Friday 24 February 2023

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के वज़ीफ़े कैसे छीने जा रहे हैं

लोक शिक्षक मंच ने जनवरी 2022 में सत्र 2021-22 में एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक वर्गों के विद्यार्थियों के वजीफों की स्थिति समझने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम के तहत दिल्ली शिक्षा विभाग से जानकारी माँगी थी। इस RTI में कुल 40 प्रश्न थे लेकिन हमारी तकनीकी ग़लती के कारण एसटी व माइनॉरिटी छात्रों से संबंधित पूरा डाटा प्राप्त नहीं हो पाया। इसलिए यहाँ केवल एससी व ओबीसी वर्गों के विद्यार्थियों का ही डाटा प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन हमारा मानना है कि जो वास्तविकता एससी/ओबीसी वर्गों के वजीफों की है, वही एसटी/अल्पसंख्यक वर्गों के छात्रों के वजीफों की भी है।

3 महीनों के अंतराल में 28 में से केवल 10 ज़ोन से जवाब आए। कई स्कूलों ने अधूरी जानकारी दी या यह लिखकर भेजा कि वांछित जानकारी स्कूल आकर प्राप्त करें। अधिकतम स्कूलों/ज़ोन द्वारा जानकारी प्रदान न करना शिक्षा विभाग में RTI कानून के कमज़ोर कार्यान्वयन को दर्शाता है।

सत्र 2021-22 के स्कॉलरशिप संबंधित आंकड़े
शिक्षा विभाग से प्राप्त एक जानकारी के अनुसार दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्षा 9-12 में नामांकित विद्यार्थियों में से 15.3% विद्यार्थी SC (पृष्ठभूमि के) हैं, 7.2% OBC (पृष्ठभूमि के) हैं और 0.22% ST (पृष्ठभूमि के) हैं। इन आँकड़ों के हिसाब से एक-चौथाई से भी कम विद्यार्थी इन वंचित जाति-समूहों से हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जाति प्रमाण-पत्र न बनवा पाने के कारण बहुजन पृष्ठभूमि के अधिकतर बच्चे स्कूलों में अदृश्य कर दिए जाते हैं और उन तक उनके हक़ नहीं पहुँचते। दस ज़ोन के स्कूलों द्वारा भेजी गयी स्कॉलरशिप संबंधी जानकारी के अनुसार:

एससी वर्ग के विद्यार्थियों के वजीफे 
- कक्षा 9-10 में कुल एससी पंजीकृत छात्रों में से केवल 8.6% एससी छात्र प्री मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे जिनमें से ~55% बच्चों के फॉर्म रिजेक्ट किए गए। एससी वर्ग के केवल 4% छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 9-10 के एससी वर्ग के केवल 7.9% छात्रों को प्री मेट्रिक या मुख्यमंत्री में से कोई एक वज़ीफ़ा मिला।
- कक्षा 11-12 में कुल एससी पंजीकृत छात्रों में से केवल 8.6% छात्र पोस्ट मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे, जिनमें से ~20.9% बच्चों के फॉर्म रिजेक्ट किए गए। एससी वर्ग के केवल 5.8% छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 11-12 के एससी वर्ग के केवल 12.7% छात्रों को पोस्ट मेट्रिक या मुख्यमंत्री में से कोई एक वज़ीफ़ा मिला।

ओबीसी वर्ग के विद्यार्थियों के वजीफे 
- कक्षा 9-10 में कुल ओबीसी पंजीकृत छात्रों में से केवल 22.7% छात्र प्री मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे, जिनमें से 49.4% बच्चों के फॉर्म रिजेक्ट किए गए। ओबीसी वर्ग के केवल 14% छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 9-10 के ओबीसी वर्ग के केवल 25.5% छात्रों को कोई वज़ीफ़ा मिला।
- कक्षा 11-12 में कुल ओबीसी पंजीकृत छात्रों में से केवल 12.2% छात्र पोस्ट मेट्रिक वज़ीफ़े का ऑनलाइन फॉर्म भर पाए थे, जिनमें से 23.8% बच्चों के फॉर्म रिजेक्ट किए गए। ओबीसी वर्ग के केवल 13.6% छात्रों को मुख्यमंत्री प्रतिभा वज़ीफ़ा मिला। कुल मिलाकर, सत्र 2021-22 में कक्षा 11-12 के ओबीसी वर्ग के केवल 22.9% छात्रों को कोई वज़ीफ़ा मिला।

कुल विद्यार्थियों के वजीफे
दिल्ली शिक्षा विभाग द्वारा इस विषय पर 02.02.23 को हुई मीटिंग के मिनट्स (DE 18(3)/29/PLG/E DISTRICT SCHEMES/2022-23/398-423 दिनांक 14.02.23) के अनुसार 2021-22 में कुल 65,050 एससी/ एसटी/ ओबीसी वर्गों के विद्यार्थियों ने स्कॉलरशिप का आवेदन किया। लेकिन यह कुल नामांकित एससी/ एसटी/ ओबीसी छात्रों का मात्र 32.5% है। यानी, ~68% विद्यार्थी तो आवेदन ही नहीं कर पाए! विभाग को यह जानकारी भी सार्वजनिक करनी चाहिए कि सत्र 2021-22 में कुल कितने % छात्रों को कोई वज़ीफ़ा मिला।

विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप न मिल पाने के कारण
कुछ साल पहले तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी/ एसटी वर्गों के लगभग सभी छात्र तथा ओबीसी/ अल्पसंख्यक वर्गों के बहुत-से छात्र वज़ीफ़ा पाते थे। पर धीरे-धीरे कथित वर्गों से आने वाले छात्रों पर अनेक शर्तों का बोझ डाल दिया गया; जैसे - आय प्रमाण-पत्र, ऑनलाइन आवेदन, पिछली कक्षा में न्यूनतम अंक, न्यूनतम उपस्थिति आदि। छात्रों के व्यापक बहिष्करण के पीछे अनेक कारण हैं: 
-सबसे पहला कारण आय प्रमाण-पत्र की शर्त है। अभिभावकों के अनुभव गवाह हैं कि एसडीएम दफ़्तर से आय प्रमाण-पत्र बनवाना कितनी कठिन, एलिटिस्ट और भ्रष्ट प्रक्रिया है। इस दस्तावेज़ को बनवाने के लिए अभिभावकों को कई तरह के कागज़ जुटाने पड़ते हैं और दलालों से जूझना-बचना पड़ता है।
- दूसरा कारण है ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया की जटिलता। अधिकतर छात्र डिजिटल पटल से जुड़ी विभिन्न तरह की तकनीकी समस्याओं के कारण फॉर्म भर नहीं पाते; इस प्रक्रिया में अभिभावक को बार-बार साइबर कैफ़े के चक्कर लगाने पड़ते हैं और पैसा खर्च करना पड़ता है। थक-हार के कुछ बच्चे फॉर्म भर पाते हैं मगर ज़्यादातर छोड़ देते हैं। इस चक्रव्यूह समान दुर्गम व अपारदर्शी प्रक्रिया में न स्कूलों के पास और न ही अभिभावकों के पास कोई सुनवाई के माध्यम हैं। अगर हैं भी तो आख़िर वो कितनी समस्याओं के लिए और कितनी बार चक्कर काटें? हमारी सरकारें भारत की मेहनतकश जनता पर डिजिटल शर्तें थोपने से पहले न डिजिटल पटल की सहजता, सुगमता सुनिश्चित करती हैं और न ही जनता को इस बाधा-दौड़ के लिए तैयार करती हैं; बल्कि आधारभूत ज़रूरतों तक के लिए जनता को डिजिटल मशीनरी के सामने फेंक देती है।
- तीसरा कारण जाति प्रमाण-पत्र की अनुपलब्धता है। आज भी वंचित तबकों से आने वाले अधिकतम बच्चे अपनी जाति साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नहीं जुटा पाते और स्कूलों में एससी/ एसटी/ ओबीसी के रूप में दर्ज नहीं हो पाते। एक शिक्षिका के शब्दों में, "मेरे विद्यालय में स्कॉलरशिप संबंधित 7 पेरेंट्स मीटिंग हुईं जिनमें कुल 42% माइनॉरिटी तथा एससी/ओबीसी वर्गों के पेरेंट शामिल हुए। इनमें से 31% अभिभावकों ने बताया कि वे किराए पर रहते हैं और उनका मकान मालिक रेंट एग्रीमेंट नहीं बनाएगा, जो कि आय प्रमाण-पत्र की अनिवार्य शर्त है। ~12% अभिभावकों ने बताया कि या तो पिता का बैंक खाता नहीं है या बीमारी आदि के कारण उपलब्ध नहीं करा सकते। काफ़ी मशक़्क़त के बाद भी माइनॉरिटी वर्ग के केवल 6 (2%) और एससी/ओबीसी वर्गों के सिर्फ़ 15 (18%) विद्यार्थी आय प्रमाण-पत्र बनवा पाए और स्कॉलरशिप का फॉर्म भर पाए।''
- चौथा कारण है केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जो स्कॉलरशिप योजनाओं को 'परीक्षा आधारित' बनाती है; जैसे प्रधान मंत्री यंग अचीवर्स स्कॉलरशिप। 'मेरिट' की यह वर्णवादी अवधारणा सामाजिक न्याय के मूल्यों को कमज़ोर करने के लिए नए-नए रूप धरती रहती है। (6.16, राशिनी 2020)
- पाँचवा और सबसे मौलिक कारण है केंद्र सरकार द्वारा वजीफों के बजट आवंटन में ज़बरदस्त कटौती। स्पष्ट है कि जिस देश को अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप देनी होती है वो बजट बढ़ाता है और शर्तें घटाता है और जिसे नहीं देनी होती है वो बजट घटाता है और शर्तें बढ़ाता है। इसी बेशर्म कटौती का नतीजा था कि 2022-23 में कक्षा VIII तक के विद्यार्थियों से प्री मेट्रिक फॉर माइनॉरिटी के फॉर्म भरवाने के बावजूद बीच सत्र में मंत्रालय ने उनकी स्कॉलरशिप ख़त्म कर दी और फॉर्म रिजेक्ट कर दिए।
- 01.02.23 को द हिंदू में छपी इशिता मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार जिस अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को 2021-22 में स्कीम्स के लिए 365 करोड़ दिए गए थे उसे 2022-23 में 44 करोड़ दिए गए, यानी 38% बजट कटौती। 11.02.22 को न्यूज़क्लिक में छपी रविन्द्र नाथ सिन्हा की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 के केंद्रीय बजट में एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों के विद्यार्थियों के स्कॉलरशिप बजट में पिछले साल के बजट की तुलना में 30% गिरावट हुई है। 30.01.20 को सीबीजीए में छपे लेख में प्रोविता कुंडू बताती हैं कि 2015-16 से 2019-20 के बीच, एससी वर्ग के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप आवंटन 58% घटा है और ओबीसी वर्ग के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप आवंटन लगभग स्थिर रहा है। 2019-20 की स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने एससी वर्ग के छात्रों के लिए जितना बजट माँगा उसका 59% मिला और ओबीसी वर्ग के छात्रों के लिए जितना बजट माँगा उसका 54% मिला।

