2021-22 में छात्राओं के इस समूह ने कक्षा XI में प्रवेश किया। लॉकडाउन के दौरान इनकी कक्षा X की पढ़ाई न के बराबर हुई थी। कक्षा XI शुरु होने के कुछ महीनों बाद ही नियमित पढ़ाई शुरु हो पायी थी। टर्म II में छात्राओं ने इटली में मानवतावादी विचारों के उदय, ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत (अब यह अध्याय एनसीईआरटी ने 'रैशनलाइज़' कर दिया है) और उत्तर अमरीका में यूरोपीय साम्राज्यवाद के कारण मूल निवासियों के विस्थापन पर थोड़ा समय गुज़ारा था। और लगभग दो साल बाद इतना ही समय एक-दूसरे के साथ गुज़ारा।
अप्रैल 2022 से कक्षा XII की पढ़ाई शुरु हुई। लम्बे समय बाद नियमित रूप से किताब पढ़ने, कक्षा में सवाल-जवाब करने, प्रश्न-उत्तर लिखने का समय मिलने लगा। (यह तुलनात्मक है क्योंकि अब दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ाने का समय मुश्किल से ही मिल पाता है।) दोस्तियों को भी बनने का समय मिलने लगा।
उत्तर-पूर्व जिले की इस कक्षा में हिन्दू:मुस्लिम छात्राओं का अनुपात 70:30 है (सैक्शन ए में विद्यार्थियों का चयन उत्तम परिणाम और अंग्रेजी माध्यम के आधार पर होता है) जबकि पूरे स्कूल में छात्राओं का ये अनुपात लगभग 50:50 है।
इन दिनों पाठ 3 'बंधुत्व, जाति तथा वर्ग' का परिचय चल रहा था
हमारी कक्षा में गेस्ट के रूप में एक युवा महिला वकील आईं थीं। छात्राएँ उनसे अलग-अलग तरह के सवाल पूछ रही थीं। अचानक एक छात्रा ने पूछा, 'मैम ग़लत बात बोलने के लिए मौलवी क्यों गिरफ़्तार है जबकि नुपुर शर्मा भागी हुई है?'
इससे पहले कि वो जवाब दे पाती, बात आगे बढ़ चुकी थी। एक अन्य छात्रा ने जवाब दिया, 'नुपुर शर्मा ने वही बोला जो सच था।' चंद मिनटों में कक्षा में कुछ शब्द सुनाई दिए, 'ज़बान संभालकर बात करो', 'फोड़ देंगे-मार देंगे', 'मस्जिदों के नीचे शिवलिंग होगा तभी तो बोल रहे हैं', 'इनके मदरसों में यही होता है'। राज्य से पूछा गया सवाल, एक-दूसरे की तरफ़ मुड़ चुका था।
8 सालों में इस शिक्षिका के लिए लड़कियों की भाषा में ऐसा 'इनका-उनका', हिंसा और प्रत्यक्ष सांप्रदायिक कड़वाहट का यह पहला अनुभव था। लेकिन इस पल ने कक्षा को आगे के सत्र के लिए मुक्त भी कर दिया।
कभी-कभी शिक्षकों के पास न उदास होने का समय होता है और न निराश होने का हक़। जिस पेड़ पर मीठे फल लगें, वो पेड़ सींचना अभी बाकी था। उस कक्षा में सिर्फ़ एक सवाल पूछकर बात ख़त्म की गई - कक्षा में कितने विद्यार्थियों को लगता है कि ऐसे सवालों पर बात होनी चाहिए? ज़्यादातर विद्यार्थियों ने कहा, 'होनी चाहिए'। कितनी छात्राएं चाहती हैं 'हम इस विवाद की पड़ताल करें और जानें कि मौलवी ने क्या कहा और नुपुर शर्मा ने क्या कहा?' अब कुछ विद्यार्थियों ने चुप्पी रखी।
स्कूल का दिन ख़त्म होने से पहले पता लगा कि जिस छात्रा ने नुपुर शर्मा वाला सवाल शुरु किया था, उसे कुछ शिक्षिकाओं से विवादित टॉपिक उठाने के लिए डाँट पड़ चुकी थी। एक शिक्षिका ने यह कहकर चिंता जता दी थी कि 'यह इनका (मुस्लिम बहुल) इलाका है, कहीं कोई बात न हो जाए।'
