प्रति,
अध्यक्षा
दिल्ली महिला आयोग
विषय: स्कूलों व शिक्षा विभाग के कार्यालयों में लैंगिक रूप से असंवेदनशील तथा महिला-विरोधी व्यवहार एवं भाषा के निषेध के लिए दिशा-निर्देश जारी करने हेतु
महोदया,
दिनांक 24/09/2023 को आपके कार्यालय में लोक शिक्षक मंच द्वारा भेजे गए 'उप शिक्षा निदेशक द्वारा पहनावे के आधार पर एक शिक्षिका के मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ़ विरोध पत्र' और 16/10/2023 को दिल्ली महिला आयोग में हुई मीटिंग के संदर्भ में हम इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान उन महिला-विरोधी निजी टिप्पणियों एवं व्यवहार पर दिलाना चाहते हैं जो दिल्ली के स्कूलों में सामान्य रूप से दिखाई देता है। हम, दिल्ली के सरकारी/निगम स्कूलों में कार्यरत शिक्षक, आपके साथ ऐसी कुछ टिप्पणियाँ साझा कर रहे हैं जिनके हम गवाह रहे हैं। पितृसत्तात्मक मनस से उपजी ये अनाधिकार टिप्पणियाँ महिलाओं के शरीर, पहनावे, पसंद-नापसंद, निजी फैसलों, भूमिका, यौनिकता आदि को नियंत्रित करने की कोशिश करती हैं और उनकी अस्मिता पर आघात पहुँचाती हैं। महिला एवं पुरुष अधिकारियों/सह-कर्मियों द्वारा की जाने वाली ऐसी टिप्पणियाँ सामने वाले व्यक्ति (महिलाओं) की निजता का अतिक्रमण करती हैं। साथ ही, ऐसी टिप्पणियाँ उन अधिकारों - जैसे स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार - का हनन करती हैं जिन्हें महिलाओं ने लम्बे नारीवादी संघर्ष के बाद जीता है।
हाल ही में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी 'Handbook on Combating Gender Stereotypes' (2023) जारी करके अदालतों में लैंगिक रूप से आपत्तिजनक भाषा के प्रयोग को चिन्हित करते हुए इसके प्रति गंभीरता जताई है। लैंगिक रूप से आपत्तिजनक एवं महिला-विरोधी भाषा-व्यवहार को लेकर हम शिक्षा विभाग से भी इसी गंभीरता व ज़िम्मेदारी की उम्मीद रखते हैं।
आपकी जानकारी और कार्रवाई के लिए हम स्कूलों एवं कार्यालयों में की जाने वाली महिला-विरोधी टिप्पणियों की एक सांकेतिक सूची इस पत्र के साथ संलग्न कर रहे हैं।
स्कूल में महिलाओं पर की जाने वाली टिप्पणियों की सांकेतिक सूची -
क) परिधान संबंधी टिप्पणियाँ
दुपट्टा कहाँ है? दुपट्टा क्यों नहीं डाला?
ये कैसे कपड़े पहने हैं?
इतने टाइट कपड़े क्यों पहने हैं?
स्कूल में तो साड़ी ही पहनकर आना चाहिए।
स्कूल में जींस नहीं पहननी हैI
बिंदी क्यों नहीं लगाती?
साड़ी में तो मैडम बहुत कमाल लग रही हैं।
किसे लाइन मारने को इतना सज कर आई हो?
ख) शरीर संबंधी टिप्पणियाँ
मोटी हो रही हो, प्रेगनेंट हो क्या?
थोड़ी साफ़-सुथरी और सुंदर बन कर आया करो।
'लंबू', 'गिठ्ठी', 'काली', 'मोटी', 'पतली' मैडम
इतनी 'सुंदर' हो फिर शादी क्यों नहीं हुई?
मैडम, कुछ खा लिया करो।
चश्मा हटाने का आपरेशन करा लो।
ग) निजी फ़ैसले/जीवन संबंधी टिप्पणियाँ
देर रात तक व्हाट्स ऐप पर ऑनलाइन रहती हो!
घर में कोई काम नहीं है क्या?
मैडम, खाना नहीं बनाना क्या घर जा कर?
व्हाट्स ऐप स्टेटस तो बड़ा जल्दी-जल्दी बदलती हो, स्कूल के मैसेज क्यों नहीं देखे?
उम्र हो रही है, शादी क्यों नहीं करती?
बुड्ढी होकर शादी करनी है क्या?
उम्र हो रही है, बच्चे क्यों नहीं पैदा करती?
इतना टाइम हो गया शादी को, बच्चे क्यों नहीं हो रहे हैं?
अभी तो पहले बच्चे की मैटरनिटी लीव से आईं थीं! अब फिर से छुट्टी चाहिए?
लव मैरिज की है इसने, काफ़ी तेज़ है!
आपके सास-ससुर आपके बारे में क्या सोचते हैं?
बच्चों का ध्यान रखना छोड़ रखा है क्या?
कितना फ़ालतू टाईम है आपके पास! (यदि पुरुष सहकर्मियों की तरह कार्यस्थल पर देर तक रुको तो, न रुको तो 'पता नहीं कैसी नौकरी करती हैं ये!')
यूनिवर्सिटी में पढ़ती हो तो वहीं कोई लड़का क्यों नहीं फँसा लेती? यूनिवर्सिटी में होता ही क्या है, लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे की गोद में ही बैठे रहते हैं!
आजकल किसके साथ घूम रही हो?
बाहर की संस्कृति में क्यों जीती हो?
घ) महिलाओं की परम्परागत भूमिका संबंधी टिप्पणियाँ
टीचर तो बच्चे की मां की तरह होती है। उनमें नैतिक गुण डालना उनकी ज़िम्मेदारी है।
कुछ काम महिलाओं को ही शोभा देते हैं।
इतना तर्क करती है, ससुराल में किसी को बोलने नहीं देगी।
ड.) खान-पान संबंधी टिप्पणियाँ
स्कूल में मांसाहारी खाना नहीं ला सकते।
ये सब खाना है तो अलग बैठकर खाओ।
(आशय यह होता है कि 'अच्छी'/'संस्कारी' महिलाओं, खासतौर से शिक्षिकाओं, के लिए, माँसाहार वर्जित है! यानी, माँसाहार करने वाली महिलाएँ 'बुरी' होती हैं।)
अत: हम अपील करते हैं कि दिल्ली महिला आयोग इस मुद्दे की गंभीरता से संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग को कार्यस्थल पर (स्कूलों व कार्यालयों में) लैंगिक रूप से संवेदनशील व्यवहार एवं उचित भाषा संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने और ट्रेनिंग आयोजित करने का प्रस्ताव देI
सधन्यवाद
लोक शिक्षक मंच
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