हमारी माँगें:
1.केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार स्कॉलरशिप का बजट आवंटन बढ़ाएँ।
2. स्कॉलरशिप आवेदन से आय प्रमाण-पत्र की शर्त को ख़त्म किया जाए।
3. सरकारी स्कूलों में स्कॉलरशिप आवेदन को पहले की तरह स्कूलों द्वारा कार्यान्वित किया जाए, नाकि बच्चों द्वारा ख़ुद ऑनलाइन फॉर्म भरने पर छोड़ा जाए।
4. जाति प्रमाण-पत्र बनवाने में विद्यार्थियों की मदद की जाए।
5. स्कॉलरशिप को मेरिट/परीक्षा आधारित न बनाया जाए; इसके सामाजिक न्याय के स्वरूप व उद्देश्य का पालन किया जाए।
6. यह सुनिश्चित किया जाए कि बैंक खाता या आधार संख्या न होने के कारण कोई भी छात्र अपने वजीफ़े से वंचित न हो। 
7. दिल्ली शिक्षा विभाग व नगर निगम सार्वजनिक करें कि पिछले 10 सालों में दिल्ली सरकार व नगर निगम के स्कूलों में कितने % एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक पृष्ठभूमियों के विद्यार्थियों को वज़ीफ़ा मिला।
8. अभिभावकों, विद्यार्थियों और शिक्षकों से व्यवस्थित ढंग से बात करके स्कॉलरशिप प्राप्ति में आ रही अड़चनों को समझा और सुलझाया जाए।
9. स्कॉलरशिप के पीछे के सामाजिक न्याय के ऐतिहासिक संदर्भ के बारे में शिक्षकों व प्रशासन-तंत्र को सचेत किया जाए।

दिल्ली के सरकारी स्कूलों की फैक्टशीट

 लोक शिक्षक मंच दिल्ली की सार्वजनिक स्कूली व्यवस्था के प्रमुख हिस्से से जुड़े कुछ आँकड़े प्रस्तुत कर रहा है। विडंबना है कि एक तरफ़ सत्ता लोगों की तमाम निजी जानकारी ही नहीं, बल्कि हमारे पल-पल पर नज़र रखती है, वहीं दूसरी तरफ़ सार्वजनिक तंत्र व उसके संसाधनों के बारे में न्यूनतम जानकारी भी छुपाई-दबाई जाती है। यहाँ तक कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 को कमज़ोर किया जा रहा है और उसके तहत तय किए गए 'पारदर्शिता' के मानकों का भी पालन नहीं किया जा रहा है। हमें उम्मीद है कि ये आँकड़े दिल्ली की सार्वजनिक स्कूली शिक्षा की तस्वीर के कुछ हिस्से पर रौशनी डालने और सवाल खड़ा करने में मदद करेंगे। लेकिन हमारी माँग है कि दिल्ली शिक्षा विभाग और एमसीडी विस्तृत जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे ताकि स्वतंत्र और सटीक डाटा के आधार पर सरकारों को जवाबदेह बनाया जा सके।

नीचे दिए गए आँकड़ों के लिए निम्नलिखित स्रोत इस्तेमाल किए गए हैं -
- Praja.org द्वारा जारी रिपोर्ट, State of Public (School) Education in Delhi, November 2022 
- Delhi Outcome Budget 2022-23, Planning Department, GNCT of Delhi
- लोक शिक्षक मंच द्वारा वज़ीफ़ा संबंधी RTIs से मिली जानकारी
- UDISE रिपोर्ट 2021-22

दिल्ली के स्कूली विद्यार्थियों की फैक्टशीट
कक्षा V तक के स्कूलों में - 56% बच्चे सरकारी व 43.9% बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं।
कक्षा VIII तक के स्कूलों में - 60.6% बच्चे सरकारी व 39.3% बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं।
कक्षा X तक के स्कूलों में - 67% बच्चे सरकारी व 32.5% बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं।
कक्षा XII तक के स्कूलों में - 67.5% बच्चे सरकारी व 32.4% बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं।
(यहाँ सरकारी विद्यालयों में केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, दिल्ली सरकार व एमसीडी के स्कूल शामिल हैं व निजी विद्यालयों में सहायता प्राप्त व गैर सहायता प्राप्त दोनों स्कूल शामिल हैं; हालांकि गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों की संख्या बहुत कम है)

