Sunday, 22 August 2021

इतिहास शिक्षिका की दृष्टि से 'अखंड भारत' पर कुछ सवाल

 यह खुला पत्र दिल्ली के शिक्षा निदेशालय के एक स्कूल की इतिहास की शिक्षिका द्वारा स्कूल स्टाफ़ के व्हाट्सऐप ग्रुप पर डाले गए 'अखंड भारत' की संकल्पना से प्रेरित व उसे पोषित करने वाले एक संदेश की प्रतिक्रिया में लिखा गया था। 'अखंड भारत' के मूल संदेश का संदर्भ तालिबान लड़ाकों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में अप्रत्याशित तेज़ी से सैन्य नियंत्रण हासिल करना था। शिक्षिका के अनुसार संवाद आमंत्रित करते इस आलेख पर अधिकतर शिक्षक साथियों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। शिक्षिका द्वारा नाम साझा न करने के अनुरोध पर उनके इस आलेख को छापा जा रहा है।    



स्वतंत्रता दिवस पर इस मैसेज को पढ़कर यह प्रश्न मन में आया कि क्या मैं चाहूँगी कि आज के अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तिब्बत, नेपाल, श्री लंका, भूटान, म्यांमार, 'अखंड भारत' का हिस्सा बनें?
मेरा जवाब है - बिल्कुल नहीं। मुख्यत: इसके दो कारण हैं जो मैं आपके साथ साझा करना चाहूँगी।
1. पहला कारण है इतिहास - मेरी समझ से इतिहास में पाकिस्तान-बांग्लादेश के अलावा इनमें से किसी भी देश का 'भारत' के साथ लम्बा साझा इतिहास नहीं है। फिर यह कहना कि ये 'अखंड भारत' का हिस्सा हैं, इनकी अपनी पहचान को दोयम करता है। 
2. दूसरा कारण है भविष्य - अगर इतिहास में कभी ये देश भारत के हिस्से रहे होते, तब भी आज इन्हें भारत में मिलाने की कोशिश केवल युद्ध और अशांति को जन्म देगी। एक समय के बाद इतिहास में मनमाफ़िक चयन (सेलेक्टिव इतिहास) के आधार पर भौगोलिक क्षेत्र का दावा बेमानी हो जाता है। अन्यथा तो सभी महाद्वीप कभी एक ही ज़मीन के हिस्से थे या हम सभी का इतिहास कभी-न-कभी किसी और क्षेत्र के इतिहास से जुड़ा है। अगर कल यह सिद्धांत साबित हो जाए कि सभी आधुनिक मानव अफ्रीकी मानव के वंशज हैं तो क्या हम सब अफ्रीका को अपना पूर्वज मान लेंगे? या कल ब्रिटेन यह कहे कि उसका ऐतिहासिक साम्राज्य दोबारा बनना चाहिए तो क्या हम ग़ुलामी स्वीकार कर लेंगे? 

