाना न होकर एक वर्ग की जन्मजात श्रेष्ठता और दूसरों की जन्मजात हीनता दिखाना हो।  

अब ये कहानी पढ़िए जो इन और इनसे मिलती-जुलती नैतिक कथाओं से प्रेरणा लेकर रची गई है।                  

                        दो काल्पनिक तोते, एक सच्ची कथा 


एक आदमी को तोते पालने का शौक़ चढ़ा। वो चिड़िया बाज़ार से दो तोते ख़रीद कर लाया। उसने उन्हें दो अलग-अलग पिंजरों में रखा और उनके खाने-पीने का इंतेज़ाम किया। कुछ दिन बाद उसने ग़ौर किया कि एक तोता हमेशा खाने, सोने, सुस्ताने और अनाप-शनाप रट लगाने में लगा रहता था। जो भी उसे दाना डालता, वो उसे ख़ुश करने के लिए टाएं-टाएं करता। कभी साधारण दाने डाले जाते तो मुँह फेरकर बैठ जाता, जबकि भूख लगने या स्वादिष्ट खाने की चाहत में टाएं-टाएं करने लगता। ये तोता कुछ ही दिनों में मुटा गया। जबकि दूसरा तोता अपने पंख फड़फड़ाता रहता और पिंजरे से निकलने की कोशिश करता रहता था। वो भूख के अनुसार खाता तो था, मगर किसी को ख़ुश करने के लिए टाएं-टाएं नहीं करता था। बल्कि, कभी कुंडी खोलने की जुगत भिड़ाता, तो कभी पिंजरे की सलाख़ों को अपनी चोंच से पकड़कर मोड़ने की कोशिश करता। उस आदमी को दोनों तोतों के बीच इस फ़र्क़ को देखकर बड़ी हैरानी हुई। वह इसका कारण समझ नहीं पा रहा था। उसने इस विचित्र बात का विश्लेषण करने के लिए अपनी बेटी की राय ली। उसकी बेटी ने बाज़ार जाकर चिड़ियों के उस दुकानदार से बात की जिससे उसके पिता ने तोते ख़रीदे थे। दुकानदार ने उसे बताया कि दोनों तोते उसे अलग-अलग घरों के लोगों ने बेचे थे। एक तोता क़साई के घर पला-बढ़ा था और दूसरा एक पंडित के घर। लड़की ने घर वापस आकर अपने पिता को समझाया कि तोतों के बर्ताव का कारण उनके अलग-अलग सामाजिक माहौल व अनुभव थे। तब कहीं जाकर उस आदमी की जिज्ञासा शांत हुई और अपनी बेटी की सलाह पर उसने दोनों तोतों को आज़ाद कर दिया। 

उपसंहार: सुनते हैं कि जो तोता मुटा गया था वो शिकारी पक्षियों की भेंट चढ़ गया, जबकि दूसरा तोता जंगल में अपने साथियों के बीच लौट गया। 

नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सबक़ मिलता है कि शोषक की पहचान कराने के लिए तोतों को बदनाम करना ठीक नहीं है और आलस्य में मुटाना भी ठीक नहीं है। ठीक तो है अपनी और दूसरों की मुक्ति के लिए प्रयास करते रहना। 
रही कहानियों के संदेश की बात, तो इनसे हमें यह भी पता चलता है कि कैसे प्रतिगामी राजनीतिक चेतना, संस्कृति व मूल्यों के चलते तथ्यों पर आधारित एक समाजशास्त्रीय परिघटना (कि हमारा मानस-व्यवहार एक सामाजिक संदर्भ में निर्मित होता है) को आधार बनाकर भी पूर्वाग्रह, अपमान व घृणा का पाठ परोसा जा सकता है - कामगार/श्रमिक जाति, वर्ग, समुदाय को उनके काम के आधार पर पतनशील साबित करना, वहीं श्रम न करने वाले व परजीवी वर्ग को नैतिक रूप से श्रेष्ठ दिखाना। हमें इन अनैतिक कहानियों का पर्दाफ़ाश करते हुए शिक्षकों तक इनकी आलोचना ले जानी होगी व बच्चों के लिए एक सुंदर तथा बेहतर दुनिया का दर्शन कराने वाला वैकल्पिक साहित्य रचना होगा।

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