Friday 21 April 2023

'999 चैलेंज' सेहत और शिक्षा दोनों के साथ धोखा है!

 दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय के स्कूल ब्रांच (हेल्थ) दफ़्तर द्वारा 10 अप्रैल को जारी एक निर्देश (No DE.23 (386)/Sch.Br/SHP/2022-23/61-66) में सभी स्कूलों को 18 अप्रैल से 9 दिनों तक "999 challenge" नाम के कार्यक्रम में भाग लेने को कहा गया है। निर्देश के अनुसार शिक्षा निदेशक ने 8 अप्रैल को फ़रीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में आयोजित तीन दिवसीय इंटीग्रेटेड होलिस्टिक हेल्थ समिट (शिखर सम्मेलन) में भाग लेने के बाद, मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालने के उद्देश्य से, दिल्ली की स्कूली व्यवस्था में इस कार्यक्रम को शुरु करने की घोषणा की थी।  


999 चैलेंज के तहत लगातार 9 दिनों तक विश्व-शान्ति को समर्पित 9 मिनट के ध्यान के साथ सूर्य नमस्कार नाम का योगासन किया जाना है। इस कार्यक्रम को सिविल 20 के इंटीग्रेटेड होलिस्टिक हेल्थ कार्य दल की वैश्विक पहल के रूप में वर्णित किया गया है। सिविल 20, G 20 के सरकारी समूह के साथ और उस पर दबाव बनाने के उदेश्य से काम करने वाले 8-10 स्वायत्त ग़ैर-सरकारी समूहों में से एक है। इसकी शुरुआत 2013 में हुई थी। अन्य समूहों में यूथ 20, वीमेन 20, लेबर 20, बिज़नेस 20, साइंस 20 आदि शामिल हैं। जहाँ लिंक्डइन साइट पर इसकी भूमिका नागरिक समाज की ओर से सरकारों के समक्ष माँग रखना बताई गई है, वहीं भारतीय अध्यक्षता में इसमें 'माँगों' की जगह 'आकांक्षाओं' शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इसी तरह, जबकि इससे पूर्व आयोजित G 20 शिखर सम्मेलनों की तैयारी में आयोजित किए जाते रहे सिविल 20 सम्मेलनों में मानवाधिकार, अंतर्राष्ट्रीय कर चोरी, डाटा के संदर्भ में निजता के अधिकार, डिजिटल असमानता, झूठी ख़बरों, पर्यावरण विनाश आदि मुद्दों पर सरकारों को फटकार लगाते हुए सख़्त दस्तावेज़ जारी किए गए हैं, भारतीय अध्यक्षता में इस समूह की मेज़बानी कर रही चयनित संस्थाओं द्वारा इसके सरोकारों को झाड़-पोंछ कर निरीह बनाने की कोशिश नज़र आ रही है। उदाहरण के तौर पर, 2022 में इंडोनेशिया में हुए जी 20 सम्मेलन के दौरान 65 देशों से नागरिक समूहों की सदस्यता वाली सिविल 20 द्वारा जारी विज्ञप्ति में जी 20 की असफलता व संकुचित नज़रिये की भर्त्सना करते हुए बराबरी, न्याय व मानवता के मूल्यों की वकालत की गई थी। 2021 में इटली में आयोजित सम्मेलन में जारी सिविल 20 की विज्ञप्ति में तो जी 20 के आदर्श वाक्य 'लोग, ग्रह व समृद्धि' को चुनौती देते हुए 'लोग, ग्रह व लोकतंत्र' का मूलमंत्र सामने रखा गया, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रति हिंसा को एक ख़तरे के रूप में चिन्हित किया गया तथा लोगों को पूँजीवादी शब्दावली के तहत 'हितधारकों' के रूप के बदले अधिकारों से लैस नागरिकों के रूप में देखने की माँग की गई। 2020 में सऊदी अरब में आयोजित जी 20 सम्मेलन के दौरान सिविल 20 द्वारा जारी विज्ञप्ति में न सिर्फ़ जी 20 देशों को 80% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए दोषी क़रार दिया गया, बल्कि निजी ताक़तों व उनके पैरवीकारों द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को अपने पक्ष में तोड़ने-मरोड़ने की भयावह हक़ीक़त को भी रेखांकित किया गया। 