क्लास और शिक्षिका बेचैन थे। कुछ और न सूझने पर शिक्षिका ने अंतिम पीरियड में छात्राओं से अपने अनुभव लिखने को कहा। सवाल थे, 'आज हमारी कक्षा में क्या हुआ? आपको क्या सही लगा और क्या सही नहीं लगा?' 26 में से 18 छातत्राओं ने यह लिखा कि उन्हें कक्षा में एक-दूसरे के धर्म पर कही गई बातें अच्छी नहीं लगीं। उनके शब्दों में, "एक दूसरे के धर्म को ग़लत समझा, किसी की कम्युनिटी के बारे में नहीं बोलना चाहिए, लड़ाई की बात नहीं करनी चाहिए, लड़ाई न करके बात ख़त्म करो"; एक छात्रा ने लिखा, "मौलवी ने ग़लत बोला नाकि नुपुर शर्मा ने"। चार छात्राओं ने लिखा कि वो इस मुद्दे पर बात करना नहीं चाहेंगी (हालांकि अगले कुछ दिन चर्चा हुई)। एक छात्रा ने घटना का कोई ज़िक्र नहीं किया और गेस्ट के आने की ख़ुशी जताई।
पर इन 18 छात्राओं के विचार उन शब्दों का शोर कम नहीं कर पा रहे थे जो क्लास में बोले जा चुके थे। अगला दिन गुज़र गया। कक्षा का माहौल सामान्य लगा। शिक्षिका चाहती थी कि विद्यार्थी इतिहास बोध, वस्तुपरकता और सौहार्द को जाँचे और सीखें। लेकिन कैसे?
दो दिन बाद, कक्षा में बात शुरु हुई।
पहले सवाल पर लौटते हुए शिक्षिका ने पूछा - छात्रा का सवाल 'नुपुर शर्मा को क्यों गिरफ़्तार नहीं किया?' किससे था? हमने पहचाना कि वो राज्य से था। फिर हमने उसे हिन्दू मुस्लिम के बीच का सवाल क्यों बनाया? हमने बात की कि जब छात्र शिक्षक से और नागरिक राज्य से सवाल पूछते हैं तो वो उन सवालों से कैसे अलग होते हैं जो छात्र या नागरिक एक-दूसरे से पूछते हैं।
इसके बाद इस दिन हम अपनी पाठ्यचर्या पर वापस लौट आए।
तीसरे दिन हमने 'मौलवी और नुपुर शर्मा' के उपलब्ध बयानों पर बात की।
कक्षा में पहला सवाल था, 'मान लें कि हमारी कक्षा ही समाज है। इन पाँच बच्चों को लगता है 'यहाँ पहले मंदिर था' और दूसरे पाँच बच्चों का कहना है 'यहाँ मंदिर नहीं था और मस्जिद है'; तो आप इस विवाद को कैसे सुलझाएंगे?' चर्चा लम्बी गई। सब साथ में स्रोत सोच रहे थे।
कक्षा में दूसरा सवाल था, 'क्या शिवलिंग की पूजा करने के लिए किसी पर तंज़ कसा जा सकता है?' हमने पिछले डेढ़ साल में पढ़े शिकारी, मेसोपोटामियाई, रोमन, अरब बेदुई, वैदिक, पौराणिक आदि समाजों के देवी-देवताओं को याद किया और इस कड़ी में शिवलिंग और कामाख्या मंदिर में योनी की पूजा के तथ्य को स्थापित किया। कई बार भारतीय संस्कृति की विविधता के उदाहरण गृह-विज्ञान की कक्षा से चलकर इतिहास की कक्षा में क्लाइमैक्स पलट देने वाली एंट्री लेते थे।
कक्षा में तीसरा सवाल था, 'क्या 1400 साल पहले कम उम्र की लड़कियों के विवाह बड़ी उम्र के पुरुषों से होते थे? अगर हाँ, तो ये उस समाज के बारे में क्या बताता है? क्या हम अन्य समाजों में भी ज़्यादा उम्र के अंतर वाले, बहुपत्नी राजनीतिक विवाह जानते हैं? क्या आज यह सोच सिर्फ़ भारत में बदली है या लगभग सब जगह बदल रही है?'
