Wednesday, 1 May 2019

पर्चा: लड़ने के सिवाय कोई चारा नहीं है !!!



क्या आपके बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला लेने में कोई मुश्किल आई या आ रही है? क्या स्कूल के लिए उसका आधार कार्ड बनवाने  या बैंक खाता खुलवाने के लिए आपको धक्के खाने पड़े या पड़ रहे हैं? क्या आपके बच्चे की पढ़ाई या वज़ीफ़ा इसलिए रुक गया क्योंकि उसके पास आधार या बैंक खाता  नहीं था? या नाम या तारीख के मामूली बेमेल होने से वज़ीफ़ा नहीं मिला?
                          
स्कूलों में दाखिले
आधार और बैंक खातों के बिना भी तो पढ़ाई हो सकती है, दाख़िले और वज़ीफे मिल सकते हैं| सरकारी स्कूल का फ़र्ज़ तो यह है कि वो बिना किसी शर्त और भेदभाव के पड़ोस के हर बच्चे को पढ़ाए| तो फिर क्यों कागज़ मांग-मांगकर हमारे बच्चों के दाखिलों और पढ़ाई में रोड़े अटकाए जा रहे हैं? हम ही जानते हैं कि इन कागजों को बनवाने में हमारा कितना पैसा लूटा जाता है और कितनी दिहाड़ी मारी जाती है| हमारा वक़्त भी बर्बाद होता है और दुत्कार अलग सुननी पड़ती है|  
अगर कोई स्कूल किसी भी वजह से बच्चे को दाखिला देने से मना करता है तो आप
·         2009 के शिक्षा अधिकार कानून का हवाला दें (6 से 14 साल के बच्चों के लिए)
·         फिर भी स्कूल दाखिला न दे तो कहें कि वो लिखकर दें कि वे बच्चे को दाखिला क्यों नहीं दे रहे 
·         अपने स्कूल की स्कूल मैनेजमेंट कमिटी से बात करें
·         एमएलए (विधायक) के ज़रिए सरकार पर दबाव डालें
·         विधान सभा मेट्रो स्टेशन के पास शिक्षा विभाग में डीडीई (स्कूल ब्रांच) से बात करें  
·         कश्मीरी गेट बस अड्डे की पांचवी मंजिल पर DCPCR में शिकायत करें (इसकी ज़िम्मेदारी है बच्चों के अधिकारों से जुड़ी शिकायतों पर कार्रवाई करना| फ़ोन नं : 011 2386 2685)

अपने इलाके में समितियां बनाकर हम शिक्षा विभाग और सरकार तक पर दबाव डाल सकते हैं|

सरकार की ज़िम्मेदारी है कि सभी बच्चों को बिना शर्त दाखिला मिले| चाहे हमारे बच्चों के पास जन्म प्रमाणपत्र, आधार कार्ड, बैंक खाता, दिल्ली के पते का सबूत हो या न हो| यह धमकी देना भी बंद करना होगा कि दाखिले की आख़िरी तारीख निकल गयी है| कानून के हिसाब से आठवीं क्लास तक के दाखिले साल-भर चलने चाहिए| (इस साल क्लास 9-12 के दाखिले 30 अगस्त 2019 तक चलेंगे|)
कई बार यह कहकर भी दाखिला देने से मना कर दिया जाता है कि सीटें भर गई हैं| यह तो सरकार का काम है कि वो नए स्कूल खोले, क्लास बनाये और टीचरों का इंतज़ाम करे| सरकार की नाकामी की सज़ा हमारे बच्चे क्यों भुगतें?
हमें बताया जाता है कि आधार और बैंक खातों के बिना बच्चे का नाम कंप्यूटर पर नहीं चढ़ पाता| फिर कंप्यूटर पर ऐसे प्रोग्राम ही क्यों डाले गए हैं? कभी स्कूल में बच्ची सामने खड़ी है पर कंप्यूटर नहीं मानता, कभी हम राशन की लाइन में खड़े हैं पर मशीन नहीं पहचानती| ये डिजिटल इंडिया तो हमारे जी का जंजाल हो गया है|
हमारे बच्चों के स्कूल की पढ़ाई बढ़िया ढंग से पूरी हो
हमारे कितने ही बच्चे नौवीं के बाद स्कूल छोड़ने पर मजबूर हैं| क्या सरकार की यही जिम्मेदारी है कि जो बच्चे परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला पाएं उन्हें ओपन (NIOS) या पत्राचार में भेज दे? वैसे भी हमारे बच्चे बड़ी मुसीबतें झेल कर पढ़ते हैंI जिन बच्चों को स्कूल की ज़्यादा ज़रूरत है, क्या स्कूल छुड़ाकर उनकी पढ़ाई सुधर जाएगी? ओपन की फीस भी ज़्यादा है और इसमें धक्के भी बहुत खाने पड़ते हैं| कई बच्चों, खासकर लड़कियों, की पढ़ाई भी छूट जाती है| अगर किसी तरह बच्चे बारहवीं पूरी कर भी लें तो उन्हें कॉलेज ओपन से करना पड़ता है जहाँ न क्लासें लगती हैं, न किताबें हैं और न टीचर|