दिल्ली शिक्षा विभाग के विद्यालयों की फैक्टशीट 
कितने स्कूल, कितने छात्र?
2021-22 में कुल विद्यालयों की संख्या 1,047 और कुल विद्यार्थियों की संख्या ~17,62,000 थी। पिछले 4 सालों में कुल छात्रों की संख्या 19% बढ़ी (2.8 लाख) जिसके पीछे कोविड व घरबन्दी से उपजा आर्थिक संकट बड़ा कारण था।
कितने नए स्कूलों का निर्माण?
दिल्ली शिक्षा बजट रिपोर्ट में पिछले दो सालों में ~25,000 नए कमरे बनाने और 40 नई बनाई इमारतों को फंक्शनल किए जाने का दावा है। विभाग यह सार्वजनिक करे कि पिछले 7 सालों में कितने विद्यालय वाकई नए बनाए गए हैं और कितनी इमरातों के केवल नाम बदले गए हैं। 
कितने विद्यालयों का विलय किया गया?
जून 2022 में द टाइम्स ऑफ़ इंडिया की आरटीआई के जवाब में दिल्ली शिक्षा विभाग ने बताया कि पिछले 7 सालों में दिल्ली सरकार के 48 स्कूल मर्ज किए गए हैं। इनमें से 32 स्कूलों का विलय 2022-23 में हुआ और कुल 92 विद्यालयों को मर्ज करने की योजना है। (विलय किए स्कूलों के कुछ उदाहरण नीचे प्रस्तुत)
प्राथमिक कक्षाओं में कितना छात्र:शिक्षक अनुपात?
2021-22 में प्राथमिक कक्षाओं में 34 बच्चों पर एक शिक्षक जबकि शिक्षा अधिकार अधिनियम द्वारा निर्धारित कानूनी सीमा 30:1 है। हालांकि विभाग के स्कूलों में कुल छात्र:शिक्षक अनुपात 29:1 है, लेकिन यह संख्या इस वास्तविकता को उजागर नहीं करती कि हर स्कूल में अनेक शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कामों के लिए तैनात किया जाता है। इसलिए कक्षाओं तक नहीं पहुँचने वाले शिक्षकों का अनुपात इससे कहीं ज़्यादा होता है। 
शिक्षकों के कितने पद खाली?   
2021-22 में ~20% शिक्षक ठेके पर कार्यरत।
प्रधानाचार्य/उप प्रधानाचार्य के कितने पद खाली?
2021-22 में कुल 2,594 स्वीकृत पदों में से ~50% पद खाली।
कितने बच्चों ने पढ़ाई पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ा?
~300 स्कूलों से प्राप्त डाटा के आधार पर प्रजा रिपोर्ट का प्रक्षेपण बताता है कि 2020-21 में ~19.5 हज़ार बच्चों ने स्कूल छोड़ा। 
कितने बच्चों ने दसवीं/बारहवीं पूरी नहीं की?
2014-21 के बीच दिल्ली शिक्षा विभाग में पढ़ने वाले कक्षा 9 के 7.7 लाख छात्रों ने दसवीं नहीं की और कक्षा 11 के 2.27 लाख छात्रों ने बारहवीं नहीं की। यानी जितने बच्चे आज सरकारी स्कूलों में कक्षा IX-XII में पढ़ रहे हैं, करीब उतने ही बच्चे पिछले 5 सालों में कक्षा 9-12 छोड़ चुके हैं। यह संख्या ~9 लाख है।
एससी/ओबीसी पृष्ठभूमि के कितने छात्र नामांकित?
2021-22 में कक्षा IX-XII में केवल 22.7% विद्यार्थी एससी (15.3%), ओबीसी (7.2%) तथा एसटी (0.22%) वर्ग में नामांकित। इन आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्षा 9-12 में एक-चौथाई से भी कम विद्यार्थी SC/ST/OBC (वंचित) जाति-समूहों से हैं, जबकि सच्चाई यह है कि जाति प्रमाण-पत्र न बनवा पाने के कारण अधिकतर बहुजन बच्चे स्कूलों में अदृश्य कर दिए जाते हैं और उन तक उनके हक़ नहीं पहुँचते।  
एससी/ओबीसी पृष्ठभूमि के कितने छात्रों को वजीफ़ा मिला?
9 ज़ोन से प्राप्त डाटा के अनुसार 2021-22 में केवल 10.3% एससी व 24.2% ओबीसी विद्यार्थियों को वजीफ़ा मिला।
कक्षा XI-XII के कितने छात्र विज्ञान विकल्प में नामांकित?
जून 2022 के डाटा के अनुसार दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्षा XI-XII में 78.2% छात्र आर्ट्स, 13.4% कॉमर्स और केवल 8.3% छात्र विज्ञान विकल्प में नामांकित थे। 0.06% छात्र वोकेशनल विकल्प में नामांकित। 'स्टेम' स्कूलों का ढोल पीटने वाली सरकार के 10% छात्र भी विज्ञान विकल्प नहीं चुन पा रहे।
वर्गानुसार कक्षा XI-XII के कितने छात्र विज्ञान विकल्प में नामांकित?
जून 2022 के डाटा अनुसार कक्षा XI-XII के एससी पृष्ठभूमि के 82.8% विद्यार्थी आर्ट्स, 10.5% कॉमर्स, 6.5% विज्ञान और 0.08% विद्यार्थी वोकेशनल विकल्प में नामांकित हैं। 
ओबीसी पृष्ठभूमि के 67.1% विद्यार्थी आर्ट्स, 16.5% विज्ञान, 16.2% कॉमर्स और 0.06% विद्यार्थी वोकेशनल विकल्प में नामांकित हैं।
एसटी पृष्ठभूमि के 66.5% छात्र आर्ट्स, 19.7% विद्यार्थी विज्ञान, 13.8% कॉमर्स और 0.00% वोकेशनल विकल्प में नामांकित हैं।  
प्रति छात्र बजट में क्या बदलाव?
2019 से 2021 के बीच प्रति छात्र बजट ~11.5 हज़ार घटा। दिल्ली शिक्षा विभाग ने प्रत्येक बच्चे पर किये जाने वाले खर्च का आकलन 2019-20 में 81,881 से घटाकर 2022-23 में 70,232 रु किया है।     
कुल शिक्षा बजट का कितना % खर्च?
2020-21 में कुल शिक्षा बजट का 75% खर्च किया गया।
क्या सभी विद्यार्थियों पर समान खर्च? 
नहीं, अलग-अलग सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र बजट आवंटन में अंतर। 2022-23 में SOSE (विशिष्ट स्कूलों की परत) में एक स्टूडेंट पर ~1,61,000 रु खर्च करने का टारगेट, वहीं सामान्य विभागीय विद्यालयों में एक स्टूडेंट पर 70,000 रु खर्च करने का टारगेट यानी आधे से भी कम।
2022-23 के बजट की क्या प्राथमिकताएँ?
जहाँ विज्ञान व भूगोल लैब पर केवल 10 करोड़ खर्चा जाएगा वहीं सीसीटीवी का बजट 100 करोड़ है। जहाँ नई अधकचरी गैर-अकादमिक पाठ्यचर्याएँ, जैसे हैप्पीनेस, इएमसी, आदि का बजट 72 करोड़ है, वहीं लाखों बच्चों की किताबों पर केवल 140 करोड़ खर्चा जाएगा। छात्रों की स्वास्थ्य जाँच पर केवल 10 करोड़ खर्चने का मतलब है एक बच्चे के हिस्से में 55-60 रु की जाँच का खर्च वहन हो पाएगा। (बजट आवंटन की जानकारी नीचे प्रस्तुत)