मैं अपनी बात को नीचे विस्तार से कहना चाहूँगी।
1. इतिहास
(क) वैसे तो इन सभी देशों का इतिहास खंगलाना होगा लेकिन समय के अभाव के चलते मैं केवल अफ़ग़ानिस्तान के उदाहरण से अपनी बात कहना चाहूँगी। सवाल है कि क्या अफ़ग़ानिस्तान कभी भी भारत का हिस्सा था। 
एक समय ऐसा था जब सभी मनुष्य शिकार - संग्रहण - मछली पकड़ना करते थे। मुझे लगता है [कि आज के] भारत और अफ़ग़ानिस्तान दोनों में ऐसा ही रहा होगा। इसलिए इस समय के साझे इतिहास को छोड़ देते हैं। फिर आज से लगभग 4600 साल पहले उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, हिंदुस्तान एक साझी सभ्यता के हिस्से थे - सिंधु घाटी सभ्यता। उस समय न कोई देश था और न कोई साम्राज्य। उस समय हड़प्पाई शहरों में - जो आज के अफ़ग़ानिस्तान - पाकिस्तान - भारत में फैले हैं - व्यापारिक व अन्य सम्बन्ध थे। लेकिन इस इतिहास को भी छोड़ देते हैं क्योंकि इस समय तक राष्ट्रों का जन्म नहीं हुआ था।
(ख) आज से लगभग 2500 साल पहले (यानी हड़प्पा सभ्यता के 2000 साल बाद) आज के अफ़ग़ानिस्तान पर ईरानी साम्राज्य (हखामनी) का शासन स्थापित हुआ। यह वो समय था जब राज्यों और साम्राज्यों की शुरुआत होने लगी थी। दुनिया में स्वतंत्र लोकतान्त्रिक देश नहीं थे बल्कि भौगोलिक क्षेत्रों के ऊपर किसी-न-किसी राजा का शासन था। ये राज्य अक्सर अपना क्षेत्र फैलाने के लिए युद्ध लड़ते थे और एक-दूसरे पर कब्ज़ा करते थे। इस समय भारत में भी राज्य व साम्राज्य बनने शुरु हो गए थे, जैसे गंगा घाटी के राज्य - कुरु, पांचाल, मगध आदि। उस समय के बौद्ध ग्रंथों से हमें पता चलता है कि आज के पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में कम्बोज और गांधार नामक महाजनपद मौजूद थे। 
अफ़ग़ानिस्तान में वापस लौटते हैं। ग्रीस के सिकंदर ने हखामनी साम्राज्य को हराकर अफ़ग़ानिस्तान वाले क्षेत्र पर भी अपना शासन स्थापित किया। उसके नाम से अफ़ग़ानिस्तान में कई शहर बने। जब चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के साम्राज्य के कुछ हिस्से अपने साम्राज्य में मिलाने की कोशिश की तब उसे सिकंदर के कमांडर सेल्यूकस निकेटर से युद्ध करना पड़ा। पर युद्ध टल गया और दोनों के बीच संधि से काम चल गया। निकेटर ने चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि की और आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान का गांधार, हिन्दूकुश वाला हिस्सा और (आज के पाकिस्तान का) बालूचिस्तान मौर्य साम्राज्य में शामिल हो गए। इसी संधि में निकेटर की बेटी हेलेना से चन्द्रगुप्त मौर्य की शादी हुई। मौर्य साम्राज्य का प्रभाव लगभग 125 साल रहा। इस समय अफ़ग़ानिस्तान में बौद्ध मत फैला जिसके साक्ष्य अभिलेखों और बौद्ध मूर्तियों के रूप में मिलते हैं। 
(ग) इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान में ग्रीको-बैक्ट्रियन (ग्रीस से), इंडो-पार्थियंस (ईरान से), कुषाण (चीन से; जिनका साम्राज्य भारत में आज के उत्तर-प्रदेश-बिहार तक पहुँचा), ससानी (ईरान से) आदि ने साम्राज्य बनाया। इनमें से कई सम्राज्यों के काल में बौद्ध मत का भी विस्तार हुआ। जरथुस्त्र, मूर्तिपूजक आदि मान्यताएं पहले से मौजूद थीं। हालांकि इस काल के बहुत से साक्ष्य न बचे हैं और न स्पष्ट हैं।
(घ) सासानियों को हराकर जब सफ़वी और उसके बाद ग़ज़नी ने शासन किया तब अफ़ग़ानिस्तान में इस्लाम का प्रभाव फैला। ग़ज़नी शासन आज के पाकिस्तान तक पहुँचा। 