जब यह सवाल आया कि आज के नज़रिए से अतीत को जज करने के क्या फायदे और नुकसान होते हैं, तो हम अपने अध्याय के और नज़दीक जा सके जिसमें हम 'विवाह के ब्राह्मणीय व गैर-ब्राह्मणीय नियम ' पढ़ रहे थे।
आज की कक्षा का अंत इस टिप्पणी से हुआ कि अगर हम, बच्चे, इन जटिल सवालों पर आराम से बात कर सकते हैं तो वयस्क इतना ग़ुस्सा और हिंसा क्यों कर रहे हैं।
अगले 2-3 दिन पाठ्यचर्या जारी रही। इसलिए भी क्योंकि आगे का रास्ता नहीं समझ आ रहा था। दिमाग़ में 'इनके-उनके' घूम रहे थे पर कहीं से तो शुरु करना था।
लगभग एक हफ़्ते बाद कक्षा में तीन कहानियाँ कही गईं। पहली जर्मनी के नाज़ीवाद की, दूसरी दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेद की और तीसरी श्री लंका के सिंहली वर्चस्व की। बोर्ड पर तीनों कहानियों के लिए दो सूचियाँ बनाई गईं - 1.किन साक्ष्यों के आधार पर इन राज्यों पर यह इल्ज़ाम है कि इन्होंने अपनी जनता के बीच भेदभाव किया? और 2. राज्य ने ऐसा क्या तर्क दिया कि देश की बहुसंख्या ने यह भेदभाव होने दिया?
1933-38 के बीच पास हुए कानूनों की वो सूची पढ़ी गई जो एक-एक करके यहूदियों के घर, सम्पत्ति, पेशे, स्कूल, अस्पताल, सार्वजनिक स्थल का अधिकार और अंततः जीने का अधिकार छीन रहे थे। अब नाटक करते हुए शिक्षिका ने कहा, 'शायद आपको यह सुनकर अच्छा न लगे, लेकिन क्या आप जानते हैं, जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध में यहूदियों की वजह से हारा, ये देशद्रोही, ये लालची हैं, हमसे घुलते-मिलते नहीं, हमारी पवित्र नस्ल को गन्दा कर रहे हैं। ये गद्दार है और इसलिए हम इन्हें जर्मनी का नहीं मानते।'' छात्राएँ टेंशन में लगीं। सवाल था कि क्या कोई नस्ल गद्दार या लालची हो सकती है? क्या कुल 0.75% यहूदी जर्मनी की सभी समस्याओं का कारण हो सकते थे?
अब हमने दूसरी कहानी पढ़ी।
1940-50s में श्रीलंकन राज्य द्वारा बनाए गए ऐसे कानूनों की सूची पढ़ी जिनसे तमिलियन लोगों की नागरिकता छिन गई और सिंहली भाषा और बौद्ध धर्म को प्राथमिकता दी गई। नाटक करते हुए शिक्षिका ने कहा, 'शायद आपको यह सुनकर अच्छा न लगे लेकिन हमारी मजबूरी समझिए। श्रीलंका सिन्हलियों का देश है। तमिलियन भारत से आए थे। उनके पास भारत है। सिंहली बौद्धों के पास श्रीलंका के अलावा और कोई देश नहीं है। आप बताइए क्या हम ग़लत हैं?' छात्राएँ चुप थीं। सवाल कई थे; चूंकि तमिलियन श्रीलंका के मूल निवासी नहीं हैं तो क्या श्रीलंका सिर्फ़ सिन्हलियों का देश माना जाए तमिलियन का नहीं? या क्या श्रीलंका सिन्हलियों का ज़्यादा है और तमिलियन का कम? किसी को उस देश का कहलाने के लिए कितना पुराना होना चाहिए? क्या कक्षा XI में दाखिला लेने वाली छात्रा का इस कक्षा पर उतना ही अधिकार है जितना कि कक्षा VI में दाखिला लेने वाली छात्रा का या कम? अगर आज श्रीलंकाई तमिल भारत आ जाएँ तो क्या यहाँ उनके लिए ज़मीन और नौकरियाँ इंतज़ार कर रही हैं या उन्हें यहाँ शरणार्थी बनकर रहना होगा?