एमसीडी के विद्यालयों की फैक्टशीट
कितने स्कूल, कितने छात्र?
2021-22 में कुल विद्यालयों की संख्या 1,661 और कुल विद्यार्थियों की संख्या 9,05,000 थी। पिछले 4 सालों में कुल छात्रों की संख्या 14% बढ़ी (1.4 लाख)।
कितने नए स्कूलों का निर्माण?
नौ सालों में 140 व बीते 4 में 49 एमसीडी स्कूल बंद हुए।
प्राथमिक कक्षाओं में कितना छात्र:शिक्षक अनुपात?
2021-22 में प्राथमिक कक्षाओं में 43 बच्चों पर एक शिक्षक जबकि शिक्षा अधिकार अधिनियम द्वारा निर्धारित कानूनी सीमा 30:1 है। 
कितने बच्चों ने पढ़ाई पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ा?
2020-21 में ~35, 000 बच्चों ने स्कूल छोड़ा।
प्रति छात्र बजट में क्या बदलाव?
2019 से 2021 के बीच प्रति छात्र बजट ~30.5 हज़ार घटा। एमसीडी में प्रत्येक बच्चे पर 2019-20 में 59,664 खर्च करने का आकलन था वहीं 2022-23 में यह एस्टीमेट केवल 29,077 है यानी ~30.5 हज़ार रु कम।
कुल शिक्षा बजट का कितना % खर्च?
2020-21 में कुल शिक्षा बजट का 42% खर्च किया गया।
बजट की क्या प्राथमिकताएँ?
स्टूडेंट्स की संख्या की परवाह किये बिना, अधिकतर स्कूल में सिर्फ़ 1 सफ़ाई कर्मी; कोई IT कर्मचारी नहीं; नर्सरी व आया नहीं। कर्मचारियों के वेतन को लेकर निरंतर प्रदर्शन।