(ड.) पूरे मध्य काल में अफ़ग़ानिस्तान मुख्यत: ईरानी साम्राज्य का हिस्सा रहा, हालांकि विभिन्न राज्यों द्वारा अपने विस्तार के लिए संघर्ष चलते रहे। जैसे 850 ई. के करीब हिन्दू शाही राज्य ने काबुल घाटी, गांधार, पश्चिमी पंजाब वाले हिस्से पर लगभग 200 साल शासन किया। इन सभी साम्राज्यों की विभिन्न धार्मिक मान्यताएँ और संस्कृतियाँ थीं जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के कबीलों को लगातार प्रभावित भी किया। 
(च) 16-17 शताब्दियों (आज से 500 साल पहले) में अफ़ग़ानिस्तान के एक हिस्से पर तुर्क मूल के साम्राज्य, दूसरे हिस्से पर ईरानी सफ़वी और तीसरे हिस्से पर मुग़लों का शासन था। अकबर के काल में मुग़ल साम्राज्य के 12 सूबों में से एक सूबा काबुल भी था। कंधार को लेकर सफ़वियों और मुग़लों के बीच संघर्ष चलता रहा।
यानी कि अफ़ग़ानिस्तान का कुछ हिस्सा समय-समय पर उन साम्राज्यों का हिस्सा बना जिनका शासन भारत में भी था। 
(छ) 18 वीं शताब्दी में एक ईरानी सैनिक कमांडर नादिर शाह ने अफ़ग़ानों को हराकर अफ़ग़ानिस्तान को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसके सैनिक कमांडर अहमद शाह की सेना कश्मीर, लाहौर को जीतते हुए दिल्ली, मथुरा तक भी पहुँची। उसके पंजाब के लिए सिखों के साथ बार-बार युद्ध हुए। इसी अहमद शाह दुर्रानी को आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान राज्य का स्थापक माना जाता है, शायद इसलिए क्योंकि इसने विभिन्न पशतून कबीलों को जोड़ा और बड़े अफ़ग़ानिस्तान साम्राज्य की स्थापना की, ईरान और मुग़ल प्रभाव को ख़त्म किया आदि।
(ज) इस समय तक हिंदुस्तान पर अंग्रेज़ों का शासन स्थापित होने लगा था। अंग्रेज़ों ने (भारतीय सैनिकों के ज़रिए) अफ़ग़ानों के साथ दो युद्ध लड़े। वे अफ़ग़ानिस्तान को अपनी कॉलोनी (ग़ुलाम) नहीं बना पाए लेकिन संधियों के चलते अफ़ग़ानिस्तान की विदेशी नीति नियंत्रित करने लगे। लेकिन अंग्रेज़ तीसरा आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध हार गए और इसके बाद अंग्रेज़ों ने अफ़ग़ानिस्तान के प्रति हस्तक्षेप न करने की नीति अपना ली। इसे अफ़ग़ानिस्तान अपने स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है। अंग्रेज़ों को यह तसल्ली थी कि अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटिश भारत का बॉर्डर निश्चित हो गया।
(झ) अब इस जटिल इतिहास में से एक पन्ना फाड़कर कोई कहे कि अफ़ग़ानिस्तान अखंड ईरान का हिस्सा है या अखंड भारत का हिस्सा है या अखंड इस्लामिक साम्राज्य का हिस्सा है तो क्या यह अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास से न्याय होगा? क्या यह ऐतिहासिक रूप से सही होगा और क्या यह वहाँ के लोगों को मंज़ूर होगा? क्या यह अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के प्रति सम्मानजनक होगा? 
() अन्य देशों का इतिहास पढ़ने के लिए जो समय चाहिए उसके अभाव के चलते मैं उनके इतिहास को यहाँ नहीं रख पाऊँगी। पर ऊपर लिखे गए इतिहास की एक कमी चिन्हित करना चाहूँगी। इस तरह की राजनीतिक और साम्राज्यवादी इतिहास कथा में अक्सर 'लोग' नहीं होते। राजाओं की आकांक्षाओं के पीछे ज़मीनों, संसाधनों, ग़ुलामों, यश की चाहत तो होती है पर उन लोगों की इच्छाएँ कोई राजा नहीं पूछता जिन पर राज करने के लिए हमले किए जाते हैं। इस लम्बे जटिल राजनीतिक इतिहास में अफ़ग़ानिस्तान के लोग कहाँ है? पता नहीं, क्योंकि राजाओं की जंग इंटरनेट और किताबों में आसानी से मिल जाती है पर जनता के अनुभव नहीं मिलते। इसलिए कौन से साम्राज्य ने जनहित वाली नीतियाँ लागू कीं जिनसे अफ़ग़ानिस्तान के लोग ख़ुश हुए और कौन से राजाओं ने विरोध दबाने के नाम पर जनता को दबाया; नहीं पता। यह बहुत अध्ययन माँगेगा।

