Monday, 18 July 2016

दिल्ली सरकार द्वारा पिछले एक साल में स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में निर्णयों/नीतियों के संदर्भ में प्रतिक्रिया

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प्रति                                               
शिक्षा मंत्री 
दिल्ली सरकार 

विषय: दिल्ली सरकार द्वारा पिछले एक साल में  स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में निर्णयों/नीतियों के संदर्भ में प्रतिक्रिया 

महोदय,

लोक शिक्षक मंच शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का संगठन है जिसमें शिक्षक, विद्यार्थी, शोधार्थी आदि शामिल हैं। हम दिल्ली सरकार द्वारा पिछले एक वर्ष में स्कूली शिक्षा के संदर्भ में लिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसलों पर अपनी राय से आपको अवगत कराना चाहते हैं। इस राय में जहाँ हम कुछ क़दमों का स्वागत करते हैं, वहीं दूसरी ओर हम कुछ अन्य निर्णयों पर अपना विरोध दर्ज कराकर उन्हें वापस लेने की माँग भी करते हैं। 

इस संदर्भ में हम मुख्यतः निम्नलिखित पहलकदमियों पर आपको बधाई देते हैं –

1.      शिक्षा के लिए बजट में वृद्धि करना एक जनहितकारी निर्णय है। इसे जारी रखना चाहिए। 
2.      शिक्षकों को जनगणना की ड्यूटी रूपी ग़ैर-शैक्षिक ज़िम्मेदारी से मुक्त करना बच्चों की शिक्षा के हित में एक अच्छा कदम था। हम आशा करते हैं कि सरकार इस निर्णय को नीतिगत स्तर पर अमलीजामा पहनाएगी। 
3.      स्कूलों में पहले से अधिक संख्या में सफाई कर्मचारियों की तैनाती से विद्यार्थियों को बेहतर माहौल मिल रहा है। इससे स्कूलों के प्रति अभिभावकों व समुदाय में भी विश्वास कायम होगा। 
4.      स्कूलों में अतिरिक्त प्रशासनिक कामों के लिए प्रधानाचार्यों की सहायता के लिए 'एस्टेट मैनेजर' का पद बनाने से निश्चित ही प्रशासन पहले से सुलभ होगा, जिसका सीधा लाभ शिक्षकों व विद्यार्थियों को मिलने की सम्भावना है। 
5.      गर्मी की छुट्टियों में स्कूलों में ग़ैर-अकादमिक गतिविधियों के लिए 'समर कैंप' लगाना एक अच्छा फैसला साबित हो सकता हैI इससे विद्यार्थियों को उनके बचपन के हक़ों से जुड़े ज़रूरी अवसर मिलने का एक रास्ता खुला है।
6.      ये उम्मीद की जा सकती है कि निजी स्कूलों की बाज़ारवादी व मुनाफाखोर प्रवृत्तियों के खिलाफ सरकार द्वारा क़ानून व न्यायालय के आदेशों के तहत सख्त रवैये के प्रदर्शन से इनपर कुछ अंकुश लगा होगा और अभिभावकों को शोषण से कुछ राहत मिली होगी। 

उपरोक्त क़दमों का स्वागत करते हुए हम अपनी ज़िम्मेदारी के तहत आपकी सरकार द्वारा निम्नलिखित फैसलों पर अपनी आपत्ति व विरोध दर्ज करना चाहते हैं –
   
