लोक शिक्षक मंच यूनाइटेड फ्रंट ऑफ एम सी डी इम्पलॉयीज़ के बैनर तले नियमित समय पर वेतन दिए जाने की माँग पर 27 जनवरी की हड़ताल के आह्वान का स्वागत व समर्थन करता है और शिक्षक साथियों से इसे पूरी तरह सफल बनाने की अपील करता है। साथ ही हम दिल्ली के सभी जन पक्षधर संगठनों से अपील करते हैं कि वो इसमें दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों को सहयोग दें और 27 जनवरी को होने वाली हड़ताल के समर्थन में सुबह 11 बजे जन्तर मंतर पर सभा में शामिल हों।
इस संदर्भ में शिक्षकों की ओर से पहले क़दम के तौर पर इस दिन चॉक-डाउन हड़ताल का पालन होना तय हुआ है, हमें याद करना होगा कि यह उस 'टूल डाउन' का ही स्वरूप है जिसे कि औद्योगिक मज़दूरों के आंदोलनों ने पूँजी के शोषण के विरुद्ध अपने संघर्षों में रचा है। असल में मज़दूरों ने टूल-डाउन या सिट-इन कार्यस्थल पर डटे रहकर काम ठप्प करने की रणनीति को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया जिससे कि उनकी जगह दूसरे मज़दूरों को रखकर, उनकी हड़ताल को तोड़ा न जा सके। एक अन्य मायने में यह भारत की आज़ादी की लड़ाई में अपनाए गए असहयोग आंदोलन में भी निरूपित हुआ। सिट-इन या टूल-डाउन का इतिहास लगभग सौ वर्ष पुराना है और ज़ाहिर है कि अपने संगठित रूप में यह औद्योगिक इकाइयों व पूँजीवादी व्यवस्थाओं में उपजा। 1906 में संयुक्त राज्य अमरीका में जनरल इलेक्ट्रिक के मज़दूरों का अपने साथियों की बर्खास्तगी के विरोध में उत्पादन ठप्प कर देना हो या 1968 के छात्र विद्रोह की कड़ी में फ्रांसीसी मज़दूरों द्वारा बड़े स्तर पर हड़ताल करके कारखाने अपने कब्ज़े में लेना हो या फिर 2012 में मारुती सुजुकी मज़दूरों का ठेकाकरण व काम की शोषणकारी परिस्थितियों के खिलाफ और यूनियन बनाने के अधिकार के लिए हड़ताल करने का उदाहरण हो, इतिहास हड़ताल की ताक़त व ज़रूरत का गवाह है।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यह हड़ताल न किसी नीति से उपजे असंतोष के कारण हो रही है, न कर्मचारियों की बर्खास्तगी के विरुद्ध, न काम के घंटे बढ़ाए जाने या छुट्टियाँ कम किये जाने के विरुद्ध और न ही कोई सुविधा वापस लेने या छँटनी के विरुद्ध। यह निगम द्वारा अपने कर्मचारियों से बेगार लेने के विरुद्ध है। आंदोलन के प्रथम चरण के स्तर पर यूनियन का यह निर्णय लेना कि शिक्षकों को विद्यार्थियों की हाज़िरी लेनी है, मिड-डे-मील बँटवानी है और उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखना है, एक ज़िम्मेदारी व समझदारी भरा उदाहरण प्रस्तुत करता है। फिर भी हमारे सामने इस चुनौती से निपटने की भी बौद्धिक-राजनैतिक तैयारी होनी चाहिए कि एक तो हम अपने विद्यार्थियों की वर्गीय परिस्थिति के संदर्भ में अपनी लड़ाई को उनकी लड़ाई से जोड़े रखें और दूसरे इस हक़ीक़त को उनके माता-पिता व परिवारों के साथ एकजुटता बढ़ाने के काम लायें। कोई भी हड़ताल हमारी एक पेशागत इकाई के रूप में पहचान व एकजुटता को गहरा करने में मददगार होती है और शायद यही वजह है कि सत्ता हड़तालों से इस क़द्र घबराती है कि क़ानून बनाकर उन्हें प्रतिबंधित कर देती है। मगर नर्सों, शिक्षकों, सफाईकर्मियों, डॉक्टरों, मालियों, मज़दूरों, इंजीनियरों आदि की इस संयुक्त हड़ताल में यह संभावना है कि यह हमें अपने पेशे मात्र से एक बड़ी और अधिक मानवीय पहचान तथा पक्षधरता देगी। इस अर्थ में यह हड़ताल ऐतिहासिक हो सकती है बशर्ते हम इसका स्वागत व इस्तेमाल मेहनतकशों के बीच आपसी रिश्ते व एकजुटता बनाने के लिए कर पायें।
वेतन का भुगतान नहीं होने की स्थिति सिर्फ हमारे व्यक्तिगत अस्तित्व से नहीं जुड़ी है। हमें आशंका है कि कल इसी को पूरी सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को ही खारिज करके ध्वस्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। एक ओर यह दलील दिए जाने तथा शिक्षकों द्वारा इसका विरोध नहीं करने का खतरा है कि क्योंकि निगम वेतन नहीं दे पा रहा है इसलिए स्कूलों को निजी हाथों में दे दिया जाए जोकि समय पर वेतन दे सकेंगे। फिर उन्हें इस 'क़ाबिल' बनाने को स्कूलों के परिसरों को ही व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दे दी जाए। दूसरी तरफ हमारी रचनाशीलता व जनपक्षधरता के तत्वों के बिना अगर हड़ताल लम्बी चलती है तो एक वर्ग हमारे संघर्ष को जायज़ मानते और उससे सहानुभूति रखते हुए भी धीरे-धीरे निजी स्कूलों का रुख़ करने को मजबूर होगा। चाहे वह सार्वजनिक स्कूलों का निजीकरण हो या फिर उसमें पढ़ने वाले बच्चों का निजी स्कूलों की तरफ पलायन, दोनों ही स्थितियाँ हमारे तथा हमारे विद्यार्थियों के पक्ष में नहीं हैं।
अब जबकि हम कई महीनों बिना वेतन के काम करते रहे हैं, हममें से कुछ ने ज़रूर अभाव का समय ग़ुजारा होगा। बहुतों ने यार-दोस्तों से उधार लिए होंगे जोकि सहज आत्मीयता के दायरे में होने के कारण ब्याज के छल से मुक्त रहे होंगे। निःसंदेह इन दोनों अनुभवों ने हमें आगे के संघर्षों के लिए और मज़बूत और मानवीय भी बनाया होगा।
लोक शिक्षक मंच इस हड़ताल का वृहद राजनैतिक चेतना व गठबंधन विकसित होने की संभावना के संदर्भ में स्वागत करता है और इसे सफल बनाकर, सभी माँगों को मनवाने तथा सर्व-कर्मचारी एकजुटता क़ायम रखने का संकल्प लेता है।
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