राजेश आज़ाद
प्राथमिक शिक्षक
रामफल शर्मा जी आज कुछ जल्दी ही स्कूल पहुँच गए हैं। कल उनकी फैक्टरी पर कुछ मजदूरों ने बवाल कर दिया था। उसी को सुलटाने के चक्कर में वो स्कूल से जल्दी ही निकल गए थे। आज जल्दी आकर पूरे हक़ से हाजरी पूरी की और सीधे प्रार्थना सभा में चले गए।
शर्मा मास्टर जी अपनी कक्षा में बैठे ऊँघ रहे हैं। कल पूरी रात उन्होंने समाचार चैनल पर समाचार देखते हुए बितायी है। कल याक़ूब मेमन की फाँसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट में पूरी रात सुनवाई चली है और जब तक उसको फाँसी न दिला दी तब तक उन्हें नींद न आ पायी। बच्चे क्लास में उछल-कूद मचा रहे हैं और बार-बार कभी पानी पीने के लिए तो कभी शौचालय जाने के लिए पूछने के लिए मास्टर जी को झकझोर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि मास्टर जी आज ही इतने सुस्त हैं। वो अक्सर ही कक्षा में ऊँघते हुए पाए जाते हैं। यदि कोई साथी टोक दे तो गर्व मिश्रित अंगड़ाई लेते हुए बोलते हैं, “अपनी फैक्टरी अब काफी अच्छी चल रही है। स्कूल तो मैं आप लोगों से मिलने आ जाता हूँ। आप लोग तो जानते ही हैं कि मेरे पास कितना काम है।"
मास्टर जी का शिक्षण कौशल भी साथी शिक्षकों के बीच मज़ाक का विषय बना रहता है। उनकी कक्षा के बच्चों को नाम लिखना आए या नहीं पर सबको ये बात रटी हुई है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। मास्टर जी कक्षा में पहुँचते ही गाइड खोलकर उसमें से पूरा बोर्ड भर देते हैं और अपनी फ़ैक्टरी का हिसाब-किताब लेकर बैठ जाते हैं। अब यह बच्चों पर है कि वे बोर्ड पर से कितना ग्रहण कर पाते हैं।
हाँ, एक काम में मास्टर जी का कोई तोड़ नहीं है - किसी भी विषय पर चर्चा के समय वो पूरे स्टाफ के लिए चाय-समोसे का प्रबंध अपने खर्चे पर करवाते हैं। आज भी मास्टर जी ने गोपाल को बुलाने के लिए बच्चे को भेजा, और उसको 500 रुपए का नोट थमाते हुए चाय-समोसे का इंतजाम करने का फरमान सुनाते हुए बोले, “गोपाल, आज कुछ मिठाई का भी इंतजाम करना।" हालाँकि गोपाल कभी भी मास्टर जी से कुछ पूछता नहीं है,पर आज हिम्मत करके उसने पूछ ही लिया, “सर, कोई खुशखबरी है क्या?” मास्टर जी रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ बोले, “जा लेकर तो आ फिर बताऊँगा।”
मास्टर जी बेचैनी से आधी छुट्टी का इंतज़ार कर रहे हैं क्योंकि आज उनके पास बोलने का काफी मसाला है। हालाँकि पहले वो आधी छुट्टी का इंतज़ार भी नहीं करते थे मगर पिछले दिनों स्कूल में कुछ बदतमीज़ युवा शिक्षकों ने जॉइन किया है जो उन्हें टोक देते हैं। अब इस उम्र में किसी को क्या मुँह लगाना! उन्होने पूरी रात समाचार चैनल पर याक़ूब से जुड़ी हर खबर को अच्छी तरह से देखते हुए बितायी है और उन्हें लगता है कि आज वो युवा शिक्षकों के उस उस समूह को पटखनी देंगे जो हर बात पर उनका विरोध करते हैं। अरे, समूह क्या है, एक-दो नए लौंडे है, बिलकुल संस्कारहीन,न वरिष्ठों की शर्म, न उम्र का लिहाज।
मास्टर जी जिस भी दिन स्कूल समय से पहुँचते हैं, प्रार्थना सभा में जरूर उपस्थित रहते हैं। प्रार्थना में उनकी नज़र हरेक बच्चे पर होती है। सुबह यदि किसी बच्चे ने गायत्री मंत्र आँखें खोल कर बोल दिया तो वो गुस्सा हो जाते हैं। इसलिए बच्चे मास्टर जी के सामने हमेशा आँखें बंद करके रखते हैं क्योंकि एक भी गलती होने पर मास्टर जी विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों की 15 मिनट की नैतिक शिक्षा पर कक्षा ले लेते हैं। मास्टर जी का मानना है कि सुबह की प्रार्थना सभा से ही बच्चे संस्कारी और देश-प्रेमी होंगे, जिसका कि समाज में अभी अभाव हो चला है।
आधी छुट्टी की घंटी बजी और स्कूल में खाना बांटा जाने लगा तो मास्टर जी ने भी अपनी कक्षा को खाना लेने के लिए भेजा। हालाँकि मास्टर जी को कभी भी मिड डे मील योजना पसंद नहीं आई क्योंकि उन्हें लगता है कि यह योजना बच्चों में मुफ्तखोरी को प्रोत्साहित करती है। यही नहीं, स्कूल में किताब-कॉपी, वर्दी बांटे जाने के भी वो प्रबल विरोधी हैं। कुछ बुदबुदाते हुए शर्मा जी स्टाफ-रूम की ओर चले। अभी वो ठीक से वहाँ पहुँचे भी नहीं थे कि उनकी कक्षा का एक बच्चा अपने पिता के साथ उनके सामने प्रकट हो गया। बच्चे को उसके पिता के साथ देखकर मास्टर जी के चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे कि काली बिल्ली ने उनका रास्ता काट दिया हो। बाप ने मास्टर जी को नमस्ते किया और बोला, “क्या बच्चों की वर्दी आई है?” इतना सुनना था कि मास्टर जी आपे से बाहर हो गए। सरकार का इतना कीमती पैसा इस तरह बर्बाद होते देखना उन्हें गवारा न था। मास्टर जी ने बच्चे के पिता को क्या बुरा-भला कहा इसकी खबर तो नहीं पता चली पर स्टाफ-रूम में घुसते ही उनके पहले शब्द थे, “सरकार ने स्कूल शिक्षा देने के लिए खोले हैं या हरामखोरी को बढ़ावा देने के लिए?"