इस सवाल का अभाव अब खल रहा है, फिर तो किसी इंसान को मज़दूरी करने के लिए किसी अन्य राज्य और देश में जाना ही नहीं चाहिए क्योंकि उसे कभी वहाँ का माना ही नहीं जाएगा। फिर भी लोग क्यों जाते हैं या तमिलियन क्यों गए थे? या उन्हें जाना पड़ता है।
अब तीसरी कहानी पढ़ी गई।
हमने 1950s में दक्षिण अफ्रीका राज्य द्वारा बनाए गए ऐसे कानूनों की सूची पढ़ी जिनके बाद गोरे और अश्वेत दक्षिण अफ्रीकियों के अलग जनसंख्या रजिस्टर बनाए गए। उनके वाहन, स्कूल, नौकरियाँ, मोहल्ले, वोट अलग कर दिए गए। आपसी दोस्तियाँ ख़त्म और शादियाँ गैर-कानूनी कर दी गईं। नाटक करते हुए शिक्षिका ने कहा, 'शायद आपको यह सुनकर अच्छा न लगे, लेकिन यही ईश्वर की मर्ज़ी थी। ईश्वर भी अपने रेवड़ को अलग-अलग रखता है। ईश्वर ने हमारी नस्ल को यह ज़मीन चुन कर दी है और हमें यह ज़िम्मेदारी दी है कि हम पिछड़ गई पीढ़ियों को अंधकार से निकाल सकें। इसी में सबका भला था।' छात्राएँ मौन असहमति व्यक्त कर रही थीं। सवाल था कि क्या मनुष्य प्रजाति में कोई नस्ल बेहतर और कोई कमतर, कोई साफ और कोई गंदी हो सकती है। फिर राज्य ने ऐसे कानून क्यों बनाए?
कक्षा का अंत इस बात से हुआ, 'ये तीनों कहानियाँ बताती हैं कि जब हर देश में एक से ज़्यादा समुदाय होते ही हैं तो ये झगड़े कितने सच्चे हैं?
एक दौर ऐसा आ सकता है जब कि दो प्रमुख समुदायों को एक-दूसरे का दुश्मन बनाकर प्रस्तुत किया जाए। नफ़रत और डर के तर्क भी दे दिए जाएँगे। हम कहाँ खड़े होना चाहेंगे?'
अगले कुछ दिन कुछ और सवाल भी आए:
अगर पूरी दुनिया को 7-8 टुकड़ों में बाँट दें और अलग-अलग देश बना दें और एक देश में एक ही धर्म के लोग रहने लगें तो क्या झगड़े ख़त्म हो जाएँगे? (तुरंत जवाब आया, फिर वो किसी और चीज़ पर लड़ेंगे।)
अगर सारे इंसान अफ्रीका से निकले तो सबका एक ही धर्म, एक ही भाषा क्यों नहीं हुई?
अगर सबसे पुराने मानव कंकाल अफ्रीका में मिले हैं, तो क्या आज अफ्रीका के लोगों को इस बात का घमंड होना चाहिए कि वो इंसानी नस्ल के जनक हैं?
हम हिन्दू मुस्लमान पैदा होते हैं या बनते हैं?
हम अपने व्हाट्सऐप्प ग्रुप खुद चुनते हैं या हम इनमें चुन लिए जाते हैं?
हमने अध्याय 4 (विचारक, विश्वास और इमारतें) के अंत में प्रश्न किए।
क्या वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज की परम्परा थी? या वर्ण व्यवस्था पर सवाल उठाना भारतीय समाज की परम्परा थी? या ये दोनों?
क्या वैदिक/बौद्ध/जैन/हिन्दू/भौतिकवादी/ईसाई/इस्लाम/सिख आदि मत भारतीय समाज की परम्परा है? या इनके बीच का समन्वय भारतीय समाज की परम्परा हैं? या इनके बीच का संघर्ष भारत की परम्परा है? या ये सभी हमारी परम्परा हैं?
आज पाठ 8 'किसान, जमींदार और राज्य' (मुग़ल काल) शुरु हुआ था
पाठ शुरु होने से पहले सवाल आ चुके थे, 'क्या मुग़ल भारतीय थे? क्या मुग़लों ने भारत को लूटा? क्या बाबरी मस्जिद राम मंदिर तोड़कर बनी थी?'
