Friday, 22 January 2016

प्रैस विज्ञप्ति: क्रांतिकारी युवा संगठन के साथी शहनवाज़ के पुलिसिया उत्पीड़न व साम्प्रदायिक बदसलूकी के खिलाफ


लोक शिक्षक मंच आज दिनाँक 22 जनवरी 2016 को दिल्ली पुलिस द्वारा क्रांतिकारी युवा संगठन के साथी शहनवाज़ के राजनैतिक अधिकारों का हनन करके हिरासत में लिए जाने और साम्प्रदायिक बदसलूकी किये जाने का सख्त विरोध करता है। शहनवाज़ को दिल्ली पुलिस ने आज सुबह तब डिटेन कर लिया जब वह अपने पुराने विद्यालय - राजकीय बाल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, वेस्ट पटेल नगर - के बाहर सरकारी व निजी स्कूलों के संदर्भ में शिक्षा में व्याप्त असमानता पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए रिकॉर्डिंग कर रहा था। यह शर्मनाक और नाकाबिले-बर्दाश्त है कि शहनवाज़ को न सिर्फ अपना पहचान-पत्र दिखाने व उसके पुराने स्कूली शिक्षकों द्वारा पहचानने पर भी नहीं छोड़ा गया बल्कि पटेल नगर थाने में ले जाकर उसको मज़हबी पहचान की बिना पर घृणास्पद सम्बोधनों, टिप्पणियों व धमकियों का निशाना बनाया गया। अंततः पुलिस को KYS के कार्यकर्ताओं के दबाव में शाम होते-होते शहनवाज़ को छोड़ना पड़ा।
यह घोर चिंता का विषय है कि जहाँ एक ओर नरसंहारों के आरोपियों/दोषियों को क़ानून का इस क़द्र संरक्षण प्राप्त है कि वो संवैधानिक पदों तक पर आसीन हैं वहीं देश के मेहनतकश वर्गों के लोकतान्त्रिक अधिकारों तथा समानता के पक्ष में काम करने वाले युवाओं को प्रताड़ित करने के लिए 'सुरक्षा' के छद्म बहाने गढ़ लिए जाते हैं और उनके साधारण व मौलिक अधिकारों तक को कुचल दिया जाता है। इस प्रकरण से हमें एक बार फिर लोकतान्त्रिक अधिकारों पर राज्य के बढ़ते दमन तथा राज्य तंत्र में फैलाई जा रही साम्प्रदायिक असहिष्णुता व हिंसा का उदाहरण मिलता है। हमें यक़ीन है कि KYS व हम अन्य जनवादी संगठनों के साथी ऐसी फासीवादी कार्रवाइयों की चुनौती के प्रति दोगुने हौसले के साथ समानता व इंसाफ के हक़ में डटे रहेंगे।
हम माँग करते हैं कि शहनवाज़ के अधिकारों व गरिमा का हनन करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ निष्पक्ष जाँच हो तथा दोषी पाये जाने पर उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई हो। हम यह भी माँग करते हैं कि पुलिस को सख्त हिदायत दी जाए कि वो लोकतान्त्रिक कायकर्ताओं व कलाकारों का उत्पीड़न करना बंद करे और हर नागरिक के साथ अपनी बोलचाल तथा अपने व्यवहार में क़ानून व सभ्य मर्यादा का पालन करे।      

3 comments:

Anonymous said...

लोक शिक्षक मंच बधाई के पात्र हैं जो नागरिक अधिकारों के समर्थन में खड़ा है विशेषतः उस दौर में जब इन पर चारों तरफ से हमला हो रहा है। पर जाति उत्पीड़न के सवाल को छुए बिना क्या मंच अपने मूल्यों के साथ खड़ा हो पाएगा? पूरा देश हैदराबाद विश्वविद्यालय में तंत्र द्वारा ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दिए जाने, जिसमे एक दलित शोधार्थी को अपने आप को खत्म करने को बाध्य होना पड़ा, पर रोश व्यक्त कर रहा है। देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। मंच द्वारा इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। लोक शिक्षक मंच, जो अपनी सक्रियता के लिए जाना जाता है और शिक्षा के क्षेत्र में घटने वाली किसी भी घटना में प्रतिक्रिया करने में अग्रणी रहा है, क्या इस घटना को इस लायक नहीं समझता की इस पर प्रतिक्रिया की जाये? क्या जाति का सवाल मंच के लिए अब (कब रहा?) महत्वपूर्ण नहीं रहा? या मंच की भी वही राय है कि वर्ग महत्वपूर्ण है जाति कुछ नहीं होती! वैसे इस ब्लॉग का नियमित पाठक होने के नाते ये सवाल पूछ रहा हूँ। और यह भी जानना चाहूँगा कि मंच ने कब-कब जाति-उत्पीड़न को लेकर इस तरह की प्रेस-विज्ञप्ति जारी की या कोई सार्वजानिक विज्ञप्ति निकाली। चूँकि यह मंच जिन लक्ष्यों को लेकर चल रहा है मुझे लगता है उपर्युक्त प्रश्न पूछना जायज़ है!
धन्यवाद

LOK SHIKSHAK MANCH said...