1.      एस्टेट मैनेजर के पद को रिटायर्ड व्यक्ति के लिए रखना व सफाई कर्मचारियों को ठेकाकरण पर 'आउटसोर्स' करना नाइंसाफी है। क्योंकि ये काम नियमित स्वरूप के हैं इसलिए इनकी तैनाती नियमित आधार पर ही होनी चाहिए। लगातार होते प्रदर्शनों व वायदों के बावजूद शिक्षकों के पदों को नियमित आधार पर भरा नहीं गया है| गेस्ट और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों पर खड़ी हुई यह व्यवस्था अपने मूल स्वरूप में शोषणकारी हैI
2.      सरकार का वह विधेयक अनुचित है जिसमें निजी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन को फीस से जोड़ने का प्रावधान किया गया है। यह न सिर्फ संविधान द्वारा प्रदत्त बराबरी के उसूल का निषेध है, बल्कि शिक्षकों  के हक़ों का उल्लंघन भी है जो कि शिक्षण के बारे में एक हतोत्साहित करने वाला, अपमानजनक संदेश देता है। इससे घटिया स्तर के निजी स्कूलों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ शिक्षकों का शोषण वैधता प्राप्त करेगा 
3.      हम नो-डिटेंशन नीति को हटाने के विधेयक का विरोध करते हैं। एक तो यह निर्णय बिना किसी गहन शोध-अध्ययन के, सतही स्तर के प्रचारी उन्माद के प्रभाव में लिया गया है। दूसरी तरफ, यह शिक्षा को परीक्षा व परिणामों का पर्याय मानने की ग़लत समझ पर आधारित है। यह डर को शिक्षा के केंद्र में स्थापित करके, शिक्षा के अधिकार पर भी आघात करता है। सरकार को इसे वापस लेना चाहिए और उन आर्थिक-सामाजिक कारणों को दूर करने में अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए जो सभी बच्चों को समान शिक्षा व सीखने के अवसरों से वंचित करते हैं। 
4.      सरकार द्वारा इस बीच रेडियो-अख़बारों में जो इश्तेहार जारी किये गए हैं, उनमें 'सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से भी बेहतर' बनाने के इरादों के कथन शामिल हैं। इस संदर्भ में शब्दों के ऐसे चयन पर हम आपके समक्ष अपनी घोर आपत्ति दर्ज करना चाहेंगे। निजी स्कूलों का पैमाना भले ही लोकलुभावन हो, मगर यह सतही है और समाज में शिक्षा की भ्रांतिपूर्ण समझ को बढ़ावा देता है। सरकार द्वारा खुद यह संदेश देना कि सरकारी स्कूल व्यवस्था निजी स्कूलों के सामने दोयम दर्जे की है, अनुचित व ग़ैर-ज़िम्मेदाराना है। 
5.      स्कूलों में, खासतौर से कक्षाओं में भी, CCTV कैमरे लगाना न केवल स्कूलों के अकादमिक, लोकतान्त्रिक माहौल के विरुद्ध जाता है, बल्कि यह शिक्षकों का अपमान भी है। शिक्षण व स्कूलों को यांत्रिक निगरानी का निशाना बनाकर हम लोकतंत्र को भी कमज़ोर कर देंगे। स्कूलों-शिक्षकों को जवाबदेह होना चाहिए, पर इसके लिए CCTV से उनके कर्म, व्यवहार पर नज़र रखना बेहद आपत्तिजनक है। यह शिक्षा पर राज्य व यांत्रीकरण के बढ़ते अंकुश को दर्शाता हैI कक्षाओं, मैदानों में CCTV लगाने से छात्र-छात्राओं की निजता, सहजता व स्वतंत्रता का अतिक्रमण होता है। इन्हें व ऐसे यांत्रिक निगरानी के उपकरणों को हटाकर हमें नियमित और अकादमिक रूप से बेहतर-प्रगतिशील निरीक्षणों की व्यवस्था करने की ज़रूरत हैI  
