Saturday, 4 September 2021

स्कूलों को खोलने के संदर्भ में विशेषकर प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों की ज़रूरतों के मद्देनज़र

 प्रति 

     शिक्षा मंत्री 
     दिल्ली सरकार 

विषय: स्कूलों को खोलने के संदर्भ में विशेषकर प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों की ज़रूरतों के मद्देनज़र 

महोदया /महोदय,
लोक शिक्षक मंच स्कूलों को एक प्रक्रिया के तहत खोलने के फ़ैसले के संदर्भ में अपने कुछ विचार व अपील साझा करना चाहता है। जैसा कि सभी जानते हैं कि मार्च 2020 से कोरोना महामारी के चलते दिल्ली के सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया था| तब से लेकर अब तक दिल्ली के सभी स्कूल, विशेषकर प्राथमिक शालाएं, बच्चों के लिए बंद रहे हैं| चूँकि यह बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से लिया गया निर्णय था इसलिए, ख़ासकर पर्याप्त ढाँचे के अभाव  संदर्भ में, यह ज़रूरी था| 
परन्तु यह भी ध्यान देने योग्य है कि हमारे स्कूलों में खासी संख्या में वो बच्चे आते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है और यदि है भी तो या तो एक फ़ोन से सभी भाई-बहनों की पढ़ाई संभव नहीं है या पर्याप्त डाटा खरीदने के लिए पैसे नहीं है क्योंकि अधिकांश अभिभावक बेरोजगारी की मुश्किल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं| इसके साथ ही, कुछ ऐसे माता-पिता भी हैं जो तालाबंदी के इस पूरे दौर में यह कहते रहे, "स्कूल से मिलने वाली प्रिंट वर्कशीट को न हम खुद पढ़ पाते हैं और न ही समझ पाते हैं तो अपने बच्चों को ये वर्कशीट कैसे कराएँ!? फ़ोन रिचार्ज नहीं होता इसलिए कक्षा अध्यपिका को फोन भी नहीं कर पाते| यदि फ़ोन कर भी पाते हैं तो फ़ोन पर बच्चे ठीक से समझ नहीं पाते हैं| इस पर स्कूल में बच्चों को लाने की मनाही है|" कुछ अभिभावकों का यह भी कहना था कि वे स्कूल में अपने बच्चों की कक्षा अध्यापिका से मिल भी नहीं पा रहे हैं क्योंकि वह कोविड ड्यूटी पर हैं| ऐसे में वे बच्चे जिनके पास किसी भी तरह की तकनीकी व गैर-तकनीकी सुविधा नहीं है, सीखने की प्रक्रिया से बिल्कुल कट चुके हैं| माता-पिता अक्सर कहते हैं – “हमारा बच्चा [बच्ची] कक्षा तीन या चार में आने के बाद भी न किताब पढ़ पा रहा है और पढ़ने के बाद भी न समझ पा रहा [रही] है। ऐसे में ये वर्कशीट और किताबी काम उसे कैसे करवाएँ? हम तो खुद पढ़े-लिखे नहीं हैं और ट्यूशन लगवाने के पैसे नहीं हैं।" इस तरह ये माता -पिता अपने बच्चे/बच्चियों की पढ़ाई और उनके भविष्य को लेकर खासे चिंतित हैं| 
इस बात से शायद ही कोई इंकार करे कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में बुनियादी रूप से शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच संवाद की गहन आवश्यकता होती है। संवाद की इस प्रक्रिया में शिक्षक द्वारा हर विद्यार्थी के पढ़ने-लिखने की ज़रूरतों से संबंधित बारीक अवलोकनों से ही किसी शिक्षक/शिक्षिका को यह पता चलता है कि किस विद्यार्थी को कहाँ और किस तरह के अतिरिक्त सहयोग की ज़रूरत है। यह प्रक्रिया एक तरह की निरंतरता की माँग करती है। चूँकि इस महामारी के दौर में अधिकांश शिक्षक कोविड ड्यूटी के चलते या अन्य आर्थिक व तकनीकी कारणों से अपने विद्यार्थियों के साथ संवाद की इस प्रक्रिया को सुचारू या सार्थक रूप से चला ही नहीं पा रहे हैं, इसलिए जीवंत संपर्क की यह अनुपस्थिति और भी अधिक चिंता का विषय बन जाती है। 
हाल में DDMA की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली सरकार ने कक्षा VI-XII के विद्यार्थियों के लिए स्कूल खोलने की योजना सार्वजनिक की है। प्राथमिक कक्षाओं को लेकर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है। हालाँकि दुनियाभर के अनुभवों और ख़ुद आईसीएमआर जैसी मेडिकल संस्था की राय से प्राथमिक कक्षाओं को खोलने को लेकर तुलनात्मक रूप से कम आशंकाएँ उत्पन्न होती हैं। 

इस संदर्भ में हमारी मांग है कि –
1. प्राथमिक कक्षाओं के लिए भी उन बच्चों को विद्यालय में बुलाकर छोटे समूहों में पढ़ाने की अनुमति दें जिनके घरों में ऑनलाइन कक्षा के साधन या सामाजिक पूंजी नहीं है। अभिभावकों की सहमति के साथ व सभी तरह के कोविड नियमों का पालन करते हुए, छोटे समूहों में प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों का भी स्कूल आना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा उनके साथ अन्याय जारी रहेगा। 
2. इन व्यक्तिगत या लघु समूह मीटिंग्स में कक्षा अध्यापिका उन्हें विभाग द्वारा भेजी गई वर्कशीट सम्बन्धी कार्य व विषय के सिद्धांत समझा सकती हैं। फ़िलहाल शिक्षा का अधिकार इन गरीब बच्चों के लिए मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है।
3. कोविड ड्यूटी पर लगाए गए सभी शिक्षकों को बिना विलम्ब वापस उनके स्कूल बुलाया जाए क्योंकि फ़िलहाल स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है जिसके चलते पढ़ाई का काम सार्थक व सुचारू तरीके से नहीं हो पा रहा है, अन्यथा स्कूल खोलने पर भी पढ़ाई नहीं हो पाएगी।

धन्यवाद 

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