पहले सवाल के जवाब में विद्यार्थियों को उनके द्वारा पढ़े गए पाँच राज्यों के बीच तुलना करनी थीं; कुषाण राज्य, मौर्य राज्य, मोहम्मद ग़ौरी का राज्य, मुग़ल राज्य, ब्रिटिश राज्य। उन्हें बताना था कि वो किन राज्यों को देसी-विदेसी कहेंगे और क्यों और किन्हें भारतीय-औपनिवेशिक कहेंगे। हम पहचान रहे थे कि मुग़ल साम्राज्य ब्रिटिश साम्राज्य की तरह औपनिवेशिक नहीं था जो यहाँ से मुनाफ़ा कमाकर/लूटकर कहीं और भेजता था। अगला सवाल स्वाभाविक था, 'फिर मुग़लों को विदेशी क्यों कहा जाता है?'
बाबरी मस्जिद वाले सवाल के लिए दोस्तों ने स्रोत और हिम्मत दोनों ढुन्ढवाए। चर्चा की शुरुआत सवाल से हुई, 'अगर आप पुरातत्ववेत्ता होतीं तो कैसे ढूंढती कि क्या 500 साल पहले बाबरी मस्जिद राम मंदिर तोड़कर बनी थी? 500 साल पहले का घटनाक्रम कैसे पता करतीं?'
हाल में पढ़े विजयनगर साम्राज्य के पाठ ने मदद की। विजयनगर की खोज में इस्तेमाल हुए स्रोतों से सीखते हुए हमने सूची बनाई। क्या उस काल के राजकीय या क्षेत्रीय या यात्रियों द्वारा लिखे ग्रन्थ ऐसी किसी घटना का ज़िक्र करते हैं, क्या संबंधित अभिलेख मिले हैं? हमने तय किया कि इंटरनेट पर ढूंढने की कोशिश करेंगे कि किस तरह के स्रोत प्राप्त हुए हैं।
1-2 दिन बाद अपनी सीमाओं को पहचानते हुए हमने कक्षा में एएसआई की 2003 की रिपोर्ट को इस्तेमाल करने का फैसला किया और 574 पन्नों की रिपोर्ट के कुछ अंश पढ़े। शिक्षिका ने रिपोर्ट की अपनी रीडिंग से छात्राओं को बताया कि यह रिपोर्ट लिखती है, 'सोलहवीं शताब्दी की मस्जिद के आधार में बारहवीं शताब्दी के ढांचे, दीवार, स्तम्भ आधार, ईंटें, आदि मिले हैं।' इसके आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 'बाबरी मस्जिद की ज़मीन के नीचे गैर-इस्लामिक ढांचे के अवशेष मिले हैं'। (जैसे कोई मंदिर या बौद्ध स्थल?) एएसआई रिपोर्ट पर विभिन्न मत पर बात नहीं हुई।
अब सवाल यह उठता है कि 500 साल मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी या मंदिर पहले से टूटा हुआ था और उस स्थल पर मस्जिद बनाई गई।
सवाल को पुन: पूछा गया, 'अगर हमारी स्कूल की इमारत के नीचे अन्य पुरानी इमारत के सबूत मिलें तो क्या इससे यह भी साबित हो जाता है कि यह स्कूल उस इमारत को तोड़कर बनाया गया होगा या ऐसा भी हो सकता है कि जब यह स्कूल बना होगा तब पिछली इमारत पहले से टूटी हुई थी? हमने सर्वोच्च न्यायालय की इस बात को रेखांकित किया, 'एएसआई रिपोर्ट यह साबित नहीं करती कि पुरानी इमारत कैसे टूटी। उसके टूटने और मस्जिद के बनने के बीच 400 सालों के फ़र्क़ के बारे में भी हम नहीं जानते।'
यह सवाल नहीं आया, 'अगर एएसआई और सर्वोच्च न्यायालय को बाबर द्वारा मंदिर तोड़ने के सबूत नहीं मिले हैं तो फिर लोग किन सबूतों के आधार पर कहते हैं कि बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई?'
जो सवाल झाँक रहा था पर बाहर ही खड़ा रह गया वो था, 'अगर 500 साल पहले मंदिर तोड़ना ग़लत था तो 30 साल पहले मस्जिद तोड़ना क्या था?'