6.       स्कूलों में कौशल विकास के कोर्सों (NSQF - The National Skills Qualifications Framework) को बढ़ावा देना स्कूलों के अकादमिक चरित्र व विद्यार्थियों के हक़ों के विपरीत है। सरकार को अपने ITI Polytechnic संस्थानों की संख्या बढ़ाने व उन्हें समृद्ध करने की ज़रूरत है। दूसरी ओर, जब सिर्फ सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों पर कौशल विकास के नाम पर कोर्स थोपे जाते हैं तो वस्तुतः उनकी उच्च-शिक्षा का रास्ता बंद हो जाता हैI यह पहले से ही वंचित वर्गों से आने वाले विद्यार्थियों के साथ सरासर धोखा और अन्याय है। वर्ग आधारित भेदभाव के अलावा इनमें लैंगिक स्तर पर रूढ़ीवादी विभाजन होने की भी प्रबल सम्भावना होती है। हमारा मानना है कि सार्वजनिक स्कूल व्यवस्था को समाज में विद्यमान असमानता को पुनरुत्पादित करने या विद्यार्थियों में महज़ बाज़ार के अनुकूल कौशल विकसित करने का स्थल नहीं होना चाहिए बल्कि उसे नकारने चुनौती देने का साझा स्थल होना चाहिए। कौशल-विकास के कोर्स थोप कर विद्यार्थियों से उनकी पसंद के विषयों के विकल्प छीन लिए जाते हैं और फिर वो अक़्सर विश्वविद्यालयों आदि में प्रवेश लेने की विषय संबंधी न्यूनतम शर्तों को भी पूरा नहीं कर पाते हैं
7.      पिछले एक वर्ष में शिक्षा निदेशालय में न सिर्फ पुस्तक-सामग्री, पाठ्यक्रम व परीक्षा के स्तर पर बल्कि नीति-निर्धारण व प्रशासन के स्तर पर भी ग़ैर-सरकारी, निजी संस्थाओं (NGO) का हस्तक्षेप बढ़ाया गया है। इन संस्थाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में ग़ैर-जवाबदेह शक्ति देकर सरकार एक गम्भीर ग़लती कर रही है। इन्हें दखल देकर सरकार यह भूल रही है कि इनके समर्थन के तार उस सोच से जुड़े हैं जो शिक्षा को सार्वजनिक हित का नहीं बल्कि निजी निवेश और बाज़ार का क्षेत्र मानती है। इसी कारण शिक्षा की इनकी समझ भी कमज़ोर व विकृत है। इनके बढ़ते हस्तक्षेप से स्कूलों के माहौल को शिक्षा के वृहत सरोकारों के बदले कॉरपोरेट कम्पनियों के प्रबंधन की तर्ज पर ढालने की कोशिश हो रही है। इस प्रक्रिया में SCERT से लेकर शिक्षा निदेशालय के कर्मियों व प्रधानाचार्यों से शिक्षकों तक के मनोबल पर कुठाराघात हो रहा है। इन निजी संस्थाओं को सरकारी स्कूली तंत्र में जगह देने से सार्वजनिक संस्थान और कमज़ोर होंगेI उनका चरित्र, जनता के प्रति लोकतान्त्रिक व जवाबदेही के बदले, बाज़ारवादी, बहिष्करणवादी और छितला बनेगा। हम माँग करते हैं कि स्कूलों, शिक्षा निदेशालय व शिक्षा का एनजीओकरण बंद किया जाये और सरकार जनकोष सार्वजनिक संस्थाओं (SCERT, DIET, विश्वविद्यालय आदि) को मज़बूत करने में लगाए।
8.      उपरोक्त क्रम में यह देखने में आया है कि विभिन्न संस्थायें स्कूलों के विद्यार्थियों की निजी जानकारियाँ बेरोकटोक हासिल कर रही हैं। कहीं स्कूलों में ही तो कहीं स्कूलों के बाहर मगर उनपर दबाव डालकर या फुसलाकर विद्यार्थियों के फॉर्म भरवाए जाते हैं जिनमें उन्हें अनिवार्य रूप से अपने फोन नंबर, आधार नंबर के अलावा अन्य निजी जानकारियाँ देनी पड़ती हैं। अगर छात्राओं को निजी संस्थानों से फोन आते हैं तो सवाल यह है कि आखिर उनके पास छात्राओं से जुड़ी सारी जानकारी कैसे पहुँच जाती है। हम माँग करते हैं कि जबकि आज निजी डाटा का व्यापार होता है और यह मुद्दा सीधे उन बच्चों की निजता से जुड़ा है जिनका डाटा स्कूल व सरकार के पास सुरक्षित रहना चाहिए, अतः इस संदर्भ में स्कूलों में तमाम तरह की निजी संस्थाओं के प्रवेश और उन्हें विद्यार्थियों का डाटा उपलब्ध कराने पर पूर्णतः रोक लगनी चाहिए। आखिर सरकार व उसके स्कूल बच्चों के तमाम तरह के हक़ों के संरक्षक की भूमिका में हैं, न कि निजी संस्थाओं को उनका डाटा उपलब्ध कराने वाले बिचौलिए के रूप में। बल्कि इस विषय में तो बच्चों से लेकर अभिभावकों तक को उनके हक़ों के प्रति जागरूक करने की ज़रूरत है। 