दिल्ली सरकार द्वारा मर्ज किए गए स्कूलों के उदाहरण :
अप्रैल '22
i. GGSSS in Pataudi House, Darya Ganj
ii. GGSSS in Kalan Mahal merged with SKV in Pataudi House
बाद के महीनों में '22
i. Sarvodaya (Co-Ed) Senior Secondary School, situated in South West Delhi’s Netaji Nagar, merged
ii. Shaheed Amir Chand Government Sarvodaya Vidyalaya, situated on Shamnath Marg near Kashmere Gate, with Civil Lines-located SBBM Government Sarvodaya Vidyalaya- SAC को खेल यूनिवर्सिटी का काम्प्लेक्स बनाया 
iii. Shakti Nagar Girls' School No 1 and Boys' School No 1 - गुणवत्ता व अनुशासन के नाम पर 
iv. Sarvodaya Vidyalaya in Netaji Nagar merged with Sarvodya Vidyalaya in RK Puram -
optimum use of resources. एनजीओ को दिया गया 
v. Government Boys' Senior Secondary School (GBSSS) in CR Park was merged with Govt. Sarvodaya Kanya Vidyalaya (Shyama Prasad Mukherjee) in CR Park
vi. GBSSS in Hari Nagar Ashram with Sarvodaya (Co-ed) in Hari Nagar Ashram
vii. Government Sarvodaya Vidyalaya (GSV) with Sarai Kale Khan
viii. Vidyut Nagar, with Sarvodaya Kanya Vidyalaya (SKV) with Hari Nagar Ashram
ix. GBSSS in Kalkaji with Government Girls Senior Secondary School No.3 in Kalkaji
x. GBSSS No.2 in Shahdara with GBSSS No.1
xi.GGSSS in Janta Flats, Nand Nagri with E-SKV, Nand Nagri
xii. GBSSS in Padam Nagar with SKV, Padam Nagar
xiii. GBSSS in New Jafrabad with GBSSS in Jafrabad Extension
xiv. GBSSS in Begumpur with SKV in MMTC/STC Colony, Begumpur
xv. GBSSS No.3 in Sector IV Dr Ambedkar Nagar with Sarvoday Kanya Vidyalaya in Dr Ambedkar Nagar
xvi. GGSSS in Sector IV, Dr Ambedkar Nagar with GGSSS in Tigri, Dr Ambedkar Nagar xvii. GBSSS No.1 in Dr Ambedkar Nagar with GGSSS in Dr Ambedkar Nagar
xviii. GBSSS in Khaira with GGSSS in Khaira
xix. GBSSS No. 3 in Palam Enclave with GGSSS No. 3 in Palam Enclave
xx. GBSSS No. 2 in Shakirpur with GGSSS No. 1 in Shakirpur
xxi. GBSSS No. 1 in Keshavpuram with SKV, Keshavpuram
xxii. GBSSS in D-Block, Sultanpuri with GGSSS in Sultanpuri;
xxiii. GBSSS Rani Bagh with GGSSS in Rani Bagh
xxiv. GBSSS in F-Block Inder Puri with SKV in F-Block Inder Puri

दिल्ली शिक्षा विभाग का 2022-23 का बजट आवंटन :
20,835 नए बनाए गए कमरे फंक्शनल करने के लिए - 600 करोड़ (26 नई बनाई इमारतों को फंक्शनल बनाने का टारगेट)
यूनिफार्म सब्सिडी - 230 करोड़
डिजिटल कक्षा बजट - 150 करोड़
किताबों - 140 करोड़
सीसीटीवी कैमरा बजट - 100 करोड़
SOSE - 100 करोड़ (2021-22 में 2,279 विद्यार्थी)
वोकेशनल शिक्षा (NSQF) - 87.76 करोड़ (2021-22 - ~1,40,000 विद्यार्थी) हैप्पीनेस, इएमसी, देशभक्ति पाठ्यचर्याएँ - 72 करोड़
समावेशी शिक्षा - 70 करोड़
एसएमसी फण्ड - 49 करोड़ 
खेल बजट - 40 करोड़
DBSE ऑनलाइन मूल्यांकन बजट - 25 करोड़
भूगोल/विज्ञान लैब - 10 करोड़
छात्रों की स्वास्थ्य जाँच -10 करोड़
वर्चुअल स्कूल - 10 करोड़
मेंटरिंग प्रोग्राम (DTU)- 5 करोड़
लड़कियों की आत्मरक्षा ट्रेनिंग - 2 करोड़
EWS प्रतिपूर्ति - 2022-23 बजट आवंटन में 250 करोड़ (2021-22 में केवल 67% EWS सीटें भर पाईं और 2022-23 में केवल 75% सीटें भरने का टारगेट) 

पूंजीवाद के एनजीओ एजेंट, ख़बरदार! मेहनतकशों के बच्चे आ रहे हैं !

 मेहनतकश के बच्चों की पढ़ाई पर हमला बंद करो!

20 जनवरी के द हिन्दू में छपे लेख 'Flip the page to the chapter on middle school' में रुक्मिणी बनर्जी, प्रथम फाउंडेशन की सीईओ, लिखती हैं, "असर डाटा दिखाता है कि अति-महत्त्वाकांक्षी पाठ्यचर्या और भारतीय स्कूल की आयु-आधारित कक्षा व्यवस्था के कारण बहुसंख्यक बच्चे अपने स्कूल करियर में 'पीछे छूट' जाते हैं... स्कूलों की अकादमिक विषयवस्तु बच्चों को कॉलेज डिग्री के लिए तैयार करने पर आधारित है। जबकि सच यह है कि सैकेंडरी पास करने वाले हर बच्चे के लिए न तो कॉलेज डिग्री उपयुक्त है और न संभव।" 
 
23 जनवरी 2023 के द इंडियन एक्सप्रेस के 'आइडिया एक्सचेंज' में प्रथम फाउंडेशन के सह-संस्थापक एवं अध्यक्ष, माधव चव्हाण ने कहा, "पाठ्यपुस्तकों के ज्ञान की चिंता न करें..यह छलनी (filteration) व्यवस्था एक समस्या है.. हम इसे अति-महत्त्वाकांक्षी पाठ्यचर्या कहते हैं.. पाठ्यचर्या मुश्किल पर मुश्किल होती जा रही है.." 
 
