शिक्षा के हक़ के लिए एकजुट हों
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हाल में सीबीएसई ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा और प्रैक्टिकल फ़ीस बढ़ा दी है| SC/ST वर्ग के विद्यार्थियों से 5 विषयों के लिए 50 रुपए के बजाय 1200 रुपए (यानी 24 गुना ज़्यादा) और जनरल श्रेणी के विद्यार्थियों से 750 के बजाय 1,500 रुपए मांगे गए हैं| हालांकि विषयों की संख्या के मुताबिक़ कुछ स्कूलों में कक्षा 12 के विद्यार्थियों को 2,750 रूपए तक देने पड़े हैं| हम इस निर्णय का कड़ा विरोध करते हैं।
इस निर्णय से दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले करीब 3 लाख़ बच्चे प्रभावित हुए हैं| हालांकि बहुत विरोध होने के बाद दिल्ली सरकार ने स्कूलों को यह निर्देश दिए हैं कि फिलहाल सीबीएसई की बढ़ी हुई फीस बच्चों से न ली जाए| लेकिन हमारे सामने कई सवाल ज्यों के त्यों बने हुए हैं –
• क्या गारंटी है कि आने वाले सालों में भी दिल्ली सरकार यह फीस बच्चों से नहीं लेगी?आख़िर इस साल तो दिल्ली में चुनाव हैं|
• सीबीएसई केंद्र सरकार के अन्दर आता है| क्या ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली केंद्र सरकार को लड़कियों की शिक्षा पर इतना बड़ा हमला दिखाई नहीं दे रहा?
• आख़िर सीबीएसई के पास बोर्ड परीक्षा कराने और जांचने का पैसा क्यों नहीं है जो इसे यह बच्चों से उगाहना पड़ रहा है? अगर देश का पैसा बच्चों को पढ़ाने के लिए नहीं है तो फिर किन कामों में लगाया जा रहा है?
• अगर आज बच्चों से पेपर चेक करने की फीस वसूली जा सकती है तो कल और किन-किन चीज़ों की?
• चाहें सरकारी स्कूल हों या सरकारी अस्पताल, डीटीसी बसें, रेलवे; ये सब जनता के पैसे से खड़े हैं| इनका मकसद मुनाफ़ा कमाना है या जनता की सेवा करना?
जब से सीबीएसई द्वारा फीस बढ़ाने की ख़बर आई है तब से विद्यार्थी पूछ रहे हैं कि वे यह पैसा कहाँ से देंगे| दिल्ली में मज़दूर परिवारों को न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती, वे किराए के कमरों में रहते हैं| कई जगह तो एक ही घर में दो-तीन बच्चों की बोर्ड फीस जानी है| ऐसे में फीस के चलते न जाने कितने बच्चे - खासकर दलित वर्ग के बच्चे और लड़कियाँ- स्कूलों से बाहर हो जाएंगे|
कई शिक्षकों का भी कहना है कि उन पर यह दबाव डाला जा रहा है कि जल्द-से-जल्द बच्चों से फीस ली जाए, नहीं तो देरी होने पर सीबीएसई स्कूल पर ही भारी जुर्माना लगा देगा| जब 2 साल पहले ही सीबीएसई ने फ़ीस बढ़ाई थी तो यह झूठ क्यों बोला कि उसने 5 सालों से फीस नहीं बढ़ाई है?
और अगर केंद्र सरकार ने NTA (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) संस्था बनाकर सीबीएसई की कमाई के स्रोत कम किए हैं तो बोर्ड को इसकी माँग सरकार से करनी चाहिए कि वह उसका बजट बढ़ाये ना कि बच्चों से पैसा उगाहना चाहिए| ऐसा लगता है मानो सीबीएसई शिक्षा का बोर्ड न हो बल्कि कोई कंपनी हो जो घाटे की दुहाई देकर अपने प्रोडक्ट का दाम बढ़ा रही है।अब यह हमें तय करना है कि शिक्षा बच्चों का अधिकार है या कोई बिक्री की चीज़|
फ़ीस वृद्धि का यह क़दम शिक्षा पर एकलौता हमला नहीं है।दाख़िले के समय से ही हमारे बच्चों की शिक्षा पर कई तरीकों से हमला बढ़ रहा है। कभी आधार-बैंक खाता न होने पर दाखिला नहीं दिया जाता| कभी सरकारी स्कूल कह देते हैं किसी सीटें भर गई और कई स्कूल तो ऐसे हैं जिनमें बच्चे आधी-आधी पाली में पढ़ रहे हैं|
कक्षा 9 के बाद तो बच्चों की पढ़ाई पर हमला और तेज़ हो रहा है| जो बच्चे कक्षा 9 में फेल हो रहे हैं उनमें से अधिकतर को ओपन स्कूल में पढ़ने पर मजबूर किया जा रहा है| और जो बच्चे आज भी स्कूलों के अन्दर पढ़ रहे हैं उनकी पढ़ाई लगातार हल्की की जा रही है ताकि वे बड़े होकर न प्रश्न पूछें और न ही अपने अधिकारों के लिए लड़ें| कॉलेजों का भी यही हाल है| रेगुलर कॉलेज की फीस आसमान छू रही है और SOL में न क्लासें हैं, न टीचर, न किताबें|
इन हमलों का शिकार सिर्फ़ भारतीय जनता नहीं हो रही है| अन्य देशों की जनता पर भी उनकी सरकारें ऐसे ही हमले कर रही हैं| कई देशों की जनता सड़कों पर उतरकर ऐसी नीतियों का विरोध कर रही हैं, जब कि भारत की सड़कें सूनी हैं।और किसी ने सही कहा है कि जब सड़क मौन होगी तो संसद अमीरों व धन्ना सेठों की ही बीन बजाएगी| हमें इस पूँजीवादी व्यवस्था से लम्बी लड़ाई लड़नी होगी| मगर हमें यह भी याद रखना है कि केवल सस्ती और वैज्ञानिक शिक्षा की लड़ाई ही काफी नहीं है, हमें अपने-आपको एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए भी तैयार करना होगा जहाँ मनुष्य मनुष्य का शोषण न कर सके।
हमारी मांगें –
• बढ़ी फ़ीस वापिस लो
• कक्षा 12 तक की शिक्षा पूरी तरह मुफ़्त और अनिवार्य करो
• सभी बच्चों को एक-समान, गुणवत्ताभरी और वैज्ञानिक शिक्षा दो
इंक़लाब ज़िंदाबाद! छात्र-शिक्षक एकता ज़िन्दाबाद
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