प्रति
शिक्षा मंत्री,
दिल्ली सरकार
विषय: दिल्ली सरकार व नगर निगम के स्कूलों में FLN (आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता) की नीति के दुष्प्रभाव
महोदया,
लोक शिक्षक मंच आपके समक्ष FLN (आधारभूत साक्षरता एवं
संख्यात्मकता) एवं 'मिशन बुनियाद' को लेकर, जोकि मुख्यतः FLN की संकल्पना
पर आधारित है, अपने आलोचनात्मक अनुभव, अवलोकन एवं आपत्तियाँ दर्ज करना
चाहता है। हालाँकि, हमारा मानना है कि FLN की अवधारणा में ही कुछ बुनियादी
समस्याएँ हैं, फिर भी यहाँ हम सैद्धांतिक बहस में न जाते हुए अपनी बात को
केवल व्यावहारिक पक्ष तक सीमित रखेंगे।
1.
FLN पर ज़ोर देने के चलते पढ़ाई के स्तर से समझौता हो रहा है। न केवल बाक़ी
विषयों की अनदेखी हो रही है, बल्कि भाषा व गणित में भी विषयवस्तु और
उद्देश्य सीमित हुए हैं। उदाहरण के तौर पर, खेल व कला के साथ-साथ सामाजिक
अध्ययन व पर्यावरण अध्ययन जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों को दिया जाने वाला समय व
महत्त्व कम हो रहा है। वहीं
दूसरी तरफ़, नगर निगम के स्कूलों के संदर्भ में, प्रथम व द्वितीय कक्षाओं
के पाठ्यक्रम में परिवेश अध्ययन के समेकित विषय को मौखिक स्तर पर पढ़ाने के
बदले, इसे सामाजिक अध्ययन व पर्यावरण अध्ययन में तोड़कर, अलग-अलग किया गया
है। प्रथम दो कक्षाओं में, पाठ्यचर्या के मानकों के विपरीत जाकर, पर्यावरण
अध्ययन नामक विषय में लिखित परीक्षा ली जा रही है। कक्षाई स्तर से असंबद्ध
विषय तथा परीक्षा-प्रणाली थोपना न सिर्फ़ पाठ्यचर्या के स्थापित व सर्वसम्मत
मानकों के विरुद्ध है, बल्कि विषयों तथा बाल-विकास सिद्धांतों के भी
विपरीत है।
2.
शिक्षकों के लिए विषय की गहराई में जाकर पढ़ाना मुश्किल होता जा रहा है।
विषयों को आपस में जोड़कर व सुगठित पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से पढ़ाने के
बदले, विषयों को अलग-थलग ज्ञान क्षेत्रों की तरह बरता जा रहा है।
पाठ्यपुस्तकों की जगह एकाकी वर्कशीट्स ले रही हैं जिनमें अक़सर कोई सतत व
जीवंत संदर्भ नहीं होता है। नतीजतन, ये वर्कशीट्स न विद्यार्थियों से संवाद
स्थापित कर पाती हैं और न ही शिक्षकों को प्रेरित करती हैं।
3.
FLN के कारण बच्चों को चिन्हित करके उनके बीच वर्गीकरण किया जा रहा है।
इससे बच्चों की कक्षाई इकाई टूट रही है और उनके मनस पर (श्रेष्ठता व हीनता
का) नकारात्मक असर पड़ रहा है। शिक्षा तथा इंसानी अस्तित्व के तमाम आयामों
को दरकिनार करके, मात्र साक्षरता/संख्यात्मकता के न्यूनतम स्तरों के आधार
पर विद्यार्थियों को चिन्हित व वर्गीकृत करने से विद्यार्थियों के आत्मबोध
का धरातल संकुचित हो रहा है। इस अलगाववादी पहचान से उनके आपसी मासूम
रिश्तों व दोस्तियों पर बुरा असर पड़ रहा है। FLN
में केवल अक्षर तथा संख्या ज्ञान को महत्त्वपूर्ण बना देने के कारण
विद्यार्थियों की अन्य क्षमताओं और गुणों को कक्षा में पहचान नहीं मिलती
जिससे उनका आत्मविश्वास टूटता है। इससे इन विद्यार्थियों तथा उनके 'साक्षर'
सहपाठियों को भी उस सर्वांगीण विकास का अवसर नहीं मिल पाता जो कि शिक्षा
का असल व मूल लक्ष्य है और जिसकी प्राप्ति के लिए एक-दूसरे का साथ और
एक-दूसरे से चर्चा अनिवार्य है।
सांस्कृतिक
व अधिगमात्मक विविधता कक्षा को कमज़ोर नहीं करती, बल्कि साथ तथा मिलकर
सीखने व जीने के मूल्यों से कक्षा को समृद्ध करती है। एक ही कक्षा के
विद्यार्थियों को अलग-अलग करके, उन्हें अलग-अलग स्तर के कोर्स पढ़ाने से
शिक्षा समानता के मूल्य के प्रति अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी निभाने से विमुख
हो रही है। इस तरह के आंकलन से बच्चों
में यह ख़तरनाक व झूठा संदेश प्रेषित हो रहा है कि वो (हम सब)
अपनी-अपनी स्थिति के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार हैं। यह शिक्षा न केवल हमारे समाज
की क्रूर हक़ीक़त को झुठलाती है, बल्कि स्वार्थी व्यक्तिवाद तथा
परस्पर उदासीनता का अनैतिक चित्रण पेश करती है।
4.
