Wednesday 1 April 2015

शिक्षक डायरी : विद्यार्थियों की लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन ?

एक निगम शिक्षक का लिखी हुई इस टिप्पिणी से हम सहमत असहमत हो सकते हैं पर यह टिप्पिणी एक  सार्थक बहस के लिए आपसे साझा की जा रही है। लोक शिक्षक मंच ने इस शिक्षक के द्वारा भेजी गयी इस टिप्पिणी में किसी भी तरह का फेरबदल नही किया है ....... संपादक।  

मैं  एक सह शिक्षा विध्यालय में अध्यापक हूँ। हमारे देश में शिक्षा का अधिकार कानून आया सरकार ने बहुत जोर शोर से इसका प्रचार किया। आमजन को भी लगने लगा कि  अब सबको मुफ्त व् अनिवार्य शिक्षा मिलेगी। इस एक्ट ने अधिकतर जिम्मेदारी शिक्षकों पर डाली पर अभिभावकों को भी जिम्मेदारी से मुक्त नही छोडा। खैर सब कुछ सामान्य तरीके से चल रहा था हालाकि कुछ अध्यापको ने सबको परीक्षा में पास करने का विरोध जरूर किया था। अभी कुछ दिनों पहले ही मेरे विद्यालय में परीक्षाए ख़त्म हुई है इस बार अपने विद्यार्थियों के साथ परीक्षा का अनुभव कुछ चिंतित करने वाला रहा है।
मेरी कक्षा में कुल 37 छात्र है हर साल मेरी कक्षा में पुरे छात्र परीक्षा देने आते थे लेकिन इन बार छात्रों का रुझान अलग रहा।एक छात्र तो दिल्ली में रहने के बावजूद परीक्षा देने नही आया। एक छात्र ने कुल दो पेपर दिए तथा बाकि पपरो में आने से मना कर दिया मे्रे पूछने पर उसने कारण बताया की उसको परिवार के साथ वैष्णो देवी जाना है। मैंने उसके माता पिता  को बुलाया और कहा की कुछ दिनों के लिए आप अपना वैष्णो देवी जाने  का कार्यक्रम शिफ्ट कर लो पर उनका जवाब सुनकर मुझे थोडा दुःख हुआ उनका कहना था की सर बच्चे को फ़ैल तो होना नही है फिर क्या करेगा परीक्षा देकर पेपर देने से अच्छा है माता रानी के दर्शन कर लेगा। मैंने उनको समझाया लेकिन वो लोग चले गये। एक अन्य बात मै साझा करना चाहूँगा इस बार मेरे विद्यालय में छात्रों को निर्देश दिया गया की छात्र स्वय उत्तर पुस्तिका लायेंगे। अधिकतर छात्र उत्तर पुस्तिका अपने घर से नही लाते थे पूछने पर उनका उत्तर होता था सर भूल गये। अब छात्रों में परिक्षाओ को लेकर तनाव नही रहा ये बात काफी हद तक सही है लेकिन वो साथ साथ लापरवाह भी होते जा रहे है जो कि  एक चिंता का विषय है। यह भी हो सकता है इन छात्रों की लापरवाही के पिछे मै जिम्मेदार हूँ या वर्तमान शिक्षा का अधिकार कानून। इसका जवाब शायद मेरे पास नही है पर यह सवाल मुझे चिंतित बहुत कर रहा है।


1 comment:

Anonymous said...

firstly, we should not forget that such cases are in very small numbers. secondly, i would be more concerned in a case where a student did/could not attend school for a significant period but came for the exams than in a case where s/he did attend school but did/could not sit for exams. thirdly, i would like to believe that children in any case - and healthy adults too in sane societies - are naturally fond of learning; something is the matter with our system if it makes them disinterested towards learning. fear of exams or getting failed is not a reason i would like my students to study due to. fourthly, even before the RTE Act came into force, i could not appreciate the point of exams as they never threw up surprises. almost in all cases students score along the lines of our estimation of their understanding; exams in our situation where a teacher stays with a class and its students for five years, do not add to our knowledge. the only point of exams in the case of a public institution like a school is to provide some rough information to any person who is not from the school. we need to exchange our views and experiences on this issue.