Wednesday 14 August 2013

स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया: कुछ विचार और अपील

 RTE कानून को न्याय व समता के धरातल पर उचित नहीं ठहराया जा सकता - न इसमें सभी बच्चों के लिए बराबरी की बात है और न ही पर्याप्त स्तर की ( दोनों के लिए समान स्कूल व्यवस्था एक ज़रूरी शर्त है ) - मगर इस कानून के अनुसार 6 से 14 साल के सभी बच्चों को स्कूलों में प्रवेश का अधिकार मिला है और जब तक हम कानून को बदलवाने में कामयाब नहीं हो जाते तब तक हमें या तो सविनय अवज्ञा कर अपना बलिदानी विरोध दर्ज करना चाहिए या इसके दायरे में रहकर घोषित संघर्ष करना चाहिए। वैसे, इस कानून से पूर्व ही दिल्ली नगर निगम ने श्रेष्ठ पहल करते हुए अपने स्कूलों में शिक्षा निशुल्क और प्रवेश प्रक्रिया सुलभ कर दी थी। इसके बावजूद कि निगम के अधिकतर स्कूलों में प्रवेश नियमानुसार व न्यायोचित ढंग से दिया जा रहा हो, यह संभव है कि कुछ जगहों पर जानकारी के आभाव में या ग़लत राजनैतिक समझ के कारण कुछ अनदेखी भी हो रही हो। क्योंकि एक भी बच्चे के साथ कानून व न्याय विरुद्ध बरताव, वो भी स्कूलों में, नहीं होना चाहिए इसलिए यहाँ कुछ बिन्दुओं पर एक समझ व्यक्त की जा रही है। 


1. सिवाय बच्चे की 2 फोटो के, कोई दस्तावेज़ प्रवेश के लिए अनिवार्य नहीं है। ( हमें तो इस स्थिति को भी चुनौती देनी चाहिए क्योंकि इससे एक तरह का शुल्क लागू होता है। ) अगर अभिभावक के पास जन्म-तिथि का कोई प्रमाण नहीं है तो हमें उनके द्वारा बतलाई गई तारीख को ही दर्ज कर लेना है। - इसका सीधा सा नैतिक-सैद्धांतिक आधार ये है कि माता-पिता की मजबूर परिस्थितयों या कोताही का और व्यवस्था की असुलभता की कीमत बच्चों के अधिकारों का हनन करके नहीं वसूली जानी चाहिए क्योंकि ये तो अत्याचार-अन्याय की मार को दोहरा करके वंचित को ही उसके हालात की सजा देना होगा।  वैसे, यह भी सच है कि जब वो यह बताने में भी असमर्थ होते हैं तो कुछ शिक्षक ही कभी उनकी बताई हुई जानकारी की मदद से और कभी अपने से ही एक तारीख लिख लेते हैं। इसमें कोई नैतिक बुराई इसलिए नहीं है क्योंकि शुद्ध शैक्षिक दृष्टि से इस बात का कोई महत्त्व नहीं है कि अमुक विद्यार्थी 10 जून 2008 को पैदा हुई थी कि 28 नवम्बर 2008 को। हाँ, इतना ज़रूर है कि एक कक्षा में एक सी उम्र के बच्चों के होने की शर्त के कारण दर्ज आयु का अंतर वास्तविक आयु से 1-2 साल से अधिक का नहीं होना चाहिए। उत्तम तो यह होगा कि माता-पिता के सटीक तारीख न बताने की स्थिति में स्कूलों को यह दर्ज करने का अधिकार और ज़िम्मेदारी मिले कि अमुक बच्चा इतनी उम्र का लग रहा था। ऐसे में उक्त बच्चों का वज़न और लम्बाई नोट की जा सकती है- प्रमाण के रूप में नहीं, बल्कि रिकॉर्ड के रूप में।  

2. निवास-स्थान का कोई सबूत अनिवार्य नहीं है। इस कानून ने तो पड़ोसी स्कूल पर आधारित समान स्कूल व्यवस्था  स्थापित नहीं की है, तो जब हम निजी स्कूल में प्रवेश के लिए पड़ोस के अंक दे रहे हैं, पड़ोस से बाँध नहीं रहे, तो फिर सरकारी स्कूल में प्रवेश लेने वाले बच्चों पर तो यह अतिरिक्त शर्त नैतिक रूप से भी नहीं लगाई जा सकती। हाँ, यहाँ भी कोशिश होनी चाहिए कि पूछ कर पूरा और असल पता लिखा जाये ताकि कभी वहाँ जाने की ज़रूरत पड़े तो समस्या न आये। 

3. किसी भी प्रकार की प्रवेश परीक्षा प्रतिबंधित है। दाखिला उम्र के हिसाब से देना है, बच्चे का पूर्व शैक्षणिक स्तर देखे बग़ैर।  अर्थात, 10 साल की उस लड़की को जिसने पहले कुछ न पढ़ा हो दाखिला उसकी उम्र के हिसाब से चौथी या पाँचवी में ही देना है। उम्र बीते 31 मार्च तक की मानी जाएगी। एक अन्तर्विरोध यह है कि जहाँ कानून 6 साल की बात करता है, दिल्ली में पहली कक्षा में प्रवेश 5 साल पर मिलता है।( वैसे, 6 साल अधिक उचित उम्र है।) यह सच है कि कानून में इसका ज़िक्र है कि सरकार-निकाय इसकी व्यवस्था करेंगे कि ऐसे बच्चों को bridge course कराकर उन्हें उनकी कक्षा के स्तर तक लाया जाए पर ऐसा इन्तजाम कहीं नहीं है - सिवाय वहाँ जहाँ कुछ NGOs को इसकी मार्फ़त बच्चों के अधिकार और राज्य-व्यवस्था को और ध्वस्त करने की कीमत पर फायदा पहुँचाया जा रहा है। आलोचक यह भी कहते हैं कि ऐसी व्यवस्था करना कपोल-कल्पित है और कहीं यह संभव नहीं हुआ है कि आप 2-3 महीनों के bridge course से किसी की 2-3-4 साल की ईमानदाराना भरपाई करा दें। फिर भी, वर्तमान कानून तो यही है और क्योंकि सरकार ने स्वयं अनिवार्य प्रोन्नति ( no detention ) का प्रावधान कानून में दिया है इसलिए अगर ऐसे बच्चे बिना उपयुक्त तैयारी के अगली कक्षा में जा रहे हैं तो इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी या कमी शिक्षकों की नहीं होगी। हाँ, उन विद्यार्थियों की ज़िम्मेदारी ज़रूर है जो आरंभ से उनके पास पढ़ रहे हैं। मगर अगर शिक्षक ऐसे और सभी बच्चों की वास्तविक स्थिति अपने दस्तावेजों में दिखाएँगे तभी तो कानून, नीति व व्यवस्था का पर्दाफाश होगा। अन्यथा, मात्र कुंठित आलोचना करने से, जबकि आपके अपने हाथों से तैयार व प्रमाणित रिकॉर्ड उसी नीति की सफलता का डंका पीट रहे हैं, खिसियाहट और आत्मघात के सिवाय कुछ न मिलेगा।    

4. दाखिला साल भर देना है। इस सन्दर्भ में कानून कहता है कि जिन बच्चों को प्रवेश निकाय द्वारा निर्धारित तय तारीख के बाद दिया जाएगा, उनको अगली कक्षा में प्रोन्नत करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनानी है यह फैसला उक्त निकाय करेगा। अभी तक तो निगम ने ऐसे कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किये हैं कि जिसका दाखिला जनवरी में हो उसे 2 महीनों बाद अगली कक्षा में भेजना है या कोई वैकल्पिक बंदोबस्त करना है। पर यहाँ भी जबतक सरकार सीधे मना नहीं करती या फिर कोई निर्देश नहीं देती, साल भर दाखिला पाना बच्चों का अधिकार है - चाहे आप इससे सहमत न हों या फिर इसे एक धोखा मात्र मानें। ऐसे बच्चों के भी कम तैयारी के साथ अगली कक्षा में जाने को लेकर शिक्षकों को परेशान होने की ज़रूरत नहीं क्योंकि उम्र के हिसाब से प्रवेश और no detention तो है ही व इसकी ज़िम्मेदारी इस कानून की है।  
सीमित जानकारी बताती है कि कई स्कूलों में admission incharge व principal ने बहुत ही न्यायसम्मत और जनसुलभ प्रवेश प्रक्रिया अपनाई है। ज़रूरत यह है कि हम अपने स्वयं के योग्य उदाहरण व उपरोक्त बिन्दुओं से अन्यों को भी परिचित कराएँ और सभी सरकारी स्कूलों में प्रवेश-प्रक्रिया का ऐसा माहौल बनायें कि लोग हम व हमारे स्कूलों पर और अधिक विश्वास-प्रेम जताएँ। इस तरह हम सरकारी स्कूलों को जन-स्कूलों के रूप में उनकी असल व आदर्श पहचान दिलाने की ओर एक क़दम उठा पाएँगे। वर्ना, मुंबई महानगरपालिका के सभी 1174 स्कूलों की तरह जिन्हें PPP की वेदि पर NGOs, corporate घरानों और धार्मिक संगठनों को सौंपने का निर्णय लिया गया है या उत्तरी दिल्ली नगर निगम के 30 super/model स्कूलों की तरह जिन्हें NGO की मदद के बहाने एक नई योजना का जामा पहनाकर भेदभाव बढ़ाने तथा संवैधानिक कर्तव्य से पल्ला झाड़ने की ज़मीन तैयार की जा रही है और या फिर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के उन 50 स्कूलों की तरह जिन्हें 'दानदाताओं' ( corporate NGOs, अन्य निजी संस्थाएँ ) को 'गोद' देने तक का बेहूदा व शर्मनाक फैसला लिया गया है, एक दिन वो भी होगा जब लोगों को यह समझने में दिक्क़त आएगी कि कैसे उनकी स्कूली व्यवस्था को मुनाफाखोरों के हवाले करके शिक्षा को सुधारा नहीं बरबाद किया जा रहा है। और आपकी त्रासदी होगी कि आप सबका रोना अकेले रोयें और सबकी लड़ाई निज की कमजोरी से लड़ें।         

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