स्कूलों के अंदर हमारे बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा है?
अब 9वीं क्लास से स्कूलों में हमारे बच्चों को सामान बेचना (रिटेल), गाड़ियाँ ठीक करना, ब्यूटी पार्लर जैसे काम सिखाए जा रहे हैं| क्या सरकार ने स्कूलों में पढ़ाना छोड़कर हमारे बच्चों को सिर्फ़ मज़दूर बनाने का फ़ैसला कर लिया है? इन कोर्सों को पढ़ने के बाद तो कॉलेजों में भी दाखिले नहीं मिलते|
हमारे बच्चे तो पहले से ही ये काम करने को मजबूर थे और आईटीआई वगैरह में भी ये कोर्स पढ़ते आए हैं| तो फिर सरकार क्यों स्कूलों में भी विज्ञान-इतिहास जैसे विषयों की पढ़ाई छोड़कर इन कोर्सों पर ज़ोर दे रही है? स्कूलों का काम तो बच्चों को समझदार बनाना और इंसाफ़ के लिए लड़ना सिखाना होना चाहिए था| उल्टे हमारे बच्चों को कम मजदूरी पर 10-12 घंटे काम करने के लिए तैयार किया जा रहा है| हमें ऐसी पढ़ाई नहीं चाहिए जो हमारे बच्चों को मालिकों के सामने हाथ-मुंह बांधकर खड़ा रहना सिखाए|  
सरकारी स्कूल तो पहले ही प्रतिभा और सर्वोदय जैसी ऊँच-नीच में बंटे हुए हैंI अब तीसरी क्लास से ही बच्चों को निष्ठा-प्रतिभा समूहों में बांटकर अलग-अलग पढ़ाया जा रहा है| उनकी किताबें और परीक्षाएं भी अलग-अलग होती हैं| यह भेदभाव हैI इससे तो कुछ बच्चों के मन में कमज़ोर होने का और कुछ में घमंड का एहसास पैदा होता है| ऐसे बांटने से उनकी दोस्तियाँ भी खराब होती हैं| अगर उन्हें आज से ही बाँट दिया जाएगा तो कल उनमें एकता नहीं बन पाएगी| और मालिक लोग तो चाहते भी यही हैं|
हमारा बरसों से सरकारी स्कूलों के साथ एक रिश्ता है और हम जानते हैं कि सरकारी स्कूल ही जनता के स्कूल हैं| हमारा भला सरकार के चंद पांच-सितारा स्कूलों या प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए मुट्ठीभर सीटों की मारामारी में नहीं है| हमें एकजुट होकर सरकारी स्कूलों में हर बच्चे के लिए बराबर शिक्षा की लड़ाई को मज़बूत करना होगा|  
तालीम बच्चों का हक है, दाखिला हम लेकर रहेंगे !
पढ़ाई में भेदभाव और हमारे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना बंद करो !

लोक शिक्षक मंच
9968716544, 9911612445                        
lokshikshakmanch@gmail.com        lokshikshakmanch.blogspot.com             अप्रैल,2019

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