2. भविष्य
(क) आज कोई भी देश अगर अपनी सीमाओं को बढ़ाकर दूसरे देशों को अपने अंदर मिलाना चाहता है तो हम उसे 'साम्राज्यवादी/इम्पीरियलिस्ट' कहते हैं। तो क्या 'अखंड भारत' का सपना रखना भारत को साम्राज्यवादी नहीं बनाएगा? ऐसे भविष्य की कल्पना में सदियों तक चलने वाले युद्ध साफ़ दिखाई देते हैं; जैसे तिब्बत और चीन का झगड़ा।
(ख) जैसे भारत विविधताओं का देश है, वैसे ही अफ़ग़ानिस्तान में विभिन्न कबीले, श्री लंका में विभिन्न भाषाई समूह, म्यांमार में विभिन्न धार्मिक समूह आदि हैं। हमारे देश की तरह ही इनके बीच भी कभी आंतरिक शांति और सामंजस्य होता है और कभी इनके आपसी सम्बन्ध ख़राब हो जाते हैं। क्या भारत के लोग इन देशों की इतनी जटिलताओं को समाहित करने की क़ाबीलियत रखते हैं? क्या अखंड भारत बनने से हमारे और इनके आपसी झगड़े सुलझ जाएँगे? या फ़िर दुनिया में नए झगड़े जन्म लेंगे?
(ग) क्या भारत के अंदर कश्मीर, बस्तर, निकोबार, मिज़ो आदि की जनता की आकांक्षाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति और सम्मान मिल गया है? तब संभव है कि हमारे पड़ोसी देशों के नागरिक या समूचे विश्व के लोग 'अखंड भारत' में मिलने के लिए प्रेरित महसूस करें। और क्या हम तैयार हैं कि 'विलय' के बाद अगर आज के बांग्लादेश/अफ़ग़ानिस्तान/म्याँमार/भूटान का/की कोई मज़दूर, 'अखंड भारत' का प्रधानमंत्री बनना चाहे तो बन सकेगा/सकेगी? 
(घ) हाँ, अगर सभी देश मानव मात्र के नाम पर एक हो जाएँ, सीमाएँ ख़त्म कर दी जाएँ, राष्ट्रीयताएँ घोल दी जाएँ, फ़ौज व हथियार ख़त्म कर दिए जाएँ, तो सिर्फ़ 'अखंड भारत' पर ही नहीं, 'वसुधैव कुटुंबकम' पर भी बात कर सकते हैं।     