एनजीओ की चिंता: सरकारी स्कूल बहुत ज़्यादा पढ़ा रहे हैं, इनमें पढ़ाई को कम करो 
'प्रथम' के इन दोनों पदाधिकारियों की चिंता यह है कि स्कूल 'बहुत ज़्यादा' पढ़ा रहे हैं और स्कूली पाठ्यचर्या बहुत 'महत्त्वाकांक्षी' है। इसलिए इनका सुझाव है कि स्कूलों की पढ़ाई को कम करना होगा। ज़ाहिर सी बात है कि न ही इनका सुझाव निजी विद्यालयों के लिए है और न ही वो इनकी बात मानेंगे। इनका इशारा सरकारी स्कूलों की तरफ है जिनमें देश के अधिकतम ग़रीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं।
5 सालों तक दिल्ली के सरकारी स्कूलों की प्राथमिक शिक्षा में अपनी मनमर्ज़ी चलाने के बाद 'प्रथम' कक्षा VI-VIII में अपनी दुकान लगाने की बात कर रहा है। माधव चव्हाण उस छंटनी की 'चिंता' जता रहे हैं जो बच्चों को स्कूलों से बाहर करती है लेकिन उस छंटनी का क्या जो उन्हें उच्च शिक्षा से बाहर करती आई है। स्कूलों की पढ़ाई हल्की करके तो यह छंटनी और तेज़ होगी।
वैसे भी रुक्मिणी बनर्जी का कहना है कि हर बच्चा कॉलेज जाकर करेगा क्या। इस बात में यह तथ्य निहित है कि क्योंकि इस व्यवस्था में कुछ ही नौकरियाँ ऐसी हैं जिनके लिए पढ़े-लिखे युवा चाहिए, इसलिए सबको शिक्षित नहीं किया जाएगा। चाहे उच्च शिक्षा हो या नौकरियाँ, कुछ सैकड़ों सीटों के लिए लाखों युवा अप्लाई करते हैं। अगर यूँ ही बच्चे पढ़ते रहे तो शिक्षित बेरोज़गार/अर्ध-बेरोगज़ार युवाओं की भीड़ बढ़ती चली जाएगी और इनका ग़ुस्सा सड़कों पर आंदोलन बनकर फूटेगा।
बाज़ार की भी यही चिंता है कि अगर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले सभी बच्चे अच्छा पढ़-लिख जाएँगे तो आगे चलकर सस्ती मज़दूरी कौन करेगा। पढ़ा-लिखा मज़दूर तो पक्की नौकरी, छुट्टी, इलाज और पेंशन माँगेगा। इसलिए इस व्यवस्था के लिए देश के सभी बच्चों को पढ़ाना ख़तरनाक होता जा रहा है।
ऐसे में इन 'समाजसेवी' संस्थाओं का कहना है कि सब बच्चों को पढ़ने से रोकना होगा।
सबको साक्षर बनाना होगा, लेकिन शिक्षित नहीं। पूंजीवादी व्यवस्था को कुछ ही शिक्षित युवा चाहिए, बाकियों को सिर्फ़ साक्षरता तक रोकना होगा ताकि ये आदेश समझकर मशीन तो चला सकें लेकिन उससे ज़्यादा कुछ न माँग सकें।
 