भले ही इतिहास को लेकर बच्चे कड़क को जाएँ लेकिन भविष्य को लेकर बहुत स्पष्ट होते हैं। भविष्य को लेकर इतनी बुलंद आवाज़ में बोले कि उन्हें ऐसे झगड़े नहीं चाहिए कि अन्य स्वर सुनाई नहीं पड़ा। शायद रहा हो।
इन दिनों '1857 का विद्रोह' अध्याय चल रहा था
एक छात्रा ने पाँच महीनों में पहली बार सवाल पूछा, 'मैम, आजकल वो जो केस चल रहा है, उसके बारे में लोग कह रहे हैं, मुस्लिम लड़के ने किया..लड़की को मारने वाला.. क्या ऐसा दूसरे देशों में भी होता है?'
उसके शब्दों में थोड़ी अस्पष्टता थी लेकिन भाव में नहीं। शायद वो यह जानना चाहती थी कि लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं कि सिर्फ़ मुस्लिम ऐसा करते हैं। क्या और लोग ऐसी हिंसा नहीं करते? शिक्षिका ने कक्षा से पूछा कि वे इस केस के बारे में क्या जानते हैं और क्या जानना चाहेंगे। घटनाक्रम जानने के बाद सवाल-जवाब शुरु हुए। दो सवाल रखे गए:
i. इस हिंसक घटना के होने के पीछे क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
ii. क्या यह ऐसी एकलौती घटना है?
पहले सवाल के जवाब में कक्षा ने मिलकर बोर्ड पर संभव कारणों को लिखा: यह घटना इसलिए हुई क्योंकि यह एक हिन्दू-मुस्लिम जोड़ी थी? या इसलिए क्योंकि लड़की हिन्दू और लड़का मुस्लिम था? या इसलिए क्योंकि हमारे समाज में अक्सर लड़के ग़ुस्से में लड़की को थप्पड़ से लेकर जान तक से मार देते हैं? या इसलिए क्योंकि लिव इन सम्बन्ध में होने के कारण लड़की अकेली और कमज़ोर थी? या कोई और कारण?
दूसरे सवाल के जवाब में एक छात्रा ने एक वीडियो का ज़िक्र किया जिसमें एक व्यक्ति ने 'लव जिहाद' के अनेक उदाहरण बताए थे और समझाया था कि मुस्लिम लड़के हिन्दू लड़कियों को फँसाते हैं। कुछ उदाहरण बॉलीवुड से थे। इसके बाद एक अन्य छात्रा ने कक्षा में पहली बार भाग लेते हुए बताया कि 'राशिद अली' नामक व्यक्ति का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उसने कहा है कि 'हमें बचपन से मारना सिखाया जाता है और आदमी 35 तो क्या 36 टुकड़े भी कर सकता है।' यह सुनकर कक्षा में उसकी बात के लिए घृणा उभरी। (हैरानी भी उभरी जब 2-3 दिन बाद हमें पता लगा कि वो व्यक्ति मुसलमान नहीं था बल्कि उसने नफ़रत फैलाने के लिए झूठी पहचान बनाकर वो वीडियो बनाया था।)
कक्षा का समय पूरा होने वाला था। आज की चर्चा का अंत इस सवाल से हुआ कि 'ऐसी हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए क्या करना चाहिए?' हमने बोर्ड पर लिखे कारणों के सामने उनसे उपजे उपाय लिखे। एक, हिन्दू और मुसलमान लड़के-लड़कियों को प्रेम सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। दो, हिन्दू लड़की को मुसलमान लड़के से शादी नहीं करनी चाहिए। तीन, लड़कों को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वे किसी भी हालत में किसी भी लड़की पर हाथ नहीं उठा सकते, चाहे वो उनकी बहन हो या गर्लफ्रेंड या पत्नी या कोई अन्य। चार, लड़कियों को कभी लिव इन संबंधों में नहीं जाना चाहिए। पाँच, लिव इन संबंधों को समाज और कानून की सुरक्षा मिलनी चाहिए। अधिकतम मत तीसरे उपाय के साथ थे।
अगले दिन के लिए हमने तय किया कि गूगल पर जाकर चेक करेंगे कि क्या बॉलीवुड में हिन्दू-मुस्लिम शादियों के ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें लड़की मुस्लिम और लड़का हिन्दू हो। इस दिन दो बिंदु चर्चा में आए, क्या फ़र्क़ है जब सैफ अली खान ने करीना कपूर से शादी की और उसकी बहन सोहा अली खान ने कुनाल कपूर से शादी की? दूसरा, अलग धर्मों और अलग जातियों के लोगों के बीच प्रेम और शादी करना सही है या ग़लत? कुछ दिनों बाद हम अपने उस सवाल पर वापस लौटे - क्या ऐसे और भी केस होते हैं? इंडियन एक्सप्रेस की कतरनों से हमने छ: और केस पढ़े (चेन्नई, दिल्ली, मुंबई, गज़ियाबाद, जयपुर)। कुछ नए सवाल उभरे - जैसे, समाज में इतनी हिंसा क्यों है और इन घटनाओं को मीडिया ने उतना क्यों नहीं उठाया जितना श्रद्धा-आफ़ताब केस को?