3. मैंने यह भी समझने की कोशिश की कि भारत के बारे में यह जानकारी कि 'अफ़ग़ानिस्तान, तिब्बत, नेपाल, श्री लंका, भूटान, म्यांमार आदि अखंड भारत का हिस्सा थे' कहाँ से आई। मुझे इंटरनेट पर एक लेख मिला लेकिन इसमें लेखक ने यह नहीं बताया है कि उनकी जानकारी के प्राथमिक स्रोत क्या हैं। आप स्वयं पढ़ सकते हैं। https://www.thehillstimes.in/featured/akhand-bharat-concept-based-on-truth/

अंत में, मैं भारत के इतिहास की ही बहुत सीमित समझ रखती हूँ तो एक अन्य देश - अफ़ग़ानिस्तान - के जटिल इतिहास को समझना तो बहुत कठिन है; इसलिए ग़लतियों की बहुत सम्भावना है। सुधार की प्रार्थी हूँ।
धन्यवाद


3 comments:

Unknown said...

अच्छा लिखा है और अनिवार्य है। इसे लोगों को पढ़ें k लिए प्रेरित करना चाहिए।

सुकरात said...

बेहतरीन...

Anonymous said...

Expansionist policies को follow करने वाले देश (geographical area wise) जैसे चीन, इजरायल अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए कुछ ऐसे maps और धारणाएं लोगों और देशों के दिमागों में चलाते रहते हैं अपनी propaganda machinery के ज़रिए। Greater Israel और चीन का अरुणांचल, सिक्किम, तिब्बत, ताइवान, दक्षिण चीन सागर और न जाने कितने छोटे island समूहों पर claim.
चूंकि हमारा देश इस तरह की ज़ोर जबरदस्ती से हथियाए गए देशों का traditionally खुलकर कभी भी समर्थन नहीं करता, जिसकी कुछ अपनी मजबूरियां हैं और बाध्यताएं भी - उनमें से कश्मीर भी एक वजह है - आधिकारिक तौर पर कभी भी सरकार इस map को स्वीकार नहीं करेगी। लेकिन वह विचारधारा जो आज कल जोरों पर है वो व्हाट्सएप और अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स या कहें कि टेक्नोलॉजी का बखूबी इस्तेमाल करके इस तरह की धारणाओं को प्रवाहित कर रही है। हिटलर के सिद्धांत, कि झूठ को जितनी बार कहा जाए वह सच लगने लगता है, का प्रयोग लोगों की धारणाओं को बदलने के लिए किया जाता है।
उनमें से कुछ उदाहरण हैं -
आज़ादी के बाद सिर्फ एक ही धर्म के लोगों को शिक्षा मंत्री क्यों बनाया गया?
गांधी और नेहरू ने भगत सिंह को नहीं बचाया।
हमारा अखंड भारत अभी तक बिखरा क्यों है? क्योंकि 70 सालों से हमारी सरकार सिर्फ घोटाला करने में busy थी।
मुझे लगता है कि इसमें उन emotional और uninformed लोगों की भी कोई ग़लती नहीं। उनको ढंग से इतिहास पढ़ाने वाला कोई अध्यापक आज तक मिला नहीं या फिर उनकी रुचि विकसित की ही नहीं गई। ये लोग उस समय में पढ़ाई कर रहे थे जब साइंस लेने वाला कला वर्ग लेने वाले से superior कहलाता था। साइंस के अध्यापक साइंस में कमज़ोर छात्रों को arts section में भेज देने की धमकियां देते थे। फिर जब यह generation नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगी तब उसको समझ आया कि इतिहास की किताबें अब उठानी ही पड़ेंगी। तब adulthood के उस phase में अगर कोई वैज्ञानिक सोच रखने वाला इतिहास का अध्यापक मिला तो इनकी समझ का और विस्तार हुआ। नहीं तो अगर यहां भी कोई अपना नज़रिया थोप कर ब्रेनवाश करने वाला शिक्षक मिल गया तो वहां से निकलने का रास्ता आसान नहीं है।
Sanjeev Sanyal की पुस्तक "The Ocean of Churn, How the Indian Ocean Shaped Human History" कई तथ्य पेश करती है जिनसे यह समझ आता है कि किस तरह दक्षिण के पल्लव laos, combodia और thailand से belong करते हैं। कैसे चोल शासकों ने south east asian countries, china, sri lanka तक अपने व्यापार के ज़रिए अपने संबंध स्थापित किए थे। राजा राज चोल प्रथम ने वर्तमान के श्री लंका की राजधानी को भी एक समय में अपने अधीन कर लिया था। हमारे इतिहास में अन्य कई उदाहरण हैं जब हमारे वर्तमान भारत के नक्शे में दक्षिण भारत हुआ ही नहीं करता था लेकिन पूरा सेंट्रल एशिया आया करता था।
मेरे कहने का मतलब यह है कि इस नक्शे में आस-पास के सारे देशों को अखंड भारत का हिस्सा बताया गया है लेकिन sri lanka, laos, combodia, indonesia को नहीं। तो मेरा मानना यह है कि यह सिर्फ उत्तर भारत के व्हाट्सएप समूहों को ध्यान में ही रख कर बनाया गया है। ताकि कल को लोग महंगाई के बारे में पूछें तो उनको डांट कर कहा जाए, "चुप करो! हमारा अखंड भारत का सपना पूरा करने के लिए सरकार पेट्रोल महंगा करके पैसे जुटा रही ताकि अपने इलाके को युद्ध करके वापिस लिया जा सके और तुम्हें अपने नमक और तेल की पड़ी है!"