9.      दिल्ली सरकार के स्कूलों में नए सत्र के अप्रैल-मई महीनों में कई विषयों में ‘प्रगति’ किताबें पढ़ाई गयीं| ये किताबें विषय का शिथिलीकरण करके शिक्षा को केवल लिखने-पने के आधारभूत कौशल तक सीमित कर देती हैं| हर कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे हो सकते हैं जिनके कक्षानुसार कौशल नहीं होंगे लेकिन उन्हें अतिरिक्त मदद देने के बजाय पूरी पाठ्यचर्या का स्तर नीचे करने के दूरगामी परिणाम घातक होंगे|
10. दिल्ली सरकार के स्कूलों में मंत्रीगणों अथवा शिक्षा अधिकारियों द्वारा निरीक्षण बढ़ गए हैं| ये निरीक्षण ‘सरकारी शिक्षकों के खिलाफ’ पूर्वाग्रहों पर आधारित नहीं होने चाहिए| साथ ही ये शिक्षा व स्कूलों के प्रति एक अकादमिक समझ पर आधारित होने चाहिएI हर कक्षा एक इकाई है जिसमें छात्रों-शिक्षक की स्वायत्तता का सम्मान होना चाहिए|
11. बारहवीं के बाद कुछ चयनित विद्यार्थियों की उच्च-शिक्षा की कोचिंग प्रायोजित कराने के कदम का हम विरोध करते हैं। इससे कोचिंग का बाजार व उसके केंद्र ही प्रतिष्ठित व समृद्ध होंगे। इसके बदले सरकार को अपने सभी स्कूलों में विज्ञान सहित सभी विषयों की पढ़ाई के पुख्ता इंतेज़ाम करने चाहिए| इसी तरह उच्च-शिक्षा के लिए सरकार द्वारा बारवीं पास छात्र-छात्राओं को ऋण उपलब्ध करवाने के निर्णय को भी हम भ्रामक मानते हुए इसका विरोध करते हैं। सरकार को अपने मेडिकल व इंजीनयरिंग संस्थानों की संख्या बढ़ाने, उनमें सीटें बढ़ाने व उच्च-शिक्षा को सर्वसुलभ करने की नीति अपनानी चाहिए। दुनिया-भर में ऋणग्रस्त छात्र अपनी सरकारों से यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्यों उनकी सरकारें सरकारी कॉलेजों में सबके लिए उच्च शिक्षा के अवसर नहीं प्रदान करवा पा रही हैं। क्यों उन्हें क़र्ज़ के चक्रव्यूह में धकेला जा रहा है? क्यों साधारण विद्यार्थियों को मुनाफाखोरों का आजीवन गुलाम बनाया जा रहा है? एक ओर ऋण आधारित शिक्षा की नीति शिक्षा के सार्वजनिक, साझे स्वरूप के लिए खतरनाक साबित होगी, दूसरी ओर NGO को स्कूलों में घुसाने की तरह सरकार द्वारा प्रायोजित ऋण व कोचिंग से भी जनता का पैसा लोक कल्याण के नाम पर निजी हाथों में जाता रहेगा। ये दोनों ही परिणाम हमारे लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित होंगे|
12. सरकारी स्कूलों के मैदानों को छुट्टी के दिनों में खेलों व अन्य गतिविधियों के लिए व्यावसायिक तर्ज पर इस्तेमाल करने देने की नीति का भी हम विरोध करते हैं। व्यावसायिक तरीके से स्कूलों के मैदान उपलब्ध कराने से स्कूलों के सार्वजनिक चरित्र पर चोट पहुँचेगी।
13. निदेशालय द्वारा हाल ही में जारी ‘चुनौती-2018’ नामक दस्तावेज़ का कार्यक्रम दार्शनिक व शिक्षाशास्त्रीय दृष्टि से अस्वीकार्य है क्योंकि यह प्रत्यक्षतः न केवल बच्चों को वर्गीकृत व चिन्हित करने पर आधारित है बल्कि शिक्षा व स्कूलों के वास्तविक व वृहत उद्देश्यों को विकृत भी करता हैI बच्चों को ‘कमज़ोर’ दर्ज करके उन्हें अपने साथियों से अलग करके अलग-अलग कक्षाओं में बैठाना उनकी पहचान को सीमित करने के समान है और बच्चों द्वारा एक-दूसरे से सीखने की स्वाभाविक प्रक्रिया को नकारता हैI इस कार्यक्रम को रद्द किया जाना चाहिएI  

हम उम्मीद करते हैं कि सरकार उपरोक्त आपत्तियों/विरोध के सन्दर्भ में इन फैसलों पर पुनर्विचार करेगीI

सधन्यवाद


सदस्य, संयोजक समिति       सदस्य, संयोजक समिति        
लोक शिक्षक मंच                      लोक शिक्षक मंच



प्रतिलिपि :
1.      मुख्यमंत्री, दिल्ली सरकार

2.      राजकीय विद्यालय शिक्षक संघ (GSTA)

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