आज 'महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन' शुरु हुआ
कुछ छात्राएँ एक साल से सवाल पूछ रही थीं, 'जब आज़ादी की लड़ाई में अनेक लोगों का हाथ था तो सिर्फ़ गाँधी को ही सबसे ज़्यादा याद क्यों किया जाता है? उन्हें ही राष्ट्रपिता क्यों कहते हैं? उनकी फोटो नोट पर क्यों छापी जाती है?'
इसमें कुछ और सवाल भी जुड़ गए। गाँधी जी अच्छे थे या बुरे? अगर गाँधी जी इतने लोकप्रिय थे, तो प्रधान मंत्री क्यों नहीं बने? गाँधी जी खुद अंग्रेज़ों की शिक्षा लेकर आए थे तो उनकी सोच और व्यवहार कैसा था? गाँधी जी का 'main motive' (मुख्य मक़सद) क्या था? कहते हैं गाँधी जी बात-बात पर जेल चले जाते थे और उनके साथ जेल में अच्छा व्यवहार होता था। क्या यह सच है? भगत सिंह को फांसी क्यों हुई और आज लोग उन्हें क्यों याद करते हैं? गाँधी जी ने भगत सिंह की फांसी क्यों नहीं रोकी? गाँधी दुश्मनों से प्यार करने की बात क्यों करते थे?
कुछ सवाल अलग किस्म के थे: गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका क्यों गए? दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने गोरे-काले भेद को ख़त्म करने के लिए क्या किया? सत्याग्रह क्या होता है? आज़ादी की लड़ाई कैसे हुई? दाण्डी मार्च क्यों हुआ? चौरी चौरा क्या था? लोग गाँधी को इतना क्यों मानने लगे थे? और कौन से स्वतंत्रता सेनानी थे? आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं की क्या भूमिका थी? जब अंग्रेज़ भारत आए तो भारत के लोगों ने क्या किया? अंग्रेज़ों ने भारत में जो किया, क्या वो सब सही था या ग़लत?
पिछले सालों के मुकाबले गाँधी की मंशा और योगदान पर सवाल उठाते प्रश्न ज़्यादा भी थे और नए भी। पाठ 13 (महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन) विद्यार्थियों के सामने गाँधी के भाषण और लेख-पत्र रखकर उनकी प्राथमिकताओं की झलक देता है। पाठ यह समझा पाता है कि गाँधी का योगदान यह था कि उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ चल रही लड़ाई से ज़ ज़मींदार, किसान, मालिक, मज़दूर, 'हरिजनों', महिलाओं को जोड़ा। उसे राष्ट्रीय बनाया। और इतना कहकर रुक जाता है।
आज़ादी की लड़ाई के बारे में विद्यार्थियों की जिज्ञासा अक्सर इतने से संतुष्ट नहीं होती। उन्हें अन्य बहुत से लोगों, घटनाओं और प्रक्रियाओं के बारे में जानना होता है।
अध्याय का अंत विभाजन के दिनों में गाँधी जी की यात्राओं और उनकी हिन्दू-मुस्लिम शांति और सौहार्द की अपील से होता है। और यहाँ से शुरु होता है अगला सफर: विभाजन को समझना। 'क्या बंटवारा गाँधी जी ने करवाया था? गोडसे ने गाँधी को गोली क्यों मारी? गोडसे ने गोली मारने के बाद हाथ क्यों जोड़े?'