सरकारों की कोशिशें 
'ज़्यादा बच्चों के पढ़ जाने' की समस्या को सुलझाने के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं:
1.पहले साल-दर-साल पूंजीवादी संस्थाओं ने यह साबित किया कि सरकारी स्कूलों के बच्चे 'ज़्यादा' पढ़ने-पढ़ाने के लायक नहीं हैं। जैसे 15 साल के सतत मीडिया प्रचार की मदद से प्रथम फाउंडेशन के 'असर' सर्वे ने यह ख़तरनाक भ्रम फैला दिया कि अधिकतम बच्चे सीख ही नहीं पा रहे हैं। 'कक्षा III के बहुत से बच्चे कक्षा I की किताब और कक्षा V के बहुत से बच्चे कक्षा III की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं।' फिर सरकारों ने इन सर्वेक्षणों को झट से अपना लिया और इनके आधार पर नीतियाँ बना दीं।
2. सरकारी स्कूलों के बच्चों को 'नालायक' साबित करने के बाद उनकी किताबें हटाकर उन्हें साक्षरता और अंकगणित प्रोग्राम में धकेल दिया गया। पिछले 4-5 सालों से दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कक्षा VIII तक के बच्चे न भाषा में गहरे उतर पा रहे हैं और न ही ढंग से विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और गणित पा रहे हैं। वो केवल अधकचरी हिंदी और जमा-घटा सीख रहे हैं। यही है दिल्ली सरकार का 'क्रांतिकारी' मिशन बुनियाद और केंद्र सरकार का 'युगान्तरकारी' मिशन निपुण भारत। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने तो फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमरेसी (FLN) प्रोग्राम को स्कूली शिक्षा की पाठ्यचर्या के केंद्र में ही रख दिया है। (2.2, राशिनी 2020)
विडंबना यह है कि सरकार को बच्चों के न सीखने की चिंता तो है लेकिन उनके न सीख पाने के कारणों की कोई चिंता नहीं है। ग़रीबी और ग़रीबी से जुड़ी मजबूरियों के कारण जो बच्चे नियमित स्कूल नहीं आ पाते या बीमार रहते हैं या जिनके घर पर कोई पढ़ाने वाले नहीं हैं; उन्हें ही कम पढ़ाकर और दण्डित किया जा रहा है। वंचित समूहों के बच्चों के शैक्षिक स्तर को ऊपर उठाने के बजाय उनकी शिक्षा के पैमाने और उद्देश्यों को ही नीचे लाया जा रहा है। यानी नींव भी कच्ची और इमारत भी कच्ची रखी जा रही है।
3. कक्षा 8 के बाद ज़्यादातर छात्रों को उच्च शिक्षा से दूर रखने के लिए उन पर वोकेशनल कोर्स थोपे जा रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने कक्षा 6 से ही बच्चों में वोकेशनल शिक्षा के नाम पर नौकरी का डर बिठाना शुरु कर दिया है। नीति का इरादा है कि 2035 तक कॉलेज आने वाले आधे युवाओं को वोकेशनल डिग्री में भेजा जाए ताकि ये अकादमिक शिक्षा की तरफ न जाएँ। (4.2, 4.26, 16.4, राशिनी 2020)
4. मज़दूरों के बच्चों को हर रोज़ ईएमसी (उद्यमी मानसिकता पाठ्यचर्या) पीरियड में यह सिखाया जा रहा है कि सरकार से नौकरी माँगना तो कमज़ोरों, कामचोरों और नाकाबिलों की निशानी है। सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि सब अपने लिए खुद ज़िम्मेदार हैं। चाहे ठेला लगाओ या मेहंदी लगाओ पर 'नौकरी लेने वाले नहीं, नौकरी देने वाले बनो'।
5. ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों को 'ओपन' का रास्ता दिखाया जा रहा है। पिछले 5 सालों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के कक्षा 9 से 12 के करीब 9.5 लाख बच्चे ऐसे थे जिनकी पढ़ाई स्कूल पूरा करने से पहले ही छूट गई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति तो कहती है कि शिक्षा का अधिकार जाए भाड़ में, बच्चों को तो कक्षा 3, 5, 8 में भी ओपन स्कूलिंग में भेजा जाए। जितने छंटते चले जाएँ, उतना बढ़िया है। (3.5, राशिनी 2020)
6. सरकारों द्वारा कक्षा 10 और 12 की बोर्ड फ़ीस को कई गुना बढ़ाना और वजीफों को लगातार घटाना भी इसी छंटनी प्रक्रिया का एक तरीका है।
7. कहीं विद्यार्थी अपनी बिगड़ती हालत को लेकर जागृत और ग़ुस्सा न हो जाएँ इसलिए दिल्ली सरकार के हैप्पीनेस प्रोग्राम जैसे कोर्स चलाए जा रहे हैं। इसमें बच्चों को सिखाया जा रहा है कि 'जो मिले उसमें खुश रहो'। इसी तरह देशभक्ति पाठ्यचर्या सरकारी स्कूलों के बच्चों की आलोचना शक्ति को कुंद करके उन पर एक पराई मध्यवर्गीय देशभक्ति थोपती है।
8. ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूलों के सभी बच्चों को ज़्यादा पढ़ने से रोका जा रहा है। 1% सरकारी स्कूलों को चमकाने की ज़रूरत तो सरकारों को भी है ताकि वे अपना विज्ञापन जारी रख सकें। इसलिए दिल्ली सरकार ने एसओएसई (एक्सीलेंस स्कूल) और केंद्र सरकार ने पीएम-श्री विद्यालयों का ढोल पीटा है जिनमें प्राइवेट कोचिंग संस्थाओं की मदद से कुछ डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आईएएस प्रत्याशी 'निकाले जाएँगे'। 
 
मेहनतकश का जवाब 
डॉक्टर के बच्चे को डॉक्टर, वकील के बच्चे को वकील, अफ़सर के बच्चे को अफ़सर और मज़दूर के बच्चे को मज़दूर बनाए रखने के लिए वर्ण व्यवस्था एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए है। लेकिन इस पूंजीवादी संतुलन' को मेहनतकश वर्ग के बच्चे 'बिगाड़ने' में लगे हैं:
- दो साल ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर अपने साथ हुए मज़ाक के बावजूद स्कूल लौट आए हैं।  
- 4-5 साल मिशन बुनियाद में जकड़े जाने के बावजूद अपनी नियमित पाठ्यचर्या पढ़ना चाहते हैं।  
- सरकारी स्कूलों में बढ़ती फ़ालतू गतिविधियों और झूठी पाठ्यचर्याओं के बावजूद अपने विषयों को ज़िन्दगी से जोड़ रहे हैं।
- उधार लेकर सीबीएसई को बोर्ड परीक्षा की फ़ीस भर रहे हैं। 
- स्कॉलरशिप न मिलने के बावजूद दसवीं-बारहवीं पूरी कर रहे हैं।  
- सीयूईटी के एलिटिज़्म के बावजूद रेगुलर कॉलेज के सपने देख रहे हैं।
- ग़रीबी, महंगाई, बेरोज़गारी, घरेलू कामों के बावजूद ओपन से कॉलेज कर रहे हैं। 
 
ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये सरकारी स्कूलों के बच्चे आंदोलन भी करेंगे, पहुँच जाएँगे 'प्रथम' जैसे एनजीओ के दफ़्तरों के बाहर और कहेंगे, "मज़दूरों के बच्चों से बहुत करा ली सस्ती मज़दूरी। अब अपने बच्चों के प्राइवेट स्कूलों को बनाओ साक्षरता के केंद्र, कमज़ोर करो उनकी पाठ्यचर्या, सिखाओ उन्हें वोकेशनल स्किल्स और बनाओ उन्हें सस्ते मज़दूर।"