प्रिय साथी, हम आपकी आलोचना को स्वीकारते हैं और इसके लिए आपका धन्यवाद करते हैं। आपके जैसे सजग पाठक हमें अपने उद्देश्यों से भटकने से रोकने में सहायक हैं। हमारे लिए जाति का सवाल मंच की स्थापना से ही महत्वपूर्ण रहा है और हमारा मानना है कि भारत के संदर्भ में जाति की बात किये बिना वर्ग की बात करना बेमानी है। फिर भी यह सच है कि हमें जाति के बिंदु पर अपनी समझ बेहतर बनाने तथा पक्षधरता व संघर्ष मुखर करने के और स्पष्ट प्रयास करने होंगे। इसमें आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं। रोहित की आत्महत्या को हम संस्थानिक मौत मानते हैं और इस पूरे घटनाक्रम के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय पर आयोजित संयुक्त सभा में मंच के सदस्यों ने भी भागीदारी की है। हालाँकि हम स्वीकारते हैं कि हम इसपर कोई सार्वजनिक वक्तव्य जारी नहीं कर पाये हैं। हम आशा करते हैं कि आप इसी तरह अपनी टिप्पणियों, सुझावों व आलोचनाओं से संवाद कायम रखेंगे।

Anonymous said...

मैं लोक शिक्षक मंच का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ जिसने मेरी टिप्पणी को जवाब लायक समझा। इसलिए भी शुक्रिया कि आपने अपना पक्ष साफ़ किया। फिर भी कुछ सवाल अनुत्तरित रह गए हैं। ज़रूरी नहीं आप इनका उत्तर दें ही।

एक तरफ जहाँ आप कहते हैं कि "हमारे लिए जाति का सवाल मंच की स्थापना से ही महत्वपूर्ण रहा है और हमारा मानना है कि भारत के संदर्भ में जाति की बात किये बिना वर्ग की बात करना बेमानी है।" वहीँ इतनी साफ़ समझ के बावज़ूद के बाद भी जातिगत मुद्दों पर (चाहे वह भगाना कांड हो या राजस्थान के स्कूल में दलित बच्चे को मात्र इसलिए पीटा जाना कि उसने सवर्णों के बच्चों की थाली छू ली थी या इसी तरह की अनेकों घटनाएं) मंच की तरफ से कोई सार्वजानिक बयान नहीं आता है।

रोहित की 'आत्महत्या' को आप 'संस्थानिक मौत' (हालाँकि मैं इसे सांस्थानिक हत्या मानता हूँ) मानते हैं और इसके विरोध में "दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय पर आयोजित संयुक्त सभा में मंच के सदस्यों ने भी भागीदारी की है." क्या आप मानते हैं कि एक व्यक्ति विशेष या चंद व्यक्तियों के अपने व्यक्तिगत आधार पर शामिल होने और एक संगठन के रूप में शामिल होना एक ही बात है? अगर ऐसा है तो फिर संगठन की आवश्यकता क्या है? उस संयुक्त सभा में तो एक-दो लोग दक्षिणपंथ के भी खड़े थे तो क्या आरएसएस को भी विरोध में शामिल मान लिया जाएं? मुझे लगता है कि इस पर सोचने की आवश्यकता है।

अंत में आप यह "स्वीकारते हैं कि हम इस पर कोई सार्वजनिक वक्तव्य जारी नहीं कर 'पाये' हैं।" आपका यह कथन ऐसा आभास देता है कि किसी कारणवश (मज़बूरी??) आप ऐसा नहीं कर पाएं। पर इस घटना के 10 दिन बाद भी क्या वह कारण (मज़बूरी) बनी हुई है?

इस उम्मीद के साथ कि आपकी यह 'मज़बूरी' जल्दी ही ख़त्म हो!

टिप्पणियों, सुझावों व आलोचनाओं को स्थान देने और संवाद कायम रखने के लिए एक बार पुनः शुक्रिया।