FLN के डाटा-केंद्रित होने के चलते शिक्षकों का बहुत-सा वक़्त त्वरित रपटें
बनाने और डाटा भरने में जा रहा है। इससे शिक्षकों को वैसे भी सीमित हुई
पढ़ाई के लिए और कम वक़्त मिल रहा है। शिक्षकों को अप्रत्यक्ष रूप से यह
जताया जा रहा है कि पढ़ाने से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण काम डाटा भरना और रपट
तैयार करना है। लगातार होने वाले मूल्यांकन तथा परीक्षण के चलते नियमित रूप
से व सघन पढ़ाई कराना बाधित हो रहा है। ऐसी पढ़ाई दुर्लभ होती जा रही है जो
ग़ैर-अकादमिक आदेशों के पालन के दबाव से मुक्त हो। विद्यार्थियों को लगातार
परीक्षण की नहीं, नियमित शिक्षण की ज़रूरत है।
5.
बच्चों के विविध गति से सीखने की सहज परिघटना को अस्वीकार करके उनकी पढ़ाई
को एक तयशुदा व डाटा-निर्धारित पैमाने पर कसने से न सिर्फ़ बच्चों पर
अनावश्यक दबाव बन रहा है, बल्कि शिक्षक भी वृहत्तर तथा ईमानदाराना
शिक्षण से दूर हो रहे हैं। शिक्षक उस गहरे व व्यापक शिक्षण के लिए
कम समय का निवेश कर पा रहे हैं जो सही मायनों में शिक्षा को सार्थक
बनाता है।
6. FLN के चलते समय-सारणी, साप्ताहिक/ दैनिक विषयवस्तु, शिक्षण
गतिविधियाँ, परीक्षण, सबका केंद्रीकरण हो रहा है। इन्हें स्कूलों व
शिक्षकों के विवेक और निर्णयों के दायरों से बाहर करके शिक्षकों
की बौद्धिक/ पेशागत स्वायत्तता तथा पहलक़दमी को ख़त्म
किया जा रहा है। यह हमारी कमज़ोरी है कि ग़ुस्से से ज़्यादा
हम शिक्षक ख़ुद को लाचार, विवेकहीन और एजेंसीहीन महसूस कर रहे हैं। महज़ आदेशपालन की यह स्थिति शिक्षकों के मनोबल के लिए हानिकारक है और हमारी पेशागत अस्मिता को कमज़ोर कर रही है।
7.
अब तक एक शिक्षिका प्रथम से पंचम कक्षा तक अपने विद्यार्थियों के नियमित,
सघन संपर्क में रहती थी और सभी विषय पढ़ाती थी। FLN के तहत प्राथमिक कक्षाओं
की शिक्षणशास्त्रीय रूप से स्थापित इस कामयाब व सुंदर कक्षा-शिक्षक
व्यवस्था को भी ख़त्म किया जा रहा है। प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षकों को
विषयों तथा स्तरों (लेवल) तक सीमित करके उनकी कक्षाओं को ही नहीं तोड़ा जा
रहा है, बल्कि ख़ुद शिक्षकों के उनकी कक्षाओं व विद्यार्थियों से संबंध
विच्छेद किए जा रहे हैं। हमारे अधिकतर स्कूलों की परिस्थितियों के मद्देनज़र
यह व्यवस्था न सिर्फ़ अव्यावहारिक है, बल्कि इससे शिक्षकों के अपने
विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के साथ के रिश्ते बिखर रहे हैं। कहना न
होगा कि प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक-कक्षा/ विद्यार्थियों के बीच नियमित व
लंबा साथ आपसी रिश्तों, बच्चों के भावनात्मक स्थायित्व, बच्चों को क़रीब से
जानने और उनके सर्वांगीण विकास के लिए कितना ज़रूरी है। हम जानना चाहेंगे
कि शिक्षक-कक्षा के संबंधों को कमज़ोर करने वाला यह कदम किस शिक्षाशास्त्रीय
सिद्धांत व शोध के आधार पर उठाया गया है। कुल
मिलाकर, हमें लगता है कि FLN व इसके तहत अपनाए जा रहे दिशा-निर्देश बच्चों
के समतामूलक शिक्षा के अधिकार, शिक्षकों के गहन शिक्षण के अधिकार व पेशागत
गरिमा का हनन कर रहे हैं। नतीजतन, स्कूल बच्चों के सर्वांगीण विकास के
प्रति समर्पित व जवाबदेह रहने वाले शिक्षा संस्थानों के बदले महज़ साक्षरता/
ट्यूशन केंद्रों में परिवर्तित हो रहे हैं। इस नाते कि हमारे स्कूलों में
पढ़ने वाले अधिकतर विद्यार्थी वंचित-शोषित वर्गों से आते हैं जिन्हें बराबरी
पर टिकी तथा गहन पढ़ाई की और अधिक ज़रूरत है, FLN के ये प्रभाव विशेषकर
चिंताजनक हैं।
हम
आपसे माँग करते हैं कि FLN के उपरोक्त दुष्प्रभावों के मद्देनज़र इस नीति
पर पुनर्विचार किया जाए, शिक्षाविदों तथा शिक्षकों के साथ विमर्श किया जाए
और इस बाज़ारवादी नीति को हटाया जाए।
सधन्यवाद
लोक शिक्षक मंच
प्रतिलिपि
महापौर, दिल्ली नगर निगम
शिक्षा मंत्री, केंद्र सरकार
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
GSTA
MCTA
No comments:
Post a Comment