ब्रिटिश भारत का बंटवारा क्यों हुआ? बहुत से विद्यार्थी यह सवाल सालों तक संभाले रखते हैं और इस सवाल का जवाब खोज पाना उनका हक़ है। फिर भी पहले दो साल सीबीएसई ने यह अध्याय कटवा दिया और अब एनसीईआरटी ने भी यह अध्याय हटा दिया। इसमें विभाजन के एक नहीं, अनेक कारणों को उजागर किया गया है। क्या विडंबना है! एक तरफ़ युवाओं को दिन-रात विभाजन सिखाया जा रहा है और दूसरी तरफ़ उन्हें विभाजन पढ़ने नहीं दिया जा रहा। शायद इसलिए ही वो खुद अपने कोर्स का निर्धारण कर रहे हैं।
एक दिन
हमने तय किया कि अब हम कुछ दिन वो खबरें क्लास में लाएँगे जो धर्म से इतर होंगी, जैसे लोगों के काम धंधों की, शिक्षा, इलाज की। शायद उन्हें घर में टीवी न्यूज़ चैनल पर ऐसी खबरें कम मिल पाईं।
फिर आई बीबीसी फ़िल्म और रामचरितमानस विवाद की ख़बर। बात हुई ..
शिक्षिका ने दो बड़े गोले बोर्ड पर बनाए। दोनों गोलों का एक हिस्सा ओवरलैप कर रहा था। एक हिस्से में लिखा - हिन्दू, एक में लिखा मुसलमान। दोनों गोलों के अंदर एक-एक छोटा गोला बनाया। उनके अंदर लिखा कट्टर हिन्दू, कट्टर मुस्लमान। बड़े गोले के बारे में शिक्षिका ने कहा, 'सभी धर्मों में ज़्यादातर लोग अपनी मान्यताओं को ज़रूरी मानते हैं। साथ में यह भी मानते हैं कि जैसे हमारी मान्यता, वैसे दूसरे की मान्यता, इसलिए उन्हें दूसरे के धर्म और मान्यताओं से कोई समस्या नहीं होती। ओवरलैपिंग हिस्से के बारे में कहा कि ये वो लोग होते हैं जो धार्मिक पहचान को निर्धारक नहीं मानते। इनके अनुसार हिन्दू-मुसलमान में मौलिक फ़र्क़ नहीं है। दोनों आस्तिक समुदायों के लोग एक जैसे ही होते हैं।
लेकिन हर समुदाय में एक हिस्सा ऐसा होता है (छोटा गोला) जो धार्मिक पहचान को इतना एक्सक्लुसिव/विशिष्ट मानता है कि इनके अनुसार यही पहचान सब कुछ है इसलिए अलग धर्म के लोग अलग ही होते हैं। वे दूसरे समुदाय को अपना प्रतिद्वन्द्वी या दुश्मन मानते हैं। इसलिए दुनिया में कुछ राष्ट्र धर्म के आधार पर बने भी।
हम कहाँ हैं और हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं, यह हमें तय करना होगा। हमें जाँचना होगा कि क्या धार्मिक पहचान हमारी सबसे मौलिक पहचान है जो हमें दूसरों से अलग करती है या अलग-अलग धर्मों, देशों के लोगों की एक-जैसी ज़रूरतें हैं, एक जैसी समस्याएँ हैं और एक जैसे सपने हैं।
(वास्तव में चर्चाएँ इससे बहुत कम स्पष्ट और व्यवस्थित हो पाती थीं)
जो बातें नहीं हो पाईं, उनमें से कुछ:
समय :
ऐसा क्यों था कि जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ़ नफ़रत और हिंसा 1920-40s के बीच बढ़ी?
ऐसा क्यों है कि आज भारत के मीडिया चैनल हिन्दू मुस्लिम विवाद ज़्यादा दिखाते हैं?
कार्यवाही:
अगर कोई हमारे सामने दूसरे के धर्म-जाति-क्षेत्र-लिंग के खिलाफ़ बात करे, तो हमें क्या करना चाहिए?
धर्म और राजनीति को अलग करने के लिए हमें क्या करना होगा?
नज़रिए :
एक साथ फ़िल्म देखना, एक रुका हुआ फैसला
पत्र :
कोई प्रेम से भरा पत्र पढ़ पाना
1 comment:
यह अनुभव साझा करना ही बहुत महत्वपूर्ण रहा. छात्रा को समझाने का तरीका क़ाबिले तारीफ है. और भी अध्यापकों को छात्रों के साथ के अपने अनुभव साझा करना चाहिए जिससे समाज के अंदर हो रहे बदलाव को समझा जा सके.
सुनील कुमार
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