2019 में जापान के सम्मेलन के दौरान जारी सिविल 20 की विज्ञप्ति में अप्रवासियों तथा राजनैतिक विरोधियों की असुरक्षा को उठाया गया, जबकि 2018 में अर्जेंटीना के सम्मेलन में सिविल 20 की विज्ञप्ति में सिकुड़ते लोकतंत्र पर चिंता ज़ाहिर करते हुए राज्य की नागरिकों के प्रति ज़िम्मेदारी याद दिलाई गई। इन सबके विपरीत, इस वर्ष 20-21 मार्च को नागपुर में सिविल 20 इंडिया 2023 कार्य समिति के प्रारंभिक सम्मेलन में अध्यात्म पर भी चर्चा हुई और सिफ़ारिशों को अधिक महत्त्वाकांक्षी लेकिन तकनीकी व राजनैतिक रूप से व्यावहारिक रखने पर ज़ोर दिया गया। इसी तरह, जहाँ सिविल 20 समूह अब तक सरकारों से सामाजिक सेवाओं और अपने सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की माँग करता आया है, इस बार, भारतीय संस्थाओं द्वारा, 'व्यक्तिवाद व सामूहिक कार्य' के बीच में या इनके बदले भी 'स्वयंसेवा' को एक आवश्यक सेतु के रूप में स्थापित करने पर बल दिया जा रहा है। भारत सरकार ने, मेज़बान होने के नाते अपनी तयशुदा ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए, इस बार के लिए सिविल 20 की अध्यक्षा माता अमृतानंदमयी मठ की संस्थापक 'माता' अमृतानंदमयी को बनाया है। इस बार सी 20 का मूलमंत्र है - यू आर द लाइट (तुम स्वयं ही प्रकाश हो!)। सिविल 20 इंडिया 2023 की एक वेबसाइट पर बताया गया है कि सी 20 के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीकी व सेवा के वो मुद्दे प्राथमिक होंगे जो लोगों के दैनिक जीवन को छूते हैं। इस मंच पर होने वाले विचार-विमर्श के नतीजतन सी 20 पॉलिसी पैक व सी 20 विज्ञप्ति नाम के दस्तावेज़ तैयार किए जाएँगे जिन्हें जुलाई में होने वाले सी 20 शिखर सम्मेलन में, जी 20 के विचार व कार्रवाई के लिए, जारी किया जाएगा।                                      
इंटीग्रेटेड होलिस्टिक हेल्थ सी 20 के अधीन एक कार्य दल है। इसके 7 उप-समूह हैं जोकि मानसिक स्वास्थ्य, पोषण, महिलाओं एवं बच्चों का स्वास्थ्य, वृद्धावस्था स्वास्थ्य, सर्वांगीण स्वास्थ्य नज़रिया, वन हेल्थ तथा असंक्रामक रोगों की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करेंगे। इस पूरी मुहिम को संयुक्त राष्ट्र संघ के टिकाऊ विकास लक्ष्य (UNSDG) 3 - अच्छा स्वास्थ्य व कल्याण - के प्रति समर्पित बताया गया है। यह दावा किया जाता है कि मानव कल्याण हेतु सर्वांगीण स्वास्थ्य नज़रिया सेहत के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक व आध्यात्मिक पहलुओं को संबोधित करता है। इसी क्रम में यह तो माना गया है कि परंपरा, संस्कृति, समुदाय, जीवनशैली व पर्यावरण, सभी सेहत को प्रभावित करते हैं, लेकिन आर्थिक ढाँचे तथा निजी मुनाफ़े को समर्पित उत्पादन प्रक्रिया से निर्मित विपन्नता पर चुप्पी बरती गई है। स्वास्थ्य के प्रति इस 'सर्वांगीण' नज़रिये के तीन पूरक आयाम बताए गए हैं - योग, ध्यान एवं आयुर्वेद जैसी पारंपरिक उपचार प्रणालियाँ। 

आइये, अब शिक्षा निदेशालय के निर्देश पर वापस आते हैं। इसमें संलग्न दस्तावेज़ में बताया गया है कि 'माँ-ॐ ध्यान विधि' अमृतानंदमयी के 'दिव्य संकल्प का फल' है और इसे उन्होंने स्वयं तैयार किया है, इसलिए इस विधि का जीवन के हर क्षेत्र पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। इस विधि में गहरी साँस लेते हुए इनका उच्चारण करना है और इनकी ध्वनि तरंगों को महसूस करना है। जहाँ 'माँ' को निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक बताया गया है, वहीं 'ॐ' को 'चैतन्य के दिव्य प्रकाश' का प्रतीक बताया गया है। अमृतानंदमयी के अनुसार 'मनुष्य का मन एवं प्रकृति दोनों बेचैनी की दशा में हैं' और ऐसे में 'ईश्वर की कृपा ही हमारे मन और पूरी पृथ्वी पर शांति लाने में मदद कर सकती है।' आगे वो विश्व शांति एवं सद्भाव के लिए ध्यान करने और प्रार्थनाओं द्वारा वर्तमान स्थिति में सुधार लाने का प्रयास करने के लिए आह्वान करती हैं। 

निर्देश के साथ संलग्न दस्तावेज़ में सूर्य नमस्कार के स्वास्थ्य संबंधी लाभों के साथ-साथ ध्यान के सामान्य लाभ गिनाए गए हैं। इनमें काफ़ी एकरूपता है - जैसे, ख़ून का प्रवाह, रक्तचाप, हृदय की कार्यप्रणाली, आत्मविश्वास, पाचन स्वास्थ्य, अनुशासन आदि में बेहतरी। विश्व शांति ध्यान को 999 चैलेंज का हिस्सा बताते हुए यह दावा किया गया है कि इससे सह-प्राणियों के प्रति करुणा एवं समानुभूति का विकास होगा तथा शरीर में 'प्राण शक्ति' (वाइटल एनर्जी) संतुलित होगी। इस विधि को अपनाने के लिए दिए गए निर्देशों में कहा गया है कि सूर्य नमस्कार के 2-3 घंटे पहले तक कोई आहार नहीं लेना है, इसके पहले पानी नहीं पीना है [बच्चों की उम्र या गर्मी का आलम कुछ भी हो!], रीढ़ या गर्दन में तकलीफ़ होने पर इसे नहीं करना है, किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर इसे रोक देना है तथा सूर्य नमस्कार के बाद और विश्व शान्ति ध्यान शुरु करने से पहले 2 मिनट का शवासन करना है। दफ़्तरी निर्देश के साथ संलग्न इस दस्तावेज़ को माता अमृतानंदमयी मठ की युवा इकाई AYUDH (अवेकन यूथ यूनाइट फ़ॉर धर्म) नाम की संस्था की ओर से जारी किया गया है।

इस निर्देश के तहत 12 अप्रैल को इंटीग्रेटेड होलिस्टिक हेल्थ की टीम ने दिल्ली सरकार के 40 स्कूलों के प्रिंसिपल के साथ एक ऑनलाइन मीटिंग की थी। बाक़ी प्रिंसिपल को इसे यूट्यूब पर देखना था। दोपहर 12 बजे आयोजित इस मीटिंग में निदेशक ने प्रिंसिपल, शिक्षकों व विद्यार्थियों को इस चैलेंज में दिलोजान से भाग लेने को प्रेरित किया। सभी प्रिंसिपल को अपने स्कूल से 2 शिक्षकों को इस कार्यक्रम के लिए चुनना था - एक प्रशिक्षक व एक प्रदर्शक के रूप में। 13 अप्रैल को 11 बजे इन 40 स्कूलों के 80 शिक्षकों को ज़ूम पर ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया। बाक़ी शिक्षकों को यूट्यूब पर देखने को कहा गया। 17 अप्रैल को 11 बजे ऑनलाइन मीटिंग पर शंकाओं व सवालों को संबोधित किया गया। 18 अप्रैल से इस 999 चैलेंज को स्कूलों में औपचारिक रूप से 9 दिनों के लिए शुरु किया गया। इस दिन से पहले-ही प्रिंसिपल को एक गूगल फ़ॉर्म भरना था। हर स्कूल को इस कार्यक्रम से जुड़ी 5 सर्वश्रेष्ठ फ़ोटो को एक गूगल ड्राइव पर अपलोड करके C20amrita999@gmail.com को मेल करना होगा। इसके अलावा, सभी विद्यार्थियों को एक फ़ीडबैक फ़ॉर्म भी भरना होगा।   

यह कार्यक्रम पूरी तरह अतार्किक है और इस सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है कि सार्वजनिक शिक्षा को धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए। साथ ही, यह राज्य सरकार व केंद्र दोनों की उस नीति का जीता-जागता सबूत है जिसके तहत स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई के बदले अनाप-शनाप कार्यक्रम थोपे जा रहे हैं। अगर एक फ़ौरी गणना भी करें, तो इस कार्यक्रम की तैयारी के अंतर्गत ही दर्जनों शिक्षकों-प्रधानाचार्यों के कई-कई घंटे बर्बाद किए जा चुके हैं। सैकड़ों स्कूलों में 9 दिनों तक चलने वाले इस बेसिरपैर के कार्यक्रम पर हज़ारों विद्यार्थियों के कई घंटे बर्बाद किये जाएँगे। इस आदेश से यह भी ज़ाहिर होता है कि ख़ुद शिक्षा निदेशालय की नज़र में उसके स्कूलों की समय-सारणी, उनके अकादमिक कैलेंडर व प्रधानाचार्यों-शिक्षकों की नियमित भूमिका व ज़िम्मेदारियाँ कोई हैसियत नहीं रखती हैं। कोई भी, कभी भी आकर, इनमें मनमाना हस्तक्षेप कर सकता है, स्कूलों-शिक्षकों के नियमित कामों को बाधित कर सकता है। यहाँ तक कि इन रोज़-रोज़ के आपातकालिक आदेशों को बजाना ही अब प्रधानाचार्यों-शिक्षकों का नियमित काम रह गया है। कोई हैरानी की बात नहीं है कि हर स्कूल में उच्च-कक्षाओं के स्तर पर विज्ञान की पढ़ाई सुनिश्चित नहीं करा रही सरकार को प्रार्थना, ध्यान और मंत्रोच्चारण के माध्यम से स्वास्थ्य व विश्व शांति प्राप्त होने पर विश्वास है। आख़िर हैपीनेस पाठ्यचर्या जैसी सरकार की प्रिय 'शैक्षिक' पहलें भी किसी ठोस अकादमिक विमर्श पर नहीं खड़ी हैं। उसी तरह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था और सेहत के लिए मूलभूत आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियाँ निर्मित किए बग़ैर लोगों को सिर्फ़ साँस या उच्चारण के व्यायाम के मंत्र की भेंट देना उन्हें एक मृगतृष्णा के हवाले करना है। इस मायने में हैपीनेस पाठ्यचर्या व 999 चैलेंज में तारतम्य है। सामूहिक कर्म, सार्वजनिक व्यवस्था या राज्य की ज़िम्मेदारी भूल जाओ, बस 'आंतरिक' व 'आध्यात्मिक' प्रयासों से जीवन सफल कर लो। हाँ, इस कार्यक्रम को स्कूलों पर थोपने से यह ज़रूर और साफ़ होता है कि सत्ता के गलियारों में भगत सिंह तथा डॉक्टर अंबेडकर की तसवीरें लगाने या उन पर मालाएँ डालने का मतलब तर्क, तथ्य, वैज्ञानिक चिंतन, धर्मनिरपेक्षता आदि संवैधानिक व आधुनिक मानव मूल्यों के प्रति समर्पण नहीं है, बल्कि महज़ सस्ती व धूर्ततापूर्ण प्रतीकात्मक्ता से लाभ लेने की मंशा है। वैसे भी, आधुनिक शिक्षा के दायित्व व उद्देश्य इहलौकिक तथ्यों व मूल्यों के इर्द-गिर्द रचे जाने चाहिए; इन्हें विशिष्ट व असत्यापित आस्था के भ्रमजाल के हवाले सौंपना विद्यार्थियों व शिक्षा के प्रति अपराध है।  

हम माँग करते हैं कि -
दिल्ली सरकार इस कार्यक्रम को स्कूलों में चलाने के लिए दी गई अनुमति वापस ले। 
दिल्ली सरकार यह सुनिश्चित करे कि स्कूलों के तयशुदा अकादमिक कैलेंडर व समय-सारणी को किसी भी तरह के तात्कालिक, तदर्थ व प्रशासनिक रूप से थोपे गए आदेशों तथा कार्यक्रमों से अवरुद्ध नहीं किया जाए।
केंद्र सरकार व सी 20 से जुड़ी सभी संस्थाएँ भी यह सुनिश्चित करें कि जी 20 की आड़ में शिक्षा संस्थानों में लौकिक ज्ञान, तार्किकता व धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के विरुद्ध कोई कार्यक्रम आयोजित न किए जाएँ।

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