प्रति
आयुक्त
पूर्वी दिल्ली नगर निगम
पटपड़गंज, दिल्ली – 96
विषय : पूर्वी दिल्ली नगर निगम के स्कूलों के साथ काम कर रहे टेक महिंद्रा फाउंडेशन के दिवंगत कर्मचारी कौशलेन्द्र प्रपन्न के साथ हुए अन्याय के संदर्भ में
महोदय/महोदया
लोक शिक्षक मंच आपके समक्ष पूर्वी दिल्ली नगर निगम के स्कूलों के साथ पीपीपी के तहत काम कर रहे टेक महिंद्रा फाउंडेशन से जुड़े एक गंभीर विषय को लेकर अपना गुस्सा और माँगें रखने जा रहा है| इस संस्था के एक कर्मचारी कौशलेन्द्र प्रपन्न को जिस तरह से प्रताड़ित किया गया वो उनकी मौत का कारण बनाI इस घटनाक्रम को त्रासद अंजाम तक पहुँचाने में पूर्वी दिल्ली नगर निगम की भूमिका भी कठघरे में हैI
पीपीपी की नीति के तहत 2013 से पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने शिक्षकों के इन-सर्विस कार्यक्रम चलाने के लिए अपना सेवाकालीन प्रशिक्षण संस्थान (आईटीईआई) टीएमएफ को सौंप दिया है| टीएमएफ टेक महिंद्रा लिमिटिड की CSR (कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी) इकाई है| कौशलेन्द्र प्रपन्न इसी टीएमएफ के साथ दिल्ली में बतौर वाइस प्रिंसिपल के रूप में पांच सालों से काम कर रहे थे|
कई सालों से कौशलेन्द्र स्कूलों व स्कूली शिक्षा की समस्याओं पर विभिन्न स्थानीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं और मंचों पर एक अध्येता व विश्लेषक के तौर पर संवेदनशीलता से लिखते आ रहे थे। 25 अगस्त 2019 के दिन भी कौशलेन्द्र का एक लेख जनसत्ता में छपा, जिसका शीर्षक था, ‘शिक्षा: न पढ़ा पाने की कसक’ | उन्होंने इस लेख में यह बताया था कि निगम के स्कूल किन मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं|
‘आजकल शिक्षक चाह कर भी स्कूलों में पढ़ा नहीं पा रहे हैं। पठन- पाठन के अलावा, शिक्षकों के पास ऐसे कई दूसरे सरकारी काम होते हैं..जनगणना, बालगणना, बैंक में बच्चों के खाते खुलवाना, आधार लिंक करवाना, डाइस का डाटा भरना, दफ्तरी आंकड़े इकट्ठे करना आदि| इससे उनकी शिक्षा में कुछ नए प्रयोग करने की प्रक्रिया थम सी जाती है’ ?
साथ ही कौशलेन्द्र ने स्कूली व्यवस्था की कमियों के लिए सिर्फ़ शिक्षकों को ही दोष देने वाली राजनीति पर भी सवाल खड़े किए थे और व्यवस्थागत कमियों को उजागर किया था|
‘इसी दिल्ली में नगर निगम के स्कूलों में इस तरह की सुविधाएं अब भी एक सपना ही हैं| इन विद्यालयों में शौचालय और पीने का पानी तक नहीं होता| गन्दगी में ही बच्चे बैठते हैं| आईसीटी लैब है लेकिन शिक्षक नहीं’|
परिवारजनों के अनुसार, लेख छपने वाले दिन कौशलेन्द्र को कंपनी से फ़ोन आया और मीटिंग के लिए हेड ऑफिस बुलाया गया| वहां उन्हें ज़लील किया गया और धमकी दी गई, ‘हमारा प्रोजेक्ट बंद करवाओगे क्या? पूर्वी एमसीडी से बहुत दबाव है| अपना दाना-पानी ढूंढ लो|’ बजाय इसके कि अपनी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता दर्शाते हुए निगम शिक्षा के एक हितेषी लेखक द्वारा स्कूलों के निःस्वार्थ वर्णन को सुझाव व सुधार के संकेत की तरह लेता, चुनाव के दौर में निगम ने इस लेख को आड़े हाथों लिया और निगम के कुछ अधिकारियों ने टीएमएफ पर दबाव डाला कि इस तरह के लेख से निगम की छवि ख़राब हो रही है|
इस सबका परिणाम यह हुआ कि कौशलेन्द्र को कार्यस्थल पर कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया और उन पर मानसिक दबाव बनाकर उनसे इस्तीफ़ा ले लिया गया| अपने काम की वजह से सराहे जाने वाले कौशलेन्द्र प्रपन्न इस जलालत से शिक्षक-दिवस पर कार्डिएक अरेस्ट की चपेट में आ गए और हिन्दी में शिक्षा के सवाल उठाने वाला यह लेखक हिंदी-दिवस यानी 14 सितंबर 2019 के दिन चल बसा| उनके पीछे उनकी पत्नी और 11 महीने का बेटा है|
इस पूरे घटनाक्रम का एक कारण यह भी था कि सरकारी शिक्षकों को नाकारा साबित करके ही टीएमएफ जैसी संस्थाएं सरकार को अपने ‘क्षमता निर्माण कार्यक्रम’ बेचती आई हैं| ऐसे में जब कौशलेन्द्र ने शिक्षकों की विषम परिस्थितियों को ईमानदारी से बयान करते हुए एक लेख लिखा तो इन तत्वों को अपने स्वार्थ ख़तरे में पड़ते नज़र आए| साफ़ है कि इन निजी संस्थाओं और सार्वजनिक स्कूल व्यवस्था के हितों के बीच स्थाई टकराव है|
यह चिंताजनक है कि आज शिक्षा केवल राज्य और नागरिकों के बीच प्रतिबद्धता का मामला नहीं है, बल्कि इसमें एनजीओ व कॉर्पोरेट संस्थाएं स्वतंत्र और ताक़तवर इकाई बन चुके हैं| शिक्षा व्यवस्था में एनजीओकरण को लेकर हमारे अनुभव और तमाम अध्ययन यह बताते हैं कि चाहे वो ‘नन्हीं कली’ प्रोग्राम हो या ‘टीच फॉर इंडिया’ या ‘प्रथम’, ये अपने संसाधनों और तामझाम के बल पर मोहित करते हैं| इतिहास गवाह है कि ये ताकतें सार्वजनिक व्यवस्था को खोखला करती आ रही हैं| ऐसे में निगम का अपने प्रशिक्षण संस्थानों को, डाइट व SCERT के अकादमिक सहयोग से चलाने के बजाय, टीएमएफ जैसी निजी संस्था को सौंपना ख़तरनाक है| ऐसी साझेदारियाँ निगम के चरित्र और शिक्षा के सार्वजनिक स्वरूप के लिए भी घातक सिद्ध होंगीI
हम मांग करते हैं कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम –
1. कौशलेन्द्र के साथ हुए मानसिक उत्पीड़न की जांच करे|
2. कौशलेन्द्र को मौत के मुंह तक पहुंचाने में औजार बने निगम व टीएमएफ के अधिकारियों की जिम्मेदारियां निर्धारित करके उनके खिलाफ़ उचित कार्रवाई करे|
3. निगम को अपनी सेवा देने वाले कौशलेन्द्र के परिवार को उचित मुआवज़ा दे|
4. उपरोक्त मंथन के आधार पर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने संबंधी नियमावली निर्धारित करे व उसे सार्वजनिक करे|
5. दोषी पाए जाने पर टेक महिंद्रा के साथ अपने अनुबंध को तुरंत रद्द करेI
6. शिक्षा में सभी पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) अनुबंधों को ख़ारिज करे और शिक्षा के सार्वजनिक चरित